Wednesday 27 August 2014

गीतिका

गीतिका 
नेह मेह अति बरसे
होकर बेकाबू नभ से
मेघ छोड़ अब पीछा
अवनि पुकारे कब से
हुआ बहुत जल प्लावन
त्राहिमाम करे सब रब से
बरसों जहाँ हो सूखा
मिले निजात अजल से
कितनी कहाँ हो बारिश
पूछो कभी भू तल से
हुआ बहुत जल प्लावन
करे शान्ति पाठ रब से
************************************शान्ति

Monday 25 August 2014

सौरभ के संग खिलते सुमन 
      बौराए मधुप करे गुन-गुन 
गुलशन में आयी बहार सुगंध 
       कुहू कोकिल गाये मिठ्ठी धुन 
ह्रदय कुञ्ज रंग राग उमंग 
       लाल कनेर मस्त गुलमोहर 
चिताकर्षक वन खग विहग 
        बौराए मधुप करे गुन- गुन 

Sunday 24 August 2014

माँ तुम हो.........

माँ हर पल जागने वाली 
खुद के जाये की फ़िक्र करने वाली 
दुआओ से झोली भर देने वाली 
दर्द हो साथ फिर भी खुश दिखने वाली 
आज सो गयी 
चादर ओढ़ कर 
हमेशा के लिए 
धवल काया काली पड़ गयी 
थम गया वक्त 
जब माँ सो गयी 
शांत चिर निद्रा में 
अंतस चीत्कार कर उठा 
खालीपन माँ के ना होने का 
माँ की हर याद से भरेगा 
अहसास हर पल ये 
माँ तुम अपने अंश में 
अहसास रूप में जिन्दा हो 
मा तुम हो माँ तुम हो
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Friday 22 August 2014

माँ के लिए...........

माँ ...के लिए ------



''माँ, ईश्वर की सबसे श्रेष्ठ रचना है | हम जब भी अपनी माँ को पुकारते है तो वाणी में श्रद्धा और कृतज्ञता भर जाती है | माँ पुकार सुन कर तुरंत हमे अपने स्नेहांचल में छुपा लेती है| माँ की महिमा अपार है| जब हम दुःख में होते है तो परमात्मा को नहीं माँ को ही याद करते है | माँ - करुना,प्रेम और त्याग की धारा है| एक बच्चे के लिए माता का स्वरूप पिता से बढ़कर है ; क्युकी वो उसे गर्भ में धारण करती है पालन पोषण भी करती है | जिस क्षण शिशु का जन्म होता है उसी क्षण माता का भी जन्म होता है| पर हम सब ये भूल जाते है कि माँ कितना कष्ट सहन करती है| हालांकि ये भी सत्य है कि शिशु जन्म से ही औरत माँ बनकर दुनिया का सबसे बड़ा और अमूल्य सुख भोगती है | माता के लिए उसके बच्चे से बढ़कर कोई सुख बड़ा नहीं होता है|
               पिता से पहले माता का ही नाम बच्चा लेता है | माता की सच्ची पूजा तो बच्चो का सचरित्र होने में है| माँ तभी खुश होती है जब उसका पुत्र यशस्वी हो | पुत्रिया तो दो वंश को अपने गुण से महकाती है | अपने शिशु के मूक कंठ को माता ही भाषा के बोल प्रदान करती है | इसलिए संसार के प्रत्येक कोने में अपनी भाषा को ''मातरभाषा'' कहा जाता है|
   आदि शंकराचार्य जी ने माँ के अलावा कभी किसी की सत्ता स्वीकार नहीं की|सांसारिकता से सम्बन्ध ना रखने वाले आदि शकंराचार्य जी भी माँ की भक्ति और माँ का त्याग नहीं कर सके थे|  हमारे देश में तो नदी,तुलसी  और गाय को भी माता के समान पूजा जाता है |
             पर आज के युग में माता के प्रति भाव भिन्न हो गये है| ये तो सर्वविदित ही है कि माता से पहले पिता ये संसार छोड़ कर जाते है;तब पीछे से पुत्र -पुत्रवधू स्वार्थ और सुख-सुविधाओ के वशीभूत हो कर माता को या तो नौकरानी की तरह रखते है या वो अकेली एक कोने में रहने को मजबूर होती है | जिस पुत्र को अपना रक्त पिलाकर,अपना समस्त सुख-दुःख त्याग कर बड़ा करती है ; वही पुत्र माँ को उनकी असक्त अवस्था में बोझ तुल्य समझने लगता है |                                                                                                                                             माँ सब कुछ बिना बताये ही जान लेती है
              अपने बच्चो की आँखे देखकर ही उनके मन की बात जान लेती है
              उनका भूत ,भविष्य और वर्तमान की चिंता में अपने को सहर्ष खपा देती है
              माँ तुझे कोटि -कोटि प्रणाम -शत -शत नमन                                                                                                                                                            चित्र -गूगल से साआभार ***********                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      

