Friday 31 January 2014

आस्तित्व....

उस भीड़ वाले माहोल मे भी किरण का जैसे दम घुटने लगा| मेजबान अंजली किरण की परेशानी को कब से ही महसूस क रही थी| ''आपको कोई परेशानी है क्या?, अंजली ने किरण से पूछा| ''नहीं नहीं मै बिलकुल ठीक हूँ|'' कहते हए किरण वहां से दूसरी और चली गयी|
                 किरण घर मे भी अपने को अकेला अनुभव करती है| इतने बड़े परिवार मे रह कर भी अपने को अकेला समझना उसे भी कुछ अजीब लगता है कस्बे मे पली-बढ़ी किरण को महानगर की जिन्दगी कभी रास नहीं आयी| शादी के पांच वर्ष बीत गये| जिन धारणाओं- मान्यताओ और आस्थाओ मे वो पली-बढ़ी है उसके विपरित शहरी जीवन उसे अजीब लगा है| एक घंटा हो गया समय का पता नहीं चला पार्टी ख़त्म होने की और है | 
            उसने हमेशा संयम से जीना सीखा है| उसके अनुसार नारी की एक मर्यादा होती है उसी मर्यादा के अनुसार उसे जीना चाहिए| नारी की पुरुष से अलग एक छवि होती है| वो माँ,पत्नी ,बहु और बेटी होती है|
                  परन्तु सुमित से विवाह हो जाने के बाद उसे लगा,वो सारे संस्कार जैसे अब इस नई जिन्दगी मे बेमानी हो गये है| सुमित के घर मे इन सबके लिए कोई जगह नहीं है| सुमित का बार-बार किरण को उसके व्यक्तित्व के बारे मे जताना,उसके व्यक्तित्व को नकारना ही था| सुमित की माँ भी अपने बेटे के लिए आधुनिक विचारों वाली बहु चाहती थी|
        शादी होने के चंद सप्ताह बाद ही किरण की सास उसे बेटे की पसंद-ना पसंद बता कर वो अपने घर चली गयी थी सुमित जॉब के लिए माँ से दूर रहता था| सास, बहु के आने के बाद जैसे निचिंत हो गयी  थी|
         अपनी शादी के कुछ दिन बाद ही उसे आभास हो गया था कि वो यहाँ अच्छे से सेट नहीं हो पाएगी| सुमित को उसने उसकी दोस्त नेहा के साथ अपने शादी के रिशेप्शन वाले दिन इतने करीब देखा,दोनों एक प्लेट मे खाना खा रहे थे किरण शर्माती हुई एक किनारे खड़ी ये सब देख रही थी|
             सुमित और नेहा ने साथ-साथ ऍम.बी .ए .किया था| दोनों ने जॉब के लिए अमेरिका के न्यू यार्क को चुना|सब कुछ ठीक चल रहा था| वो दोनों शादी करना चाहते थे;पर सुमित की माँ अपने देश मे रहने वाली लड़की को बहु बनाना चाहती थी|
             सुमित माँ के आग्रह पर भारत आ गया,पापा कुछ साल पहले बीमारी की वजह से इस दुनिया से चल बसे थे| नेहा,सुमित के आने के कुछ वर्ष बाद भारत लौट आयी, वो भारत मोटर्स मे मैनेजर की पोस्ट पर काम करने लगी| तीस वर्ष की हो गयी पर अभी तक शादी नहीं की,सुमित को अभी तक नहीं भूली है|
            -पार्टी मे नेहा और सुमित को इतना करीब देखकर,किरण को बहुत बुरा लगा है|
 सुबह किरण ने सुमित से कहा ''आपको नेहा के साथ इस तरह घुलमिल कर बाते करते हुए,एक प्लेट मे खाना खाते हुए देखकर मुझे कितना बुरा लगा!, कभी सोचा इस बारे मे|'
                  ''ऐसा तो तुम अक्सर देखती हो, फिर आज कौनसी नई बात हो गयी|'
'इतनी बड़ी पार्टी मे आपको उसके साथ देखकर मेरा सर शर्म से पानी -पानी हो गया|'किरण ने कहा|
             चाचा जी ने तो पापा को सुमित से शादी नहीं कराने की सलाह भी दी थी| पर वो कोई निर्णय जल्दी से कर नहीं पाये और मेरी शादी आखिर सुमित से करा दी गयी|
                 आखिर किरण ने अपने घर के दम घोटू माहोल से निकलने के लिए नौकरी करने का फैसला किया| सुबह जब किरण तैयार होकर निकल रही थी,तो सुमित ने टोकते हुए पूछा ''कहाँ जा रही हो इतनी जल्दी तैयार होकर?'
            ''मैंने एक स्कूल मे नौकरी ज्वाइन की है;वहीँ जा रही हूँ|' किरण ने कहा| इतनी बड़ी कंपनी के मैनेजर की पत्नी,स्कूल मे नौकरी करेगी!' सुमित ने गुस्सा होते हुए कहा| ''हाँ तो क्या बुराई है| क्या मै अपनी मर्जी का कुछ भी नहीं कर सकती?
      सुमित ने अपने स्वर मे मिठास घोलते हुए कहा '' मत जाओ नौकरी करने,मेरी हैसियत का तो कुछ ख्याल करो| पर तब तक किरण दरवाजा पार करके बाहर आ गयी थी| अपनी जिन्दगी की एक नि शुरुआत करने के लिए ये उसका पहला कदम था| शायद आज वो अपने आस्तित्व को पहचान पायी थी|
  शांति पुरोहित
 
