Tuesday 14 October 2014

गीतिका

राम सीता हीरक मणि
वीर बालाजी उर धणी
राम का नाम रटते रह
पाप ताप नहीं रहणी
मोह तिमिर सब नष्ट होते
नाम सुमिर भव पार तरणी
राम का संदेश दिया
सीय माता दुःख हरणी
युगल नयन जल से भीगे
दीनि जब मुद्रिका मणि
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^शान्ति

Thursday 2 October 2014

दोहा शिल्प परिचय -दो पद -प्रत्येक पद में दो चरण एक सम ,एक विषम ,विषम चरण में 13 मात्रा तथा सम चरण में 11 मात्रा - चरणानंत गुरु लघु से 


मेरा ये दोहा युवा शक्ति को देश सेवा के लिए प्रेरित करता हुआ 

नई पौध नया विचार , करे राष्ट्र निर्माण
पवित्र भूमि भारती , वारो इस पर प्राण
ये दोहा विरहिणी को इंगित करते हुए 
वन की शोभा मोर है,पि पि मस्त सुनाय
साजन बसे प्रदेश में , जिया होश गमाय ----
3
ये दोहा अपनों के बीच के वैर को दर्शाता हुआ 
अपनों से अपने लड़े ,जहर भरे है बैन
दिल क्रन्दन करता सदा , नैन न पावे चैन
4
ये दोहा मनुष्य के अंतर्मन की दशा को दर्शा रहा है 
होठो पर मुस्कान है, भीतर बैठा रोष
मन दुर्बल होता सदा , गम किया है पोष
बेटे के इंतजार में पिता की मन की अवस्था का चित्रण
सूनी आँखों से तके .बेटा आवे राह
बेटा अपने काम में ' बापू छूटा जाय
6
पिता का घर और सखी -सहेली से विछ्ड़ने का चित्रण 
सखी सहेली छूटती ,छूटा घर का द्वार
नैनो में अरमान ले , आयी पि के द्वार
शान्ति पुरोहित