Friday 20 March 2015

हाउस वाईफ ( लघुकथा )

http://www.yuvasughosh.com/2015/03/20/हाउस-वाईफ-लघुकथा/

हाउस वाईफ ( लघुकथा )
टाउन हॉल खचाखच भरा था। तालियों की गड़गड़ाहट से पता चला कि मिस. रस्तोगी हाल में आ गयी है। आज उनकी कहानियों की दसवी बुक का विमोचन शहर के जाने- माने साहित्यकार के हाथो होना है।.. आप तो एक हाउस वाईफ थी ..फिर इतनी बड़ी उपलब्धि कैसे हासिल की ? पत्रकारो ने मिस रस्तोगी से सवाल किया । देखिये " मेरी इस उपलब्धि और कामयाबी का सारा श्रेय मेरे पति को जाता है, जिन्होंने मुझे घर में रहकर ही कुछ करने की पुर जोर सलाह दी। वृद्ध सास- ससुर जी की सेवा टहल के कारण रस्तोगी जी को बाहर जाना बिलकुल नही जँचा। कहीं न कहीं mr. रस्तोगी भी जिम्मेवार थे।
शान्ति पुरोहित

Friday 13 March 2015

नारी की पीड़ा

 नारी निकेतन की संचालिका आभा के पास एक औरत आयी, जिद कर रही थी  उसे यहाँ नहीं रहना,  उसका पति उसे बहुत प्यार करता है उसे लेने जरुर आएगाकमलानाम था, उसका पति शहर घुमाने लेकर आया थाजब वो दुकान से चुडिया खरीद रही थीपति मौका पाकर उसे वहीं छोड़ गया|
रात भर पति के इन्जार मे बैठी रहीदो दिन तक वो नहीं आयादो दिन तक कुछ भी पेट में नहीं जाने से कमला बेहोश हो गयीआभा ने उसे देखा तो  यहाँ ले आयी |
ज्यादा कहने पर कमला के पति को खोज कर अपनी पत्नी को आश्रम से घर ले जाने के लिए बोलाउसने कहा दो दिन से घर से बाहर पराये लोगो के साथ रही औरत की मेरे घर में कोई जगह नहीं है|
दस साल बाद कमला का पति लुटा-पिटा सा उसके पास आया चलो कमला घर चलो|, कमला ने कहा ” वो कमला अपने पति के दोगले व्यवहार के कारण मर गयी है| तुम्हारे सामने कमला है वो जिन्दा लाश है जो किसी की भी पत्नी नहीं हो सकती,तुम जा सकते हो|
शान्ति पुरोहित 

''बचपन क्यूँ नहीं रहा बचपन जैसा ''

बदलते परिवेश ने बच्चो के बचपन को अपने जाल में जकड़ लिया है| जब तक टीवी, मोबाईल और मायावी इंटरनेट नहीं था, तब तक ही बचपन था| तब उस जमाने में बच्चे खेल-कूद में अपना समय बिताते थे| जिससे उनका शारीरिक विकास तो होता ही था, आपस में मिल-जुल कर रहने की प्रवृति भी पुष्ट होती थी| तब खो-खो , कबड्डी, कंचा और भी अन्य लाभकारी खेल हुआ करते थे | लेकिन आज जमाना बदल गया है| आज तो चार वर्ष का बच्चा बिना मोबाईल के नही रह सकता| काफी हद तक इसमें माता-पिता का योगदान है| आजकल माता पिता दोनों कमाने बाहर जाते है| अति व्यस्तता के कारण बच्चे को मोबाईल देकर अपना पीछा छुडाना चाहते है| बच्चा पुरे दिन घर में अकेला या नौकरों के साथ रहता है और मोबाईल या कम्प्यूटर से चिपका रहता है| उसे कोई पूछने वाला नहीं होता है कि वह क्या देख रहा है, क्या कर रहा है| पुरे दिन नेट पर चैट से व् अन्य अवांछित साईट पर गतिविधि करते रहते है| ऐसे में कहाँ बचा रहता है उनका निश्छल और निर्दोष बचपन?
परिणामत: बच्चो का भविष्य भी चौपट हो जाता है बचपन तो खत्म होता ही है| क्यूँकि इन सब गतिविधियों में लिप्त रहकर बच्चे अल्पायु में ही व्यस्क हो जाते है| बच्चे देश का भविष्य होते है| आज के बच्चे ही कल देश के कर्णधार होते है| अभिभावकों को चाहिए कि वो काम के साथ-साथ समय निकाल कर बच्चो पर पूर्ण निगरानी रखे उन्हें अपना वक्त और प्यार देकर सही मार्ग पर चलने को प्रेरित करे| तो बच्चो का बचपन फिर से आ सकता है आजकल बच्चे जो भी मांग करते है अभिभावक बिना सोचे समझे तुरंत पूरी कर देते है ऐसे हालत में बच्चा जिद्दी हो जाता है और हर जायज-नाजायज मांग रखता रहता है| बच्चो के बचपन को बरकरार रखने के लिए अभिभावक को फिर से सोचना होगा जिससे कि उनका बच्चा बचपन में बच्चा ही रहे ना कि व्यस्क बने |
शान्ति पुरोहित