                

Wednesday 22 January 2014

भ्रम

''नारी निकेतन'' की संचालिका के सामने आज,एक ऐसी लड़की आई है ;जो यहाँ आकर भी यहाँ रहना नहीं चाहती है| ''नारी निकेतन'' मे आम तौर पर परिवार,समाज और असामाजिक तत्वों द्वारा सतायी गयी औरते आती है| और अपना आगे का सारा जीवन नारी निकेतन के लोगो को अपना मान कर बिताने को मजबूर होती है|
             दो दिन पहले आयी कांता, यहाँ रहना नहीं चाहती| उसे अपने पति पर विश्वास है| वो आयेंगे उसे लेने के लिये|
                उस दिन कांता किसी आवश्यक काम से बाजार जा रही थी| इसी दौरान कुछ असामाजिक तत्वों ने उसे अगुआ किया| उसके पवित्र तन-मन को कलुषित और दाग दागदार करके,बेहोशी की हालत मे दुसरे शहर मे किसी सुनसान जगह पर पटक गये|
                      कान्ता ने आँखे खोली,तो अपने आप को ''नारी निकेतन'' मे पाया|
              मै,यहाँ कैसे आयी? कांता ने विश्फारित नेत्रों से वहां खड़े लोगो को देखते हुए पुछा?,
''दया नारी निकेतन'' की संचालिका, आभा शर्मा ने कहा ''आपको मै यहाँ लेकर आयी, कुछ गुंडे टाइप लडके  आपको सुनसान जगह पर पटक गये थे|,
                               ''आप कौन है,कहाँ से है? आभा जी ने पूछा|
याददाश्त पर जोर देने से कांता को वो सब कुछ याद आ गया| जोर -जोर से रोने लगी| ''नहीं रहना मुझे यहाँ,आप मेरे घर खबर कर दीजिये;मेरे पति वेणुगोपाल मुझसे बहुत प्यार करते है, वो मुझे यहाँ से लेकर जायेंगे|
संचालिका आभा जी ने कांता जब बेहोश थी तभी उसके पर्श  मे से उसके घर का पता लेकर वेणुगोपाल को खबर कर दी ;पर उन्होंने उसे ले जाने से मना कर दिया था|उनका जवाब था ''अब हमारे घर मे उसके लिए कोई जगह नहीं है|, आभा जी के लिए कांता को ये बताना थोडा मुश्किल हो रहा था|
                              कांता के पति,,वेणुगोपाल के पुस्तेनी व्यवसाय था| कारोबार जितना बड़ा था,विचार उतने ही संकीर्ण थे| अपनी ही पत्नी को हर वक्त शक की नजर से देखते;बहुत बार कांता का पति से इस बात को लेकर झगड़ा होता रहता था|
                कांता ने बार-बार संचालिका,आभा जी से पति को खबर करने का दबाव डाला तो आभा जी को मजबूरन बताना पड़ा''तुम्हारे पति वेणुगोपाल जी ने तुम्हे घर ले जाने के लिए साफ इंकार कर दिया है|,कांता ये सुनकर रोने लगी,आभा जी ने उसे रोने दिया ;करीब दो दिन तक वो रोती रही|
              ''कांता रोना-धोना छोड़ो,अब तुम अबला नहीं सबला बनो| तुम्हे अपना आगे का जीवन अकेले बिताना है|, समझाया आभा जी ने|
                 आभा जी की बाते सुनकर,कांता के अंतर मे नई उर्जा का संचार हुआ ; पिछला सब कुछ भुलाने मे उसके अंतर्मन मे बहुत पीड़ा हो रही थी;पर उसने सब भुला कर एक नये सिरे से अपना जीवन आरम्भ किया|उसने ग्रेजुएसन किया | पोस्ट ग्रेजुएसन मे टॉप किया| आभा जी ने उसे कालेज मे लेक्चरार लगवा दिय|
                आभा जी के परिवार के नाम पर एक सास ही थी जो उनके साथ ही रहती है| कांता आभा जी के साथ ही रहने लगी| उन दोनों के बीच आत्मीय रिश्ता कायम हो गया था|
             '' क्या वेणु मुझसे इतना ही प्यार करते थे;एक घटना से ही प्यार छिन्न-भिन्न हो गया| वो मुझसे प्यार करते ही नहीं थे शायद मेरे तन से .....कांता आज भी ये सोच कर अपने अतीत का आकलन करने लगती है|
                         ''कांता के कॉलेज मे दो दिन बाद वार्षिक उत्सव होने जा रहा था|
                          ''कांता तुम्हे मंच संचालन करना है, कॉलेज की प्रिंसिपल उमाजी ने कहा|
एक के बाद एक सुन्दर प्रस्तुति पेश की गयी| कार्यक्रम लगभग दो घंटे चला|
              अंत मे अतिथियों को जल-पान कराने के बाद जब कांता स्टाफ रूम मे आयी| वहां एक जाना-पहचाना चेहरा पहले से ही मौजूद था |
                ''कांता घर चलो,मै तुम्हे ले जाने आया हूँ|, कांता के पति वेणुगोपाल ने कहा|
                 मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है| कांता आदमी के इस रूप को जानने की कोशिश करने लगी| पर वो पुरुष के दोहरेपन को नहीं समझ सकी | अपने को सभाला और बोली ;आपने बहुत देर कर दी |जिस कांता को लेने आप आये हो वो तो कब की अपने पति के दोगले व्यवहार के कारण दफन हो चुकी है | ये जो आपके सामने है वो उसकी जिन्दा लाश है| और वो कमरे से बहर आ गयी| उसे अब तक जो भ्रम था वो टूट गया था |
                     आभा जी ने सब देखा पर वो भी कुछ नहीं बोली कांता को लेकर वो अपने घर आ गयी |
     