मुक्तक

मुक्तक 
गले लगाती जिंदगी दर्द देते अपने
टूट जाते जब देखे सोचे कुछ सपने
होता है मुश्किल जीना दर्द के साथ 
ख्वाब शांती तोडे मिलकर सब अपने
**********शान्ति पुरोहित**************

सौरभ के संग खिलते सुमन 
      बौराए मधुप करे गुन-गुन 
गुलशन में आयी बहार सुगंध 
       कुहू कोकिल गाये मिठ्ठी धुन 
ह्रदय कुञ्ज रंग राग उमंग 
       लाल कनेर मस्त गुलमोहर 
चिताकर्षक वन खग विहग 
        बौराए मधुप करे गुन- गुन 

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मुक्तक

इतने बड़े जहाँ मे जी रहा हूँ अकेला 
कोई नही यहाँ मेरा हूँ निपट अकेला
स्वार्थी दुनिया स्वार्थियो का मजमा
निकल गया मै आगे पीछे छूटा मेला

गीतिका

जीवन है एक सुंदर सपना
लगता यहाँ हर कोई अपना 
कभी हँसाती कभी रुलाती 
कभी दिखाती प्यारा सपना 
जैसा भी प्रभु का दिया है
भोग रहे है मान कर अपना 
नही शिकायत इष्ट देव से 
करते सदा उनकी वन्दना 
आराध्य ही पार है लगाते 
आराधना ही ध्येय अपना 
शान्ति पुरोहित 

Tuesday 19 August 2014


देते ज्ञान गीता का *****देखो कृष्ण सुजान
करो कर्म पार्थ तुम ****कर्ता मुझको मान
कर्ता मुझको मान *****छोड़ो मोह पिपाशा 
अपना पराया छोड़ ****लिखो धर्म परिभाषा
कह शांति समुझाय****झूठ के रिश्ते नाते
महासमर कौंतेय***** केवल धर्म निभाते
****************शान्ति पुरोहित *************

Tuesday 12 August 2014

स्वाधीनता दिवस के उपलक्ष्य में

स्वाधीनता दिवस के उपलक्ष्य में
आजाद हिन्द
शहीद सहादत
भारत रत्न
******************
गुलामी बेडी
अगस्त क्रांति तोड़ी
फहरा ध्वज
********************
तांका 5 7 5 7 7
देश नमन
हिमालय मुकुट
जननी गंगा
सदा जय गुंजित
सर्व धर्म रक्षित
*****************शान्ति पुरोहित
       तुम रानी बनकर राज करोगी जब तुम किसी के घर की शोभा बनोगी |
         तुम जिस घर में जाओगी उस घर का बन्टाधार हो जायेगा |
''तुम बहुत भाग्यशाली हो|
एकदम गुलाब के फुल की तरह सुवासित होजब तुम पैदा हुई ना तो तेरे बाप को अपने व्यापर में बहुत बड़ा आर्डर मिला और हम उतरोतर तरक्की करते गये |
      तुम अभागी होउस कांटे की तरह जो शूल बनकर चुभता है तुम्हारे जन्म के दिन ही तुम्हारे बाप का काम-धन्धा सब चौपट हो गया हम रोटी को भी मोहताज हो गये थे 

धन और सम्पनता लडकी के भाग्य से कब और कैसे जुड़ गया? अर्थ को लडकी से जोड़कर इतना जहर क्यों उगला जा रहा है लडकी उदास बैठी सोच रही है

Monday 11 August 2014

                                                                        
                                            
 तांका



      कटते वृक्ष 
फाड़ भी कटते 
जल दोहन 
प्रकृति का दोहन 
धरा विनाश सहे 


नियति नटी 
मानव को नचाये 
चाहे ना चाहे 
बहु रंग दिखाए 
मनु जान ना पाए