दुखो से छुटकारा

आखिर आज मीरा ने दुखो से छुटकारा पा ही लिया| जीवन और मृत्यु के बीच की कड़ी टूट गयी | चिर शांति मिल गयी | अंतिम यात्रा में हजारो लोगो के साथ बहू बेटा भी चल रहे थे बेटा-बहु के रोज -रोज के आपस के झगड़े ने मीरा का सब खत्म कर दिया | बेटे ने पत्नी से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी | तब से अब तक बहू और बड़ा बेटा बहू और बेटियों ने मीरा को पैसो के लिए परेशान करने में कोई कसर नही छोड़ी थी |
पिता ने व्यापर में कमाये धन को मीरा के बुढापे के सहारे के लिए बैंक में रख छोड़ा पैसा ही मीरा का जी का झंझाल बना | माँ की देखभाल के लिए किसी के पास समय कभी रहा नही | वृद्ध माँ दो -दो बहू के रहते खुद का खाना हाथो से बनाकर खाती थी | बेटा, बहू के आगे मेमना जो बना रहता था |
जैसी करनी वैसी भरनी । माँ ने अपने बचे हुए धन को अपने वकील की मदद से एक वृद्ध आश्रम बनाने में लगा दिया था | जिससे उस जैसे सताए वृद्ध वहां अंतिम दिनों में चैन की जिंन्दगी जी सके | माँ के मरने के तीसरे ही दिन लालची परिवार ने जब धन पाने के लालच में माँ का सामान सम्भाला तो पता चला धन तो माँ खर्च कर चुकी है |
शान्ति पुरोहित

साहस

गाँव में स्कूल नही था । कारण गाँव में जो बस आती थी वो दूसरे दिन ही वापस जा पाती थी । कोई भी अध्यापक गाँव में रहना नही चाहता था। सरपंच ने अपने स्तर पर बहुत कोशिश की शहर जाकर कलेक्टर और शिक्षा मंत्री से गुहार लगाई ।पर कुछ नही हुआ। कहते है ना ” जहाँ चाह वहाँ राह ” गाँव के ही रहने वाले कुछ अध्यापक जो सेवा निवृत होकर आ गए थे उन्होंने गाँव के बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया । भवन नही होने की स्थिति में गाँव के ही एक टूटे फूटे अहाते में ही बच्चों को पढ़ाया जाने लगा । शहर के स्कूल में एडमिशन और गाँव में पढ़ाई। इससे ये फायदा हुआ कि बच्चों का कीमती समय आने- जाने की परेशानी से बच जाता था। अगले वर्ष मेरिट लिस्ट में आने वाले बच्चों के नाम में गाँव के चार विद्यार्थियो का नाम था।
शान्ति पुरोहित

जूठन

जूठन
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मासूम बच्चे को गोद में लेकर करीब दस वर्षीय लडकी मेरे दरवाजे पर रोटी मांगने आयी तो उत्सुकतावश मैने उससे पूछा कि वो इतने छोटे बच्चे को लेकर क्यूँ मांगने निकली है क्या उसके माँ- बाप काम पर गये है ? तपाक से वो लडकी बोली ” पिता मजदूरी करता था | दुर्घटना में कुछ दिन पहले ही मारा गया है| माँ, किसी दुसरे आदमी के साथ भाग गयी | रह गये हम दोनों अनाथ, इतनी छोटी बच्ची ने अपने छोटे भाई के भरण-पोषण की जिम्मेदारी अपने नन्हे कन्धो पर ले ली | ये देखकर मेरा तो कलेजा ही मुहं को आने लगा |पीठ पीछे भाई को बाँध कर उसके नन्हे हाथ लोगो के सामने फैलने लगे | कोई दे देता, कोई मुहं बिचका कर आगे बढ़ जाता |जैसे -तैसे करके अपना और भाई का पेट भरती थी |कभी -कभी तो भाई का ही पेट भरने जीतनी रोटी मिलती तब खुद भूखे पेट ही सो जाती थी |आज खबर अच्छी मिली है उसने बताया ”गाँव के मुखिया की मौत हुई है पन्द्रह दिन तो भर पेट खाना मिलेगा |वो सुबह से ही मुखिया के दरवाजे पर आस के साथ बैठ गयी कि जल्दी से कोई खाना जूठा छोड़े ….
शान्ति पुरोहित

"बचपन "