शांति पुरोहित
               


















                       

               

Wednesday 15 January 2014

ख्वाब जो पुरे नहीं हुए

नेहा के पास जीने का कोई मकसद नहीं रहा, बस जी रही थी, क्युकि मरना उसके लिए इतना आसान नहीं था | एक के बाद एक समस्याओ से उसका जीवन घिरा रहता था| पता नहीं वो कैसे ये सब बर्दाश्त कर लेती थी |या फिर इसके आलावा और कोई रास्ता ही नहीं बचा था उसकी समस्याओ का कहीं पर भी कोई अंत नहीं था |
                  नेहा ने अपनी शादी को लेकर बहुत सपने सजाये थे,जैसे हर लड़की सजाती है | जैसे - उसके सपनों का राजकुमार जब उसके जीवन मे उसका जीवन साथी बनकर आएगा तो वो उसे दुनिया भर के सुखो से उसे नवाज देगा |
                 समय आने पर जब नेहा की शादी हुई ,ससुराल मे भरा पूरा परिवार था | सास नेहा से ज्यादा बड़ी बहु को चाहती थी | नेहा ने कुछ ही समय बाद सास के इस निर्णय को अपने अच्छे व्यव्हार से बदल कर  गलत साबित कर दिया | सास अब नेहा पर जान देने लगी | नेहा का पति एक प्राइवेट कंपनी मे काम करता था | तनख्वाह इतनी थी कि कुछ साल तो नेहा को उसके पति ने उसे हर वो सुख दिया, जिसकी उसने कल्पना की थी | बहुत खुश थी वो,उसकी गलती यही रही कि उसने कभी पति से ये नहीं पूछा कि इतना पैसा कहाँ से आ रहा है? क्या आपको इतने पैसे मिलते है ?
                        नेहा तो सुख के हिंडोले मे झूलती रही, समय बीतता रहा | दस वर्ष कब बीत गये पता ही नहीं चला | इसी दौरान वो दो बच्चो की माँ बन गयी | बच्चो के स्कूल के खर्चे शुरू हो गये थे | घर की जिम्मेदारी,बच्चो की स्कूल के खर्चे इन सब मे ,नेहा का पति के एशो-आराम खो से गये, अब ना तो वो नेहा को कहीं बाहर ले कर जाता,ना खुद ही कोई फिजूल खर्ची करता |
                          नेहा का इसमें क्या दोष था | उसे तो कभी ये अहसास ही नहीं होने दिया कि उसके पति जो पैसा एश-आराम मे खर्च कर रहे है वो उनकी कमाई के नहीं,बल्कि दोस्तों और रिश्तेदारों से उधार लिए हुए थे |
                     नेहा एक बहुत अच्छी लेखिका थी, साहित्य जगत मे नामचिन हस्ती थी | बचपन से ही उसे लिखने का शौक रहा है | अनेक पत्र-पत्रिकाओ मे उसके लेख -आर्टिकल छपते रहते है | अपने पति की आर्थिक हालत देख कर,नेहा ने मन ही मन एक फैसला किया |
                        ''मै अपनी एक कविता संग्रह की किताब छपवाना चाहती हूँ ,अगर आप मेरा साथ दे तो ,अपनी आर्थिक दशा भी सुधर जाएगी और मेरी इच्छा भी पूरी हो जाएगी जो बरसो से मेरे दिल मे दबी हुई है| नेहा की सास को भी,नेहा का ये आइडिया बहुत पसंद आया, ''इससे नेहा जो इतनी अच्छी लेखिका होने के बावजूद अपनी एक भी किताब नहीं छपवा सकी ,उसे भी लोगो के सामने अपना हुनर रखने का अवसर मिलेगा |, नेहा की सास ने नेहा के सर पर हाथ रखते हुए कहा |
                       नेहा ने कविता संग्रह छपवाने की तयारी शुरू कर दी | अपनी लिखी हुई एक से बढकर एक कविता को इकठा किया | लेकिन जब प्रकाशक के यहाँ गये तो नेहा को अपना ये सपना पूरा होता नहीं लगा | उसने जो कीमत मांगी वो नेहा के बूते मे नहीं थी | बात वहीँ की वहीँ रह गयी | नेहा और उसके पति ने प्रकाशक से बहुत मिन्नत की पर वो टस से मस नहीं हुआ |
                         घर की हालत बद से बदतर हो गयी | नेहा ने हांर नहीं मानी ,उसको अपनी किस्मत पर पूरा भरोसा था | एक दिन बाद ही नेहा का एक लेख स्थानीय अख़बार मे छपा, जो प्रतिभा शाली लोगो की प्रतिभा अवसर और पैसो के अभाव मे दफन हो जाती है| अगर कोई उनकी मदद को आगे आये तो उनकी प्रतिभा को चार चाँद लग सकते है| उस प्रकाशक ने भी ये लेख पढ़ा और ''मैडम मै आपकी कविता संग्रह छापने के लिए तैयार हूँ,जैसे बन पड़े पैसे चूका देना | अपनी बहन समझ कर आपकी मदद करना चाहता हूँ ,अगर आपको कोई एतराज न हो तो |,अंधे को क्या चाहिए दो आँखे -जैसे नेहा को दुनिया भर का सुख मिल गया हो ,जैसे वो किसी राज्य की राजकुमारी बन गयी ,इतनी ख़ुशी हुई उस भले आदमी की बात सुन कर |
                        नेहा के कविता संग्रह ने साहित्य जगत मे अपना एक विशिष्ठ स्थान बनाया | लोगो ने बहुत सराहा | कुछ ही दिनों मे सारी किताबे बिक गयी | नेहा की सास बहु की इस कामयाबी से बहुत खुश हुई | पर ऊपर वाले ने नेहा के जीवन मे ख़ुशी के पल कम ही लिखे है | पति एक दुर्घटना मे अपना एक पैर खो बैठा ,नौकरी से भी हाथ धोना पडा| लम्बे समय तक अस्पताल मे इलाज चला ,घर मे रखा एक एक पैसा इलाज मे चला गया |
                 अब तो नेहा के लिए घर चलाना मुश्किल हो गया| कभी -कभी तो राशन के लिए भी एक पैसा नहीं होता था पास मे| इस मुश्किल घड़ी मे दिमाग ने भी काम करना छोड़ दिया था| ''मम्मी आप फिक्र न करो अब मै बड़ा हो गया हूँ,घर की जिम्मेदारी मै उठाऊंगा|,नेहा के पंद्रह साल के बच्चे सिरिश ने कहा | नेहा उसको गले से लगा कर रोने लगी | ''तुम अभी बहुत छोटे हो,तुम अपनी पढाई मे ध्यान दो ,बहुत मुश्किल से तुम्हारे स्कूल की फीस भर पाती हूँ |
                      नेहा ने कभी नहीं सोचा,उसका जीवन काँटों भरा होगा ! उसके सारे सपने शादी के कुछ ही समय बाद प्रतिकूल परिस्थति के चलते दफन हो गये ,रह गये केवल दुःख और तखलीफ़ जिसके साथ उसको अपना बाकी का जीवन काटना है |
                   
