Tuesday 23 December 2014

चाँदनी रात तारो की बारात
उतरी जमीं पर उजियारा साथ 
वृक्ष हिल रहे है मंद मंद गति से 
सुरभित हवा चली खुशबू के साथ

शान्ति पुरोहित 

मुक्तक

पत्थर में से दिल झाँका है 
कुदरत को कम क्यों आँका है 
विशाल धरा का महान दिल
प्रकृति रूप अति बाँका है
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

जँहा हो आत्मीयता घर वही होता है 
रिश्तो में हो पवित्रता घर वही होता है 
जुड़े है सुख दुःख एक दूजे के साथ 
मिलकर रहते है परिवार वही होता 
शान्ति पुरोहित 

मुक्तक

सर्द हवा कोहरे की ठिठुरन उघडा बदन
मुफ़लिस हालात मावठ मार उघडा बदन
गर्म शॉल गर्म हीटर गर्म रजाई गर्म खाना
अमीर सुविधा मुफ़लिस का उघडा बदन
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

सर्द हवा कोहरे की ठिठुरन उघडा बदन
मुफ़लिस हालात मावठ मार उघडा बदन
गर्म शॉल गर्म हीटर गर्म रजाई गर्म खाना
अमीर सुविधा मुफ़लिस का उघडा बदन
शान्ति पुरोहित

मुक्तक

दिसंबर माह सर्दी का जोर 
सूरज गायब कोहरा घनघोर 
गर्म लिबास अलाव का ताप
राहत नही सर्द हवा का जोर

शान्ति पुरोहित 
रब ने मनुष्य बना कर उपहार दिया
अधर्म नाश करने को अवतार लिया 
श्रद्धानवत हूँ प्रभु चरणों में विश्वास
भक्ति की शक्ति दे प्रेमोपहार दिया
शान्ति पुरोहित
मन वितृष्णा से भर रोता पेशावर बच्चो के लिए 
कितने सपने और खुशियाँ थी पेशावर बच्चो के लिए 
जालिमो ने कुचल डाला उन पल्लवित पुष्पों को 
सांता भी अब जार जार रोये पेशावर बच्चो के लिए 
शान्ति पुरोहित