"बचपन " 
"बचपन" को याद कर के अपना वर्तमान नही बिगाड़ना चाहती । बहुत ही मुश्किल भरा बचपन था मेरा। सात बच्चों को पालना पिताजी के लिए बड़ी मुसीबत भरा काम था। उस पर आय सीमित। पिताजी बेकरी में हेल्पर का काम करते थे। माँ आस-पास के घरो में खाना बनाती थी। फिर भी दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ नही होता था।कई बार माँ को भूखे पेट सोना पड़ता था। पढ़ने में रूचि और तीव्र इच्छा होने के बावजूद पांचवी तक पढ़ने के आगे विराम लगा दिया पिताजी ने असमर्थता जता कर स्कूल जाना बंद करा दिया था। दूसरे भाई बहन तो स्कूल का मुहं तक नही देख पाये। मुझे पढ़ना था तो गाँव के प्रधान से मदद माँग कर पढ़ी। मेरा उद्देश्य था कि पढ़ -लिख कर गाँव के बच्चों के लिए निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था करना। आज गाँव में सरकारी स्कूल में प्रधानाध्यापिका के रूप में कार्यरत हूँ। और स्कूल के अलावा घर में निशुल्क पढ़ाती हूँ। स्कूल में असहाय बच्चों की मदद करना मेरी प्रथम जिम्मेदारी है
शान्ति पुरोहित

"दशा "

"दशा "
जब भी जयपुर से बीकानेर जाना होता था ट्रेन में किन्नर यात्रियों से पैसा माँगने आते थे। ऐसे ही एक बार किन्नर हमारे कोच में प्रविष्ठ हुए। और पैसा माँगने लगे। हमने दस रुपये दे दिए। पास के यात्री ने पैसा देने से इंकार किया तो किन्नर गुस्सा हो गए । दोनों आपस में झगड़ने लगे। तभी एक वृद्ध किन्नर ने ट्रेन में प्रवेश किया और बोला ' साब आप लोगो के आगे हाथ मजबूरी में फैलाना पड़ता है। सरकार ने अभी तक हम किन्नरो के लिए कोई विशेष योजना नही बनाई है हमारी यही नियति है कि हम आप लोगो की दया पर जीवन यापन करे। आप मे से कोई देता है कोई गाली देता है। हमारी यही दशा बनी रहेगी अगर सरकार की आँख नही खुली तो। 
शान्ति पुरोहित

( कामवाली बाई ) संघर्ष

 ( कामवाली बाई )संघर्ष
"पडौसी आकर ना सम्भालते तो, आज आपके सामने
ना होती मैडम, हीरा, ने क्षोभ के साथ कहा।" ऐसा क्या हुआ था ?, मैंने जिज्ञासावश पूछा "कमला के बापू ने उस दिन ज्यादा ही प्यार जता कर अपने हाथो से खाना बनाकर खिलाया । आश्चर्य तो बहुत हुआ पर किस्मत बदलती देखकर बिना विरोध किये हलक के नीचे उतार लिया। खाने के बाद होश आया तो अपने आप को अस्पताल के पलंग पर पाया। पर कहते है ना मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है। शहर आकर आप सब लोगो के सहयोग से आज इज़्ज़त और शान की जिंदगी अपने बच्चों के साथ जी रही हूँ। सुबह- शाम मिलाकर दस घरो में चौका- बर्तन करती हूँ। " मैंने पूछा तुम्हारे पति का क्या हुआ ? ' और क्या होता! घर के किसी कोने पर पड़ा हुआ अपने जीवन की अंतिम सांस गिन रहा है।,
शान्ति पुरोहित
मेरे घर का बजट"
" इस बार के बजट ने तो जनता की कमर ही तोड़ द, सर्विस चार्ज बढ़ाकर तीस प्रतिशत मंहगाई बढ़ाने का स्पस्ट संकेत दे दिया। पति ने पत्नी को सम्बोधित करते हुए कहा। इतने बड़े परिवार का भरण-पोषण, मोबाइल बिल, बच्चों की फ़ीस,माँ-पिता जी की दवाई का ख़र्चा सब इसी तनख्वाह पर निर्भर है। साथ में सात माह बाद रिटायरमेंट भी होना है। तब और भी मुश्किल होगी। तभी पत्नी बोली " दक्षिण भारत घूमने की इच्छा जो बरसो से मन में पाले हुए हूँ, वो तो शयद ही पुरी होगी । सपना बनकर आँखों में ही घूमती रहेगी पत्नी ने निराश होते हुए कहा। पति मायूस हो गया और घर से बाहर किसी काम का कह कर चला गया।
शान्ति पुरोहित

"आखिरी साड़ी"

"आखिरी साड़ी"
अब तो विमला के लिए होली का त्यौहार मात्र एक रस्म निभाने जैसा है। उनके परिवार में होली के ही दिन बहुत बड़ा हादसा जो हो गया था। बड़े बेटे के बच्चे की पहली होली थी। धूम धाम से उसके लिए पूजन की तैयारी चल रही थी। बस अब तो बुआ के ससुराल से आने का इंतजार हो रहा था। इतने में ही बुआ का देवर आया और उसके आते ही सारी तैयारी धरी की धरी रह गयी। बुआ होली की परिक्रमा कर रही थी। बहुत तेज हवा चलने के कारण उसके पल्लू ने आग पकड़ ली जब तक बचाते तब तक लगभग शरीर जल चूका था। भाभी ने बड़े ही चाव से ननद को पीली साड़ी होली पर पहनने को दी थी। और वही साड़ी उसकी आखिरी साड़ी बन गयी या उसका कफ़न बन गयी ।
शान्ति पुरोहित