                     
                 

फर्ज

ट्रिन-ट्रिन अचानक फोन की घंटी घनघना उठी,पीहू ने फोन उठाया सामने से बेटे रंजन की आवाज आई ''ममा, मै ,कल आ रहा हूँ;मेरा दीक्षांत समारोह सम्पन हो गया,अब मै आपके साथ कुछ दिन तो आराम से मस्ती करूंगा|' उसने सब एक साँस मे बोल कर फोन कट कर दिया;पीहूकुछ बोलने का मौका ही नहीं दिया|
                  पीहू और वरुण का बेटा रंजन जो सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज मे ऍम.बी .बी .एस .कर रहा था | पीहू आज रंजन के आने की खबर सुनकर बहुत खुश हो रही थी| इतने सालो बाद उसका राज दुलारा घर लौट रहा था| अभी से उसकी पसंद का खाना बनाने के बारे मे सोचने लगी;रंजन को मुंग की दाल का हलुवा मेरे हाथ का बना बहुत पसंद है| ''अरे ! मै अभी से उसकी पसंद के खाने के बारे मे सोचने लगी;पहले वरुण को तो बताऊ,'वरुण को फोन किया ''हेल्लो ,वरुण कल शाम को रंजन आ रहा है, वरुण तो ये खबर सुनकर उछल पड़ा,बोला ''अरे ! ये बहुत अच्छी खबर है;मै अपना काम जल्दी से खत्म करके अभी घर आ रहा हूँ|
                            पिहू ने रामू को बुलाया '' मेरे लिए चाय लाओ,
                                                               ''जी मेम साहब ,अभी लाया ,
                                      थोड़ी देर मे रामू चाय लेकर आया ,''मेम साहब चाय ,
                      पीहू चाय पीकर पलंग पर तकिये के सहारे लेट कर कुछ देर आराम करने के लिए बैठ गयी| आज फिर पिहू को रंजन के जन्म के समय की सभी यादे चल-चित्र की तरह एक-एक कर याद् आने लगी|
                          ''आप माँ बनने वाली है,पीहू ,डॉ ने जब कहा उस वक्त ह्मारी ख़ुशी का कोई पारावार नहीं था| डॉ.ने मुझे चेकअप के बाद कुछ दवाई और सलाह दी.हम घर आ गये| वरुण शादी के तुरंत बाद ही बच्चा नहीं चाहते थे |मेरी ''राजस्थान जुडिसियल सर्विस'' परीक्षा की तैयारी चल रही थी| वरुण चाहते थे की मै,अपनी पढाई पूरी करु;मैं मन लगाकर अपनी पढाई कर रही थी|
                   बस कुछ ही समय बचा था,परीक्षा होने मे,अचानक अख़बार दवारा सुचना आई,किसी कारण  से अब ये परीक्षा की डेट रद्द की जाती है| वरुण ने फिर परिवार पूरा करने का फैसला लिया;शादी को तीन साल हो गये थे,ससुराल वाले तो शादी होने के कुछ वक्त बाद ही अपने पोते-पोती के लिए आस लगा कर बैठ गये थे....पर वरुण इस बारे मे किसी की भी नहीं सुनता था|
                    वरुण मारुती कार उद्योग मे सी.ई.ओ.था|उसे अक्सर मिटिंग के किये शहर से बाहर जाना पड़ता था;कई बार विदेशी दौरे पर भी जाना पड़ता था| वरुण ने घर के तमाम काम करने के लिए एक बाई रख ली थी;डॉ. ने मुझे बेडरेस्ट करने के लिए बोला था|
                 कुछ समय बाद वरुण ने अपने डायरेक्टर से कह कर अपने टूर कैंसिल करवाकर ऑफिस मे ही ड्यूटी करने की इजाजत ले ली थी| मुझे हर पन्द्रह दिन बाद अस्पताल चेकअप के लिए जाना पड़ता था| समय अपनी गति से चल रहा था |
