Wednesday 21 May 2014

सीख ....

सीख ....
                                                                                                                                            पति के बीच राह में अकेला छोडकर जाने के दुःख को सहने की शक्ति नहीं बची, तो इरा ने अपना भी जीवन खत्म करने के इरादे से नदी की ओर कदम बढाये | नदी के मुहाने पर खड़ी इरा नदी में कूदने को तैयार ही थी कि तभी उसने देखा; कि एक मछली पानी से बाहर आगयी तडफने लगी |
इरा दौडती हुई उस मछली के पास गयी उसे पानी में छोड़ा |
             तभी उसका ध्यान अपने दूधमुहे बच्चे की ओर गया ;जिसे वो अकेला घर में छोड़ कर मरने को आ गयी | मरने का ख्याल पता नहीं कहाँ गया वो दौड़ कर अपने तडफते हुए हुए बच्चे के पास पहुँच गयी | उसे कस कर अपने वक्ष से चिपटा लिया बेतहाशा प्यार करने लगी | मन ही मन मछली का धन्यवाद किया | वो बाहर ना आती तो आज उसका नौनिहाल तडफता रह जाता |

Sunday 4 May 2014

माँ ...के लिए ------



''माँ, ईश्वर की सबसे श्रेष्ठ रचना है | हम जब भी अपनी माँ को पुकारते है तो वाणी में श्रद्धा और कृतज्ञता भर जाती है | माँ पुकार सुन कर तुरंत हमे अपने स्नेहांचल में छुपा लेती है| माँ की महिमा अपार है| जब हम दुःख में होते है तो परमात्मा को नहीं माँ को ही याद करते है | माँ - करुना,प्रेम और त्याग की धारा है| एक बच्चे के लिए माता का स्वरूप पिता से बढ़कर है ; क्युकी वो उसे गर्भ में धारण करती है पालन पोषण भी करती है | जिस क्षण शिशु का जन्म होता है उसी क्षण माता का भी जन्म होता है| पर हम सब ये भूल जाते है कि माँ कितना कष्ट सहन करती है| हालांकि ये भी सत्य है कि शिशु जन्म से ही औरत माँ बनकर दुनिया का सबसे बड़ा और अमूल्य सुख भोगती है | माता के लिए उसके बच्चे से बढ़कर कोई सुख बड़ा नहीं होता है|
               पिता से पहले माता का ही नाम बच्चा लेता है | माता की सच्ची पूजा तो बच्चो का सचरित्र होने में है| माँ तभी खुश होती है जब उसका पुत्र यशस्वी हो | पुत्रिया तो दो वंश को अपने गुण से महकाती है | अपने शिशु के मूक कंठ को माता ही भाषा के बोल प्रदान करती है | इसलिए संसार के प्रत्येक कोने में अपनी भाषा को ''मातरभाषा'' कहा जाता है|
   आदि शंकराचार्य जी ने माँ के अलावा कभी किसी की सत्ता स्वीकार नहीं की|सांसारिकता से सम्बन्ध ना रखने वाले आदि शकंराचार्य जी भी माँ की भक्ति और माँ का त्याग नहीं कर सके थे|  हमारे देश में तो नदी,तुलसी  और गाय को भी माता के समान पूजा जाता है |
             पर आज के युग में माता के प्रति भाव भिन्न हो गये है| ये तो सर्वविदित ही है कि माता से पहले पिता ये संसार छोड़ कर जाते है;तब पीछे से पुत्र -पुत्रवधू स्वार्थ और सुख-सुविधाओ के वशीभूत हो कर माता को या तो नौकरानी की तरह रखते है या वो अकेली एक कोने में रहने को मजबूर होती है | जिस पुत्र को अपना रक्त पिलाकर,अपना समस्त सुख-दुःख त्याग कर बड़ा करती है ; वही पुत्र माँ को उनकी असक्त अवस्था में बोझ तुल्य समझने लगता है |                                                                                                                                             माँ सब कुछ बिना बताये ही जान लेती है
              अपने बच्चो की आँखे देखकर ही उनके मन की बात जान लेती है
              उनका भूत ,भविष्य और वर्तमान की चिंता में अपने को सहर्ष खपा देती है
              माँ तुझे कोटि -कोटि प्रणाम -शत -शत नमन                                                                                                                                                            चित्र -गूगल से साआभार ***********                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                    

एक माँ की व्यथा .......



मीरा जब से गर्भवती हुई है| बस एक ही बात सता रही है कि इस बार बेटा नहीं हुआ तो घर में शांति से जीना दूभर हो जायेगा| दो बेटियों के बात सबको अब बेटे का इंतजार बेसब्री से है| वो तो भला हो सरकार का कि लिंग जाँच करके पहले से ही पता लगा लेना अपराध घोषित कर दिया; नहीं तो मेरे बच्चो की हत्या ही करा देते ये लोग| 
खैर धीरे- धीरे वो वक्त भी नजदीक आया जब मेरे भाग्य का फैसला जैसे होने वाला था| अस्पताल में ले जाया गया| अचानक मेरे पति ने मुझे हिम्मत दी कि ''तुम चिंता ना करो जो भी होगा देखा जायेगा इसमें तुम्हरा क्या कसूर है|, अचानक इस परिवर्तन को मै समझ नहीं पायी| कुछ देर में मैंने मेरी तीसरी प्यारी सी बेटी को जन्म दिया| सबके रौद्र रूप को पति ने झेला '' मेरी बेटी को कोई भी बुरी नजर से नहीं देखेगा मेरे घर की शान है ये|

याचना

                                                                                                                          ''मेंम साब, पति अपाहिज ना हुआ होता तो वो कभी मुझे काम करने नहीं देता|, रमिया ने दुखी होते हुए कहा| रमिया का पति दिन भर धेले से माल धोने का काम करता था | एक बार ऑटो रिक्शा ने उसको टक्कर मारदी | जिससे उसका एक पैर बुरी तरह जख्मी हुआ |पैर को काटना पडा |
दो बच्चो और पति की जिम्मेदारी अब रमिया के कन्धो पर थी |
    आलिशान घरो में रहने वालो के पास काम मागंने के सिवा रमिया के पास अब कोई चारा नहीं था |मिसेज शर्मा ने उस पर टरस खाते हुए काम पर रखा | जब पैसो की बात आयी तो कहा ''फ़िक्र मत कर तेरी मेहनत का रखूंगी नहीं |लेकिन जब महीने के अंत में रमिया ने पैसे मांगे तो उसके हाथ पर कुछ दस -दस के नोट रखे| रमिया ये देख कर सकते में आगयी | बोली ''मेम साब ,इतना बड़ा घर ,इतना काम और इतनी कम मजूरी,इतने से मै किस -किस का पेट भरुंगी '' मिसेज राही ने झल्लाते हुए कहा ''लेने है तो लो वरना निकलो यहाँ से मै कोई और बाई रख लुंगी |,, दुसरे घर की मालकिन ने बताया '' मिसेज राही सब बाई के साथ ऐसा ही करती है| रमिया को दूसरा काम मिल गया पर उसके बाद मिसेज राही को कोई बाई नहीं मिली |क्युकी रमिया ने सब बाई से मिलकर अपन एक संगठन बना लिया था |