लघुकथा ( बंधन)

( बंधन) 
पति की असामयिक मौत के बाद पीहू पति वियोग की पीड़ा से उबर ही नही पा रही थी। ऐसे हालात में करीब चार माह गुजर गए। एक दिन उसकी स्कूल की सहेली मिलने आयी...जिसे पीहू के साथ घटित घटना का कुछ दिन पहले ही पता चला था। " पीहू तुम कब तक घर में अपने आप को कैद करके रखोगी, पढ़ी-लिखी हो बाहर जाकर किसी काम में अपना मन लगाओ।, रीमा ने पीहू का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा। करीब दो घण्टे साथ रह कर रीमा चली गयी। पीहू ने अपने सास-ससुर के सामने बाहर जाकर काम करने की बात की तो सास ने साफ इंकार किया उनका जवाब था कि ..घर में किसी चीज की कमी नही ..ईश्वर का दिया सबकुछ तो है फिर चार पैसे कमाने को निकलोगी तो लोगो की जुबान हमारे लिए अनगर्ल बाते उगलेगी। पीहू ने दबी जुबान में एक बार फिर विनती की " पैसे के खातिर नही अपने मन को बहलाने का भी जरिया है काम करके मेरा वक़्त ही कटेगा।, पर सास के कुछ समझ नही आया ..परिणामः पीहू को चार दिवारी में लगभग बेडियो में जकड़ कर ही रहने को मजबूर होना पड़ा।
शान्ति पुरोहित

इंतजार

इंतजार
आज भी नैना नही आयी ! कितने दिनों से उसका इंतजार यूं ही फूलो को सजा कर करता आ रहा हूँ।उसको फूल बहुत पसंद है लगता है उसके बेटे - बहू ने उसकी पाँव में समाज नाम की बेडी लगा दी है।रमाकांत ने उदास होते हुए कहा। कौन बेटा बहू जीवन में अकेले रह गए माता या पिता के बारे में ऐसा सोचता है कि उनको भी एक साथी की जरूरत होती है। जिनके साथ अपना बचा हुआ वक़्त सुगमता से गुजार सके।
शान्ति पुरोहित

दर्द

दर्द
बाप दारू पीकर टुन्न हो जाता है, माई लोगो के घरो में चौका बर्तन करके सुबह शाम पेट की अग्नि शांत करने के जुगाड़ में रहती है।पढ़ने की तीव्र इच्छा ना जाने मुझमे क्यूँ पैदा की ऊपर वाले ने। जब लोगो के घरो की गंदगी ही साफ करनी मेरे नसीब में लिखा। रामू के दिल में पनप रहे दर्द मकान मालिक की नजरो से ना छुप सका था| मकान मालिक की पत्नी से ये सहन नही हुआ| बोली ''तुम पढने स्कूल जाओगे तो खाओगे क्या ?, मकान मालिक अब जरुरी काम का बहाना बना कर बाहर निकल गया |
शान्ति पुरोहित

विदाई

विदाई 
आज नेहा की विदाई पर घर वाले ही नही, सभी रिश्तेदार और कॉलोनी वाले खूब रोये...
तेरह साल की छोटी उम्र में नेहा की माँ नेहा और दो छोटे बच्चों को रोता -बिलखता छोड़ कर बहुत दूर चली गयी जहाँ से कभी कोई वापस नही आता।
पिता बैंक में मैनेजर होने के कारण अत्यधिक व्यस्त रहते। नेहा ने ठान लिया कि वो तब तक अपना घर नही बसायेगी , जब तक घर भाभी ना आजाये..और इसने वही किया भी। इस चक्कर में नेहा की उम्र ढलती जा रही थी।भाभी आगयी छोटा भाई पढ़लिख कर इंजीनियर बन गया। भाभी ने अपने हाथो से अपनी ननद को सजाया और ख़ुशी के साथ विदा किया। नेहा की आँखों में गम और ख़ुशी दोनों प्रकार के आँसू बह रहे थे। तभी पिता ने नेहा को अंक में भर लिया। और कहा तुम जैसी बेटी जिसको हो उस पिता का जीवन सवंर जाता है।
शान्ति पुरोहित

''बहू बनाम बेटी''