               उस वक्त वरुण घर मे ही थे,'''वरुण.मै जोर से चिल्लाई,मुझे अचानक दर्द होने लगा|' अभी कुछ दिन पहले ही डॉ. के पास जाकर आये है| मुझे 'लेबर पैन' होने शुरू हो गये थे;अभी तो सातवा महिना ही चल रहा था की ये पैन ! हम दोनों ही घबरा गये डॉ.के पास जाते ही मेरा ट्रीटमेंट चालू हुआ,डॉ. ने वरुण को बताया''बच्चा अभी निकालना पड़ेगा,नहीं तो पीहू को नुकसान हो सकता है|, वरुण के पास हाँ बोलने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था|
                         वरुण ने अपने परिवार वालो को इस बारे मे फोन से सुचना कर आने का बोल दिया| डॉ. ने ओपरेट करके बच्चे को निकाल दिया| डॉ. ने वरुण से कहा ''बहुत महंगा इलाज है,बहुत पैसे लगेंगे,|'वरुण के कहा'डॉ.अपने बच्चे को बचाने के लिए मै कुछ भी करूँगा,आप इलाज शुरू कीजिये,पैसे की परवाह मुझे नहीं है|'और उसने ऐसा किया भी|
                  प्री-मेस्चौर बच्चा था, तो उसे करीब दो माह अस्पताल के आई,सी.यु . कक्ष मे डॉ.की देख-रेख मे रखना पड़ा | इसी दौरान डॉ ,के सामने रोज एक नई समस्या आ खड़ी होती थी| पर ना तो वो कभी हिम्मत हारे ,और ना हमे कभी हमे निराश होने दिया| भगवान का भरोसा पूरा था| अपने बच्चे से इतने समय तक अलग रहना मेरे लिए बहुत मुश्किल था|  साथ ही हर दिन एक नई आशंका से घिरा आता था ,किसी अनिष्ट की आशंका से घिरे वो एक-एक दिन निकालना बहुत ही मुश्किल था | वो घर आया तो भी उसे पालना मेरे अकेली के बस का नहीं था;पुरे परिवार ने मेरा साथ दिया| वो समय निकालना मेरे लिए बहुत मुश्किल था| और उन्ही दिनों हम दोनों ने सोच लिया था कि हम हमारे बेटे रंजन ,को डॉ. बनायेगे, चाइल्ड स्पेस्लिस्ट बनायेगे | उस वक्त डॉ.हमारे लिए भगवान से कम नहीं थे| डॉ.के ही अथक प्रयास से हमारे बच्चे को बचाया जा सका था|  रंजन ने जब स्कूल की पढाई पूरी की तभी हमने उसे अपनी इच्छा के बारे मे बताया, ''रंजन मैंने और वरुण ने तुम्हे डॉ.बनाने के बारे मे सोचा है,क्या तुम हमारी ये इच्छा पूरी करोगे ?,मैंने रंजन से कहा | रंजन ने हमारा मान रखते हए, हमारी इच्छा को अपना कर्तव्य समझते हुए पूरी करने के लिए हाँ कहा और जी-जान से मेहनत  करने लगा|और आज उसने डॉ .बनकर हमारी वो इच्छा पूरी की| सोचते-सोचते कब शाम हो गयी पता ही नहीं चलता, वरुण आ गये थे | वरुण के आते ही घर मे रौनक आ जाती थी| वो आते ही खुद मेरे लिए चाय बनाते थे|
                        ''चलो जल्दी से तैयार हो जाओ,शौपिंग के लिए,रंजन के पसंद की बहुत सी चीजे लानी है|,वरुण ने कहा| हम दोनों ने रामू के साथ मिलकर अपने घर को सजाया, आज हमारा राजदुलारा डॉ,बनकर जो आ रहा था | रंजन समाज सेवा कर के अपना फर्ज अदा करना चाहता था |
      शांति पुरोहित |
         
                     
                 
                                 
                 