''बहू बनाम बेटी'' 
अचानक सहेली प्रभा की मौत की खबर सुन कमला तो जैसे अंदर तक हिल गयी | प्रभा की बहू का फोन आया और वो जाने की तैयारी में लग गयी | ट्रेन में बैठी- बैठी कमला उसी के बारे ही सोच रही है ' कुछ दिन पहले ही प्रभा का पत्र आया था कि बहू का मेरे प्रति व्यवहार बिलकुल भी ठीक नही है सम्मान की भावना तो दूर- दूर तक उसके मन में नही आती हैअति व्यसत्तता के चलते ज्यादा तो नही केवल एक बार ही प्रभा के घर जा सकी थी तब मुझे तो उसके व्यवहार में कोई कमी नही दिखी | आखिर चार घंटे के सफर बाद प्रभा के घर पहुंच गयी | बहू तो मुझसे लिपट कर दहाड़े मार कर रोने लगी विनय भी मुहँ लटकाए खड़ा था| आखिर कार एकांत पाकर बहू और विनय ने मुझसे बात की |माँ जाते -जाते एक पत्र और लिख गयी जिसके अनुसार उसे बहू ने मरने को उकसाया है हम दोनों बहुत परेशान है हमारा एक साल का नन्हा बच्चा भी है अगर नेहा को जेल होती है तो बच्चे का क्या होगा आंटी जी हमने तो हर तरह से माँ को खुश रखने की कोशिश की पर उन्हें हमारी हर बात गलत ही लगती थी |माँ तो अपनी सांस की बीमारी से मरी है कौन अपनी माँ को मरने को छोड़ेगा |बराबर डॉ देखने आता था | बहू को अभी तो जमानत पर छोड़ा गया है | मैंने बहू को बचाने को अपनी मोरल ड्यूटी समझा और मै बहू और विनय के साथ उसी वक्त पुलिस थाणे पहुंच कर अपना बयाँ दर्ज कराया और बहू को केस से मुक्त होने में अहम रोल अदा किया ऐसा करके मैंने अपनी बेटी समान बहू को मुश्किल में पड़ने से बचाया | उसी दिन से बहू ने मुझे अपनी माँ माना और मैंने सहेली की बहू को अपनी बेटी |
शान्ति पुरोहित

प्यार का रंग

प्यार का रंग 
अपने दोनों भाईयो की प्यारी बहना थी निशा। हर होली पर भाईयो के टीका लगा कर ही होली खेलने की शुरुआत करती थी। बरसो से यही चलता आ रहा था। पर इस बार ऐसा कुछ नही था। निशा की शादी पिछले साल हो गयी थी। शादी के कुछ माह बाद ही उसके पति की मौत हो गयी। तब से वो कमरे से बाहर ही नही निकली। पर आज होली के दिन दोनों भाई ने हिम्मत की और बहन को वापस घर लाये और टीका लगवाने की जिद करने लगे। आखिर भाईयो की आँख में आँसू देख कर वो अपने आप को ज्यादा वक़्त तक नही रोक सकी। भाईयो ने एक बार फिर से बहन के जीवन में प्यार का रंग लगाया।
शान्ति पुरोहित

गठ बंधन लघुकथा

गठ बंधन  लघुकथा
कैंसर पीड़ित नेहा ने अपने पति से कहा "क्या यही है तुम्हारा पति धर्म, इतना ही मान रखा शादी के हमारे गठबंधन का?, नेहा ने रुंधे गले से अपने पति कमल को कहा। कमल ने नेहा को उस वक़्त उसके मायके यह कह कर भेज दिया कि 'अब मैं घर बैठ कर तुम्हारी तीमारदारी करूँगा या दो पैसे की जुगाड़ में काम करूँगा।, पिघले शीशे के समान कमल के शब्द नेहा के कानो में गिरे थे। नेहा गिड़गिड़ाती कहती रह गयी कि "मेरे गरीब माता-पिता इतना महंगा इलाज नही करा सकते पर उसने एक ना सुनी ।
शान्ति पुरोहित

खाप पंचयत ''81''

खाप पंचयत ''81''
"नही मैं अपनी माँ समान भौजाई को चूड़ी नही पहना सकता। मुझे इनके साथ ब्याह नही करना नाबालिग रामू ने डरते हुए कह दिया।, रूपा का पति जहरीली शराब पीने से मर गया। तब से ही रूपा के ससुराल वालो की उस पर नजर थी और घर के सबसे छोटे लड़के के साथ उसका नाता करना चाहते थे। रूपा तो शर्म से धरती में समा जाना चाहती थी। जब वो किसी भी तरह नही मानी तो उसके ससुर ने खाप पंच को मामला सौप दिया। खाप ने उस नाबालिग देवर के साथ नाता करने का तुगलकी फरमान सुना दिया। अगले दिन रूपा किसी भी तरह से शहर पहुँच गयी और आप बीती सुनाई । पुलिस ने उसे रक्षा का आश्वासन दिया । अगले कुछ ही घण्टो बाद रूपा नाबालिग देवर की पत्नी थी।
शान्ति पुरोहित
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Tuesday 10 March 2015

मुक्तक

अंतर की ख़ुशी अंतर में दफन 
पहनाते दुःख तकलीफ कफ़न 
व्यथा सहते दुर्बल तन मन से 
मानव बेबस मायूस हुआ मन
शान्ति पुरोहित

प्रेम शब्द

प्रेम शब्द 
छोटा पर गूढ़ 
समुंदर सी गहराई 
समेटे हुए 
अनंत स्नेह झरना 
बहता हुआ प्रेम
परिभाषित हुआ
दस्तक तेरे आने की
अहसास आज भी जिन्दा
फूलो की छुअन सा कोमल
स्पर्श महसूस बारिश बूंदों
का सा शीतल निर्मल
परम पावन ता लिए
जीवन की अंतिम अवस्था
चौथेपन तक कायम
शायद अंत तक
या अनंत जन्मों तक रहे
© शान्ति पुरोहित

मुक्तक

फिजा में आज खुशबू नही मिली 
ऋतु पतझर की कली नही खिली
ठूंठ से दरख्त खड़े उजड़ी बगिया
पत्तो को भी नई गोद नही मिली
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

माँ का आँचल नेह का उपवन 
ममता मयी आशीष का उपवन 
छाँव तले संतान आशियाना 
पलते प्रेम माँ दुआ का उपवन
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

मन जीते सब सुख है 
वरना दुःख ही दुःख है 
ना आसान मन जितना
राह नही मुश्किल है
शान्ति पुरोहित

मन की चुप्पी

 ख़ामोशी चुप्पी
मन की चुप्पी 
समुंदर सी शांत 
लहरो के आने से 
मचती है तबाही
विचारो की आँधी
झकझोरती है मन
बहती नदी सी
धारा विचारो की
मनुष्य मन चलती
शांति पुरोहित

मुक्तक

ठूँठ सा था दरख्त अकेला खड़ा 
फूल पत्तियो का था मेला बड़ा 
पतझर का मौसम विकराल हुआ
फिजां बसंत पतझर अकेला खड़ा
शान्ति 

गीतिका

गीतिका 
गुनगुनाती हूँ गीत बनकर
खिलखिलाती संगीत बनकर
अरमान दिल के दिल में दफन
मचलती रहती प्रीत बनकर
समुंदर जैसी गहरी खुशियाँ
बुँद बन टपकती गीत बनकर
बन रेगिस्तान मृगमरीचिका
जल बन चमकती मीत बनकर
रुत पतझर के पत्तो के मानिंद
बसंत खिली पल्लव पीत बनकर
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

जन संख्या बढ़ती हुई नही मिलेगा ठौर
तन ढकने को वस्त्र नही उदर मिलेगा कौर 
अशिक्षा का आलम रहे कुपोषण के शिकार
ज्यादा तो गरीबी सहे चंद लोग सिर मौर
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

राह बिछे कंटक अमंगल जीवन 
हौसला उम्मीद मय मंगल जीवन 
खुशियाँ कदम तले आशान्वित है
चहकती जिंदगी सुमंगल जीवन
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

हर की पौढ़ी हर का द्वार 
गंगा दर्शन लहर का द्वार 
मोक्षदायनि गंगे मैया का 
पूजन करते दीदार का द्वार
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

ममता का सागर माता दिल 
नेह बहता आँचल माता दिल
जन्नत से बढ़कर माँ का प्रेम 
दुलारती माँ मिलता साहिल
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

अमोल रिश्ता मित्र का जग में 
निस्वार्थ भाव मित्र का जग में 
फरिस्ता बन जीवन में आता 
ऊँचा स्थान मित्र का जग में
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

ताउम्र हमारे बने रहे है 
राह के पुष्प बने रहे है 
कली सी खिली जिंदगी
सौरभ बयार बने रहे है
शान्ति पुरोहित

दशा "

दशा "
जब भी जयपुर से बीकानेर जाना होता था ट्रेन में किन्नर यात्रियों से पैसा माँगने आते थे। ऐसे ही एक बार किन्नर हमारे कोच में प्रविष्ठ हुए। और पैसा माँगने लगे। हमने दस रुपये दे दिए। पास के यात्री ने पैसा देने से इंकार किया तो किन्नर गुस्सा हो गए । दोनों आपस में झगड़ने लगे। तभी एक वृद्ध किन्नर ने ट्रेन में प्रवेश किया और बोला ' साब आप लोगो के आगे हाथ मजबूरी में फैलाना पड़ता है। सरकार ने अभी तक हम किन्नरो के लिए कोई विशेष योजना नही बनाई है हमारी यही नियति है कि हम आप लोगो की दया पर जीवन यापन करे। आप मे से कोई देता है कोई गाली देता है। हमारी यही दशा बनी रहेगी अगर सरकार की आँख नही खुली तो। 
शान्ति पुरोहित

कामवाली बाई

कामवाली बाई )संघर्ष
"पडौसी आकर ना सम्भालते तो, आज आपके सामने 
ना होती मैडम, हीरा, ने क्षोभ के साथ कहा।" ऐसा क्या हुआ था ?, मैंने जिज्ञासावश पूछा "कमला के बापू ने उस दिन ज्यादा ही प्यार जता कर अपने हाथो से खाना बनाकर खिलाया । आश्चर्य तो बहुत हुआ पर किस्मत बदलती देखकर बिना विरोध किये हलक के नीचे उतार लिया। खाने के बाद होश आया तो अपने आप को अस्पताल के पलंग पर पाया। पर कहते है ना मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है। शहर आकर आप सब लोगो के सहयोग से आज इज़्ज़त और शान की जिंदगी अपने बच्चों के साथ जी रही हूँ। सुबह- शाम मिलाकर दस घरो में चौका- बर्तन करती हूँ। " मैंने पूछा तुम्हारे पति का क्या हुआ ? ' और क्या होता! घर के किसी कोने पर पड़ा हुआ अपने जीवन की अंतिम सांस गिन रहा है।,
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