Saturday 11 January 2014

मंथन

            सीता के मन मे आज अपने तीस साल के वैवाहिक जीवन के बारे मे मंथन चल रहाहै|                                                                                                                                                          ''एक बड़े ऑफिसर की पत्नी हो तुम, अभी तक सलीके से रहना नहीं आया तुम्हे! गाँव को छोड़े बरसो हो गये है|,सीता को उसके पति रामलाल जी ने डाँटते हुए कहा| रामलाल जी को गाँव से शहर आये हुए तीस साल हो गये थे;पर सीता के रहन-सहन के अंदाज मे कोई बद्लाव नहीं आया,और वो चाहती भी नहीं थी| उसका मानना था ,इंसान चाहे दुनिया के किसी भी हिस्से मे जाकर रहे अपने शहर की भाषा,रहन-सहन कभी नहीं भूलना चाहिए| यही कारण था,सीता को अब तक शहर की हवा छु तक नहीं गयी थी|
                                   रामलाल जी और सीता मे अक्सर इस बात को लेकर झगड़ा होता रहता था| पति का स्वभाव बहुत गुसैल था,इसलिए घर मे इतने नौकर होते हए भी सीता उनका हर काम अपने हाथ से करती थी| सुबह से शाम तक सीता घर के काम मे नौकरों की मदद करती रहती थी| उसका सोचना था,घर की ग्रहणी जितना घर को सहेजती है,उतना नौकर नहीं कर सकता|
                                     रामलाल जी सरकारी खजाने मे ए.टी.ओ. की पोस्ट पर थे| पत्नी से कभी प्यार से बात नहीं करते थे;पर ऑफिस मे उनके सद्व्यवहार के और इमानदारी के चर्चे थे| जब तक पति ऑफिस नहीं चले जाते,सीता चैन की सांस नहीं ले पाती थी;पता नहीं कब किस बात पर उनका गुस्सा भडक जाये घर मे अशांति हो जाये| उम्र के इस पड़ाव तक उसने कभी चैन की सांस नहीं ली| फिर भी पति खुश नहीं|
                                     तभी नौकर ने आकर बताया ''मेम साहब,साहब आ गये|, सीता जल्दी से पोर्च की और गयी; देखा पति तमतमाए हुए दरवाजे की और ही आ रहे थे| वो डर के मारे वापस मुड गयी| रसोई घर मे चाय का पानी गैस पर चढाया,नाश्ते की तैयारी मे लग गयी|
                   चाय-नाश्ता लेकर वो बैठक मे गयी| वो तो हैरान रह गयी! पति बहुत गुस्से मे थे| साथ मे एक ऑफिस का कर्मचारी भी बैठा था| जैसे ही सीता बैठक मे पहुंची,उन दोनों मे हो रही बात -चित बंद हो गयी| सीता को कुछ समझ नहीं आ रहा था;हाँ,इतना जरुर वो जानती थी आजकल ये बहुत तनाव मे रहते है पता नहीं क्या हुआ है!
                          नाश्ता टेबुल पर रख कर वो अपने कमरे मे आ गयी| सोचने लगी कुछ तो हुआ है|ये तो मुझे कभी बतायेंगे नहीं| किसी अनिष्ट की आशंका से घबरा कर उसने मन ही मन कुछ तय किया| और वो गाँव की औरत सीता पहली बार अपने पति की आज्ञा के बिना घर से बाहर निकली|
                         रामलाल जी के दोस्त शर्मा जी उन्ही की ऑफिस मे कैशियर थे ;उनके घर जाकर अपने पति के बारे पता लगाया | वो ये सब जान कर हैरान रह गयी! ''भाभी जी हमने आपको बताया नहीं, आपको फ़िक्र हो जाती,रामलाल जी को किसी ने रिश्वत के झूठे केस मे फंसाया है| सब जानते है,वो कितना ईमानदार है,कभी किसी से एक पैसा नहीं लिया तो अब क्या लेगा,अब तो एक साल बाद रिटायर होने वाले है|,शर्मा जी ने कहा |
                                सीता घर आ गयी| शाम को उसने पति से कहा ''आपने अभी तक मुझे अपनी धर्मपत्नी बनने का सौभाग्य नहीं दिया,तभी आप अकेले इतने दिनों से परेशान हो रहे हो,मुझे कुछ नहीं बताया |,
                                 रामलाल जी ने पहली बार पत्नी के प्यार को महसूस करते हुए कहा ''कैसे बताता तुम्हे! कभी प्यार से तेरा नाम तक नहीं लिया| मै भीतर से कमजोर हूँ तेरे प्रति अपना वयवहार सब समझता था;पर बाहर से कठोर हूँ तो कभी तुम्हे अपने प्यार को महसूस ही नहीं होने दिया| पर तुमने फिर भी अपना पत्नी धर्म निभाया,मुझे माफ़ कर देना|पर तुम्हे पता कैसे लगा?
                                  '' मैने आपके दोस्त शर्मा जी से पता लगाया था, आप बिलकुल भी फ़िक्र ना करे,आप पर सबको पूरा भरोसा है| जल्दी ही आप दोष मुक्त हो जाओगे| ,पत्नी से ये सब सुनकर रामलाल जी ने राहत की साँस ली| पत्नी का अपने जीवन मे कितना महत्व है वो आज जान पाए थे|
       शांति पुरोहित
                           
                               
                                 
                 