जिंदगी खुली किताब पढ़ जाता हर कोई 
भावना खेल समझ सर चढ़ जाता हर कोई
जैसी करनी वैसी भरणी खेल जग का न्यारा
सद्कर्म नाव बैठ आगे बढ़ जाता हर कोई
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

कितना सहज है जीवन को हँस कर जीना 
हुए रोज नये अनुभव समक्ष रखकर जीना 
कठिनाई से विचलित नही गम दूर रखना 
कट जायेगी उम्र तमाम तूँ हँस कर जीना
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

देश हमारा भारत प्यारा सबसे न्यारा 
गंगा यमुना सरस्वती की बहती जल धारा 
ऊँचे पर्वत ऊँची चोटी सुरम्य बहते झरने 
विश्व शांति संदेश देता अलग हमारा नारा

इंतजार

इंतजार
आज भी नैना नही आयी ! कितने दिनों से उसका इंतजार यूं ही फूलो को सजा कर करता आ रहा हूँ।उसको फूल बहुत पसंद है लगता है उसके बेटे - बहू ने उसकी पाँव में समाज नाम की बेडी लगा दी है।रमाकांत ने उदास होते हुए कहा। कौन बेटा बहू जीवन में अकेले रह गए माता या पिता के बारे में ऐसा सोचता है कि उनको भी एक साथी की जरूरत होती है। जिनके साथ अपना बचा हुआ वक़्त सुगमता से गुजार सके।
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

स्वार्थ है तो प्यार नही होता
प्यार है तो स्वार्थ नही होता
सुना है दुनिया स्वार्थ से चलती 
बिन स्वार्थ व्यवहार नही होता
शान्ति पुरोहित

कविता

कमरे में सुबह की धूप थी
गलियारे में सूरज बैठा था
वो धूप सेकती बैठी
दिसम्बर की हल्की धूप थीं
जाड़ा कड़ाके का 
हवा का रुख बदला था
शून्य सा मुख
सलवटे स्वर की उभरी थी
मीठी और दुसह थी ।
उभरा कोई विरही गीत
मन मीत की याद ठहरी
आसमान साफ था
कुहासे की तैयारी ।
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

दिव्य सप्त अश्व रथ पर सवार होकर रवि
उत्तरायण में आये लेकर पावन छवि
भागीरथ गंगा अवतरण भूलोक किया
पितरो का तर्पण कर बनाई अमिट छवि
शान्ति पुरोहित

दर्द

दर्द
बाप दारू पीकर टुन्न हो जाता है, माई लोगो के घरो में चौका बर्तन करके सुबह शाम पेट की अग्नि शांत करने के जुगाड़ में रहती है।पढ़ने की तीव्र इच्छा ना जाने मुझमे क्यूँ पैदा की ऊपर वाले ने। जब लोगो के घरो की गंदगी ही साफ करनी मेरे नसीब में लिखा। रामू के दिल में पनप रहे दर्द मकान मालिक की नजरो से ना छुप सका था| मकान मालिक की पत्नी से ये सहन नही हुआ| बोली ''तुम पढने स्कूल जाओगे तो खाओगे क्या ?, मकान मालिक अब जरुरी काम का बहाना बना कर बाहर निकल गया |
शान्ति पुरोहित

विदाई

विदाई 
आज नेहा की विदाई पर घर वाले ही नही, सभी रिश्तेदार और कॉलोनी वाले खूब रोये...
तेरह साल की छोटी उम्र में नेहा की माँ नेहा और दो छोटे बच्चों को रोता -बिलखता छोड़ कर बहुत दूर चली गयी जहाँ से कभी कोई वापस नही आता।
पिता बैंक में मैनेजर होने के कारण अत्यधिक व्यस्त रहते। नेहा ने ठान लिया कि वो तब तक अपना घर नही बसायेगी , जब तक घर भाभी ना आजाये..और इसने वही किया भी। इस चक्कर में नेहा की उम्र ढलती जा रही थी।भाभी आगयी छोटा भाई पढ़लिख कर इंजीनियर बन गया। भाभी ने अपने हाथो से अपनी ननद को सजाया और ख़ुशी के साथ विदा किया। नेहा की आँखों में गम और ख़ुशी दोनों प्रकार के आँसू बह रहे थे। तभी पिता ने नेहा को अंक में भर लिया। और कहा तुम जैसी बेटी जिसको हो उस पिता का जीवन सवंर जाता है।
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