Tuesday 7 January 2014

नई शुरुआत

अरे विमला ! ये क्या लगा रखा है ? पुरे दिन बस लिखती रहती हो,जैसे कोई बहुत बड़ी लेखिका बन जाने वाली हो.....सास ने जोर से चिल्लाकर कहा|
           विमला के पति गोविन्द ने ये सब सुना ,झट से आकर उसने विमला के कागज फाड़ दिए जिसमे वो  कहानी लिख रही थी| और जोर से चिल्ला कर कहा ''जब ये कागज ही नहीं रहेगे तो तो कहाँ से ये कुछ कर सकेगी|,विमला के कितने दिनों की मेहनत थे, ये कागज,जिसे गोविन्द ने एक पल मे खत्म कर दिया | उसे एक मौका मिला था,एक बड़े समाचार-पत्र के साप्ताहिक प्रष्ठ मे बड़ी कहानी भेजने का ,जिसे वो लोग मंगल वार को छापने वाले थे |
          उसने पूरी कहानी लगभग लिख ली थी | आज गोविन्द ने फाड़ डाली | ऐसा नहीं था कि झगड़ा आज ही हुआ है | विमला के लिखने को लेकर झगड़ा तो रोज ही होता था | पर आज गोविन्द ने उसकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया |
            विमला रोज ही सारे घर का काम खत्म करके,अपने बेटे को स्कूल भेज कर ही अपने कलम के साथ बैठती थी| फिर भी घर वालो को उसका लिखना अखरता था| उनके हिसाब से घर की बहु को ऐसा कुछ करना ही नहीं चाहिए ! बहु को तो केवल ससुराल वालो की सेवा करना और उनकी मर्जी के मुताबिक चलना चाहिए| पर बहु को भी अपने तरीके से जीवन जीने का हक होना चाहिए| हर पढ़ी -लिखी बहु को अपने कर्तव्य-पालन और मर्यादा निभाने के साथ अपना जीवन अपने तरीके के साथ जीने का हक भी होना चाहिए |
             विमला रोज तो ससुराल वालो का गुस्सा सहन कर लेती थी ,पर आज तो उसका गुस्सा भी फूट पड़ा| उसने भी कमरे मे जाकर गोविन्द के ऑफिस के जरुरी कागजात फाड़ डाले| विमला के इस पलटवार से गोविन्द हक्का-बक्का रह गया! वो तो कभी सोच भी नहीं सकता कि विमला ऐसा कुछ उसके साथ कर सकती है | वो सच मे डर गया गुस्से से घर से बाहर चला गया|
            सास भी सोचने को मजबूर हो गयी, चुप-चाप अपने कमरे मे चली गयी| विमला ने सोचा मैइतने वक्त से चुप थी,इनकी सारी बाते सहन करती थी,इसलिए इनकी हिम्मत बढती ही गयी| और जब मे कुछ गलत नहीं कर रही हूँ तो फिर क्यों डरूं ? क्या मुझे अपने तरीके से जीने का, कुछ करने का हक नहीं है इस घर मे ? सोचते सोचते ना जाने कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला |
             शाम को गोविन्द घर आया तब भी विमला गुस्से मे थी| गोविन्द अपनी माँ के कमरे मे गया| थोड़ी देर बाद दोनों माँ -बेटे वापस बाहर आये और विमला को कहा ''विमला हमसे गलती हो गयी है तुम्हारी कला का हमने अपमान किया,पर आज से तुम अपनी कहानियाँ लिख सकती हो | हमे अपनी गलती का अहसास आज तुमने ना कराया होता तो......|,विमला ने कोई जवाब नहीं दिया| अपने कमरे मे जाकर कमरा बंद किया और कहानी की वापस शुरूआत की.....शायद जीवन की कहानी की भी आज से नहीं शुरुआत की उसने .....
 शांति पुरोहित
           
              

Sunday 5 January 2014

सुकून

कितने साल इन्तजार किया था,ये दिन देखने के लिए ,तब जाके मालती की शादी तय हुई| दुनिया मे कितने सारे लोग होंगे जिनको इस बारे मे पता ही नहीं होगा, आज अचानक पता नहीं क्यों मेरे मन मे मालती का ख्याल आ गया | मालती हमारे पडौस मे रहने वाले रमाशंकर जी की बेटी थी|
             ''मावली, ''गुलाबपूरा, मे रहती थी मालती| गाँव मे हर परिवार मे पांच से छ बच्चे थे,पर मालती अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी |  उसके माँ-पिताजी को बहुत दुःख था बेटा नहीं होने का,पर उपरवाले की मर्जी को अपनी किस्मत मान लिया और बेटी को ही सब कुछ मान कर चैन से जीने लगे|
              बड़े प्यार से फूल की तरह बेटी को रखते थे|बेटी के पैदा होते ही बाप की कमाई दोगुनी हो गयी थी| तो उसके पापा, रमाशंकर प्यार से उसे लक्ष्मी बुलाने लगे| इतने छोटे गाँव की लड़की के लिए कोई अच्छा रिश्ता नहीं आ रहा था | मालती के पापा,मालती को पुराने रीती- रिवाज मानने वालो के घर नहीं ब्याहना चाहते थे,क्युकी उन्होंने अपनी बेटी को दसवी तक शिक्षा दिलाई थी| साथ ही मालती सुन्दर भी बहुत थी,जैसे -उपरवाले ने उसे बहुत फुर्सत मे बनाया हो| जो भी देखता उसे,बस देखता ही रह जाता
                    गाँव से उसको शहर भेजने की लिए परिवार और गाँव के ना जाने कितने लोगो को समझाना पड़ा, तब कहीं जाकर वो मालती को शहर भेजकर दसवी तक पढ़ा सके थे |
                     पास के शहर ''उदयपुर''के एक एक पढ़े-लिखे लड़के के साथ अब रिश्ता तय हुआ है| क्युकी लड़के के माता-पिता की ये इच्छा थी कि, लड़की सुन्दर और संस्कारी होनी चाहिए,तो ये लड़की मालती उनको भा गयी| लड़के की सोच थी कि दोनों पढ़े -लिखे होंगे तो अहम टकराएगा,घर मे रोज की कलह होगी सुन्दर तो वो थी, ,इसलिए उसे भी कोई एतराज नहीं था इस रिश्ते से|
                      लड़के वाले स्वतंत्र विचारो के थे,दकियानूस बिलकुल भी नहीं थे| मालती के पापा -मम्मी बहुत खुश थे| बहुत अच्छी शादी की,सब जमा-पूंजी लगा दी| रमाँशंकर जी ने मालती और उसके ससुराल वालो को बहुत कुछ दिया;लडके के परिवार वालो को इतनी उम्मीद नहीं थी| वो लोग तो अपनी पसंद की बहु पा लेने भर से ही बहुत खुश थे ;उस पर इतना सत्कार भी ....
                         बारात वापस रवाना होने का समय आ गया,तो रमाशंकर जी ने समधी जी से विनय पूर्वक निवेदन किया ,''हम चाहते है ,आप अभी नहीं सुबह चले जाओ|, पर लडके के पिताजी ने कहा ''आपने बहुत सत्कार किया,कोई कसर नहीं छोड़ी ;अब हम अपने घर जाकर अपनी बहु का सत्कार करना चाहते है,इसलिए हमे अभी जाना होगा |, और वो चले गये | सुना है ,होनी को कौन टाल सकता है, अभी बारात को रवाना हुए एक घंटा ही हुआ था कि अचानक रमाशंकर जी के पास किसी बाराती का फोन आया ''बस दुर्घटना ग्रस्त हो गयी,और दुल्हे पक्ष के पांच रिश्तेदार दुर्घटना स्थल पर ही मारे गये|,
                            रमाशंकर जी के होश उड गये,ये दुखद समाचार सुनकर| पत्नी को अलग बुलाकर कहा '' बारात की बस दुर्घटना ग्रस्त हो गयी है,मुझे अभी जाना होगा|,पत्नी ने कहा ''आप अकेले नहीं जा सकते मै भी चलूंगी|,मालती की माँ के दिमाग मे पुरे राश्ते यही चल रहा था कि अब मेरी मालती का क्या होगा?मालती को अब घर मे सब घ्रणा की नजर से देखेंगे| घटना स्थल पर पहुँच कर देखा,हाहाकार मचा हुआ था| सब लोगो के चेहरे उदासी मे घिरे हुए थे ;पोस्ट-मार्टम के लिए लडके के पिताजी वहीं रुक गये और बाकी सब लोगो को दूसरी बस से घर के लिए रवाना किया|
                          घर मे भी ये दुखद समाचार पहुँच गया था,वहां भी मातम छाया हुआ था| घर मे इक्कठा लोगो ने दबी जुबान मे नई बहु को अभागी,भाग्यहीन कहना शुरू कर दिया था| ''बहु के पैर घर मैं पड़ते ही घर की ख़ुशी मातम और रोने धोने मे तब्दील हो गयी ;आगे जाकर पता नहीं क्या होगा इस घर का ? ''मालती की सास नैना देवी ने जब अपने कानो ऐ लोगो को ये कहते हुए सुना, तो वो अपना सब दुःख भुलाकर जोर से बोली ''कोई इस दुःख की घड़ी मे हमारे साथ रहना चाहे, तो ठीक ,पर कोई भी हमारी नई बहु के बारे मे कुछ भी उल्टा सुलटा नहीं बोलेगा;इसमें उस मासूम का कोई कसूर नहीं| किसी के भी करने से कभी किसी का कोई अनिष्ट नहीं होता है|ये तो सब किस्मत का लिखा होता है |''
                       जैसे ही बारात वापस दुल्हे के दादा कृपा शंकर जी ने अपनी रोबीली आवाज मे अपनी बड़ी बहु से कहा ''नैना बहु,नई बहु का विधिवत स्वागत करो'बाद मे रोना धोना होगा|'' दुर्घटना मे कृपाशंकर जी ने अपना छोटा पोता,और चार अन्य रिश्तेदार खोये थे | बहु रोने लगी थी ;कहीं न कहीं वो अपने को इन सबका जिम्मेदार मानने लगी थी |दादाजी और कोई भी घर का व्यक्ति बहु को इसका कारण बिलकुल ही नहीं मान रहे थे| नैना देवी ने अपनी बहु का  स्वागत किया' बहु -बेटे की आरती उतारी;तब बहु का गृह-प्रवेश कराया| तो लोगो को बड़ा आश्चर्य हुआ! बहु के माता-पिता भी ये सब देख रहे थे| रामशंकर जी ने अपनी पत्नी से कहा ''हमने वाकई अच्छे विचारो वाले घर मे अपनी बेटी का ब्याह किया है और वो सुकून से अपने घर चले गये |
     शांति पुरोहित