फागुन का महीना चले, मेघ बरसे घनघोर 
गर्जना बादल की भारी,बिजुरीया चमके जोर 
पशु पक्षी आश्रय ढूंढे, मारक चले समीरण 
खड़ी फसल नुकसान में कृषक अश्रु बरसे घोर
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

सफर जिंदगी का यूंही चलता रहेगा 
कंटक रास्ते का हाथ मलता रहेगा 
फूलो भरी डगर हो, साथ में हमसफ़र
कदम से कदम मिला मनु चलता रहेगा
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

बूंद-बूंद से घट भरे, बूँद अमृत प्यास मिटाती 
उदधि जल राशि अथाह, जन प्यास नही मिटा पाती 
सुदूर देश सूखाग्रस्त, बूंद बूंद जल को तरसे 
गंगा ,भागीरथी, नर्मदा, देश की प्यास मिटाती
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

सतरंगी रंगो से लिपटे पक्षी नील गगन में उड़ते 
शांत समीरण सौरभ ख़ुशी की मगन मीत से जुड़ते
रंग गुलाल हौज भरा केसर कान्हा राधा संग रंगते
लगा मुझे रंग प्रीत का मोहन भक्ति श्रधा से जुड़ते
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

मन में रगों की फुहार, हुई उमंग संचार 
बागो में कुहू की गुनगुन छायी मस्त बहार 
जीजा साली ठिठोली अनुपम सा है त्यौहार 
दुर्भाव का करो दहन सद्भाव रंग संचार 
शान्ति पुरोहित

कविता

होली के रंग 
भरते जीवन में उमंग 
फिजा में फूलो की बयार 
बासंती हवा मचाये शोर 
बागो में गुन गुन कुहू गाये राग 
सुर अलापे रस राग
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

माँ जैसा प्यार, कहीं नही देखा 
मौन इकरार, कहीं नही देखा
सृजनधर्मिता माँ का संस्कार
माँ का प्रारूप कहीं नही देखा
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

मुक्तक
रंग बिरंगा ये समा किया बहुत धमाल
केसर मिश्रित जल और रंग लाल गुलाल 
चंग थाप थिरके सब फाग बहे बयार
होली रंग चुहल में बह गया सब मलाल
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

जीवन में सदैव रहे माता का दर्जा ऊँचा 
फर्ज तले दबी रहे दे बेटे को ऊँचा दर्जा 
सर पर आँचल ममता छाँव वाणी में आशीष
ब्रह्मा विष्णु महेश समकक्ष माता का दर्जा ऊँचा
शान्ति पुरोहित

महिला दिवस पर ....

नारी नारायणी 
मंदिर में पूजित 
पेट में मारी जाती 
नारी माँ,बहिन,बेटी,बहू,पत्नी,चाची,बुआ और ना जाने क्या क्या सम्बोधन से बंधी
फर्ज में लिपटी परम त्यागी सहनशीला 
ओरो को ऊँचा उठते देख होठो पर मुस्कान
वाणी पर आशीष
शान्ति पुरोहित

उन्वान

उन्वान 76 रंग 
कृष्ण रंग जीवन का छंट जाय
राग द्वेष मनु ह्रदय से हट जाय
जीवन अट जाय प्रीत रंग संग
प्रेम गुलाल मीत संग बंट जाय 
शान्ति पुरोहित

महिला दिवस पर दो शब्द

महिला दिवस पर दो शब्द - अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मात्र एक औपचारिकता भर रह गया है। आज भी औरतो को आजादी से जीने की इजाज़त नही है। जिस दिन वो दुनिया में आती है उसी दिन से उसका समस्याओ से सामना होने लगता है। घर के लोगो को लड़की के लिए कुछ भी उसकी माँ द्वारा करना ठीक नही लगता।लड़के और लड़की के पालन पोषण से ही लिंग भेद उजागर होने लगता है। इसके साथ ही समाज के कुछ पुरुषो की उच्छखलता के कारण आज भी लड़कियो को योग्यता होते हुए भी शहर से बाहर पढ़ने नही भेज सकते। और अगर हिम्मत करके भेज भी दे तो माता-पिता की जान मुठ्ठी में होती है।महिलाओ की रक्षा के लिए सरकार और समाज को मिलकर कारगर कदम उठाने चाहिए तभी सही अर्थो में महिला दिवस मनाने का औचित्य है वरना औपचारिकता भर ही मानी जाएगी।
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

मन मंदिर में बसे है मोहन 
गोपी वस्त्र चुराते है मोहन 
नाम तेरा जपते-जपते ही 
संसार से कूच करादे मोहन 
शान्ति पुरोहित

छंद मुक्त कविता

दुर्गा बन संघारक बनी
जन्मदायनि सृजनधर्मा 
ब्रह्मा बन सृष्टि रचना की 
विष्णु बन की पालन 
महेश बन कष्टो को काटा 
माँ तूँ अद्भुत प्राणी
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

मुक्तक 

लगे ये अपनों की दुनिया 
टूटते सपनों की दुनिया 
कोई नही सगा किसी का
संगदिल लोगो की दुनिया
शान्ति पुरोहित