Friday 22 November 2013

विदाई

                                                                       
                                                                                                   प्रिया, अपने भाई की बड़ी दीदी थी | वो भी मात्र पंद्रह साल की बस !  परिस्थिति ने प्रिया को बड़ा बना दिया | उसका बचपन अपने भाई की देख-भाल और घर की सारी जिम्मेदारी उठाने मे कहीं खो गया | दिव्या प्रिया की माँ, असमय इस दुनिया से सबको छोड़ कर चली गयी |
                     दिव्या बहुत ही नेक -दिल इंसान थी | दुसरो का भला करने की उसमे गजब की आदत थी | जैसे -दिव्या का जन्म परोपकार के लिए ही हुआ हो | अतिश्योक्ति ना होगी अगर कहूँ, कि परदुख कातरता उसमे कूट -कूट कर भरी हुई थी | पड़ोस मे या परिवार मे किसी को दिव्या की जरूरत हो वो तुरंत उनके पास अपना सब काम छोडकर पहुँच जाती | किसी की शादी हो या कोई बीमार हो उनकी सेवा करना उनके काम आना यही जैसे उसके जीने का लक्ष्य था |सिर्फ तन से ही नहीं वो धन भी खर्च करती थी | कई गरीब लडकियों की शादी मे उसने पैसा लगाया है |
               दिव्या अपनी गृहस्थी मे पति ,सास और दो बच्चो के साथ बहुत ही खुश थी | रेलवे मे काउंटर बाबू की नौकरी करती थी |पति किशोर कॉलेज लेक्चरार थे | दस बजे अपने ऑ|फिस जाने से पहले किशोर और दोनों बच्चो को भेजने की तैयारी मे लगी रहती | रोज सुबह घर मे उनकी जरूरत की चीजो के लिए दिव्या को इधर से उधर भागना पड़ता है, पर वो उफ़ तक नहीं करती है | उसे तो जैसे ये सब करने मे आनंद की अनुभूति होती है | और क्यों ना हो, एक औरत की ख़ुशी अपने परिवार को खुश देखने मे ही है |
                 सुबह की पहली किरण के साथ ही दिव्या बिस्तर छोड़ काम मे जुट जाती थी | 'मम्मी मेरा बैग तैयार है न |' प्रिया बाथरूम से ही चिल्लाती है | ' मम्मी मेरा लंच -बॉक्स रेडी हुआ की नहीं |, पंकज ने जुते की लेस बांधते हुए कहा |'
                 'हाँ ,हाँ सब तैयार है बस तुम आकर नाश्ता करलो तो तुम्हारे पापा ,को भी नाश्ता दे दू | दिव्या ने कहा |, सब को भेजने से पहले ही मांजी को चाय देनी होती है | सबकी जरुरत पूरी करते -करते वो खुद भी तैयार हो जाती थी | गजब की फुर्ती थी दिव्या मे उसकी सास रोज ही कहती है |
                    धीरे -धीरे समय बीत रहा था ,बच्चो का स्कूल ख़त्म होकर अब कॉलेज शुरू होने वाला था | बच्चे अगले साल कौनसी कॉलेज जायेंगे ,घर मे रोज यही बाते चल रही है | एक दिन सुबह दिव्या के सीने मे असहनीय दर्द होने लगा | किशोर घर पर ही थे जल्दी से गाडी निकाली और दिव्या को शहर की सबसे बड़ी हार्ट होस्पिटल मे ले गया | डॉ, ने तुरंत ही एडमिट करके इलाज शुरू किया | करीब एक महिना तक इलाज चला | आज दिव्या को डिस्चार्ज किया जाना था बच्चे खुश थे उनकी मम्मी इतने दिनों के बाद ठीक होकर घर आ रही है | किशोर की माँ ने बहु को खूब आशीर्वाद दिया और ठीक होकर वापस घर और बच्चे को सँभालने को कहा |
                         होना तो कुछ और ही था घर आने के चार दिन बाद ही दिव्या बच्चो को रोता छोड़ कर इस दुनिया से चली गयी | किशोर बच्चो के सामने रो भी नहीं सकता| बच्चे दादी से बार -बार पूछ रहे है कि हमने एसा क्या पाप किया कि हमारी माँ हमे अकेला छोड़ कर चली गयी | बच्चो का रुदन किसी से भी नहीं देखा जा रहा था | दिव्या को लाल जोड़ा पहनाया गया  , लाल बिंदी और किशोर से मांग भरवाकर सुहागिन के वेश मे अंतिम सस्कार के लिए ले जाया गया |
                        समय बीतता गया बच्चे अब बड़े हो गये घर मे कोई औरत हो इसलिए बेटे की शादी पहले की गयी | प्रिया की शादी भी तय हो गयी है एक माह बाद प्रिया की शादी होनी है घर मे अभी से तैयारिया शुरू हो गयी | आज प्रिया की मेहँदी है | कल हल्दी और महिला संगीत रखा है | सब काम हो रहे है बच्चो को अपनी माँ आज कुछ ज्यादा ही याद आ रही है | प्रिया उदास अपने काम मे लगी है | महमानों की भारी भीड़ मे प्रिय अकेला महसूस कर रही है |अपनी माँ को ढूंड रही है | माँ के वयवहार के कारण बहुत लोग शादी मे प्रिया को आशीर्वाद देने के लिए आये है | मेंहमानों का तो जैसे ताँता लग गया | सब अपनी और से गिफ्ट भी लेकर आये है|किशोर को प्रिया को देने के लिए कुछ भी लाना नहीं पडा सब सामान की व्यवस्था मिलने वाले लोगो ने कर दी थी  अब प्रिया को लग रहा है कि मेरी मम्मी कितनी महान थी | जब दिव्या गयी तब प्रिया बहुत छोटी थी कुछ समझ पाने की हालत मे नहीं थी | सब लोग उनको जैसे आज सच्ची श्रदांजली देने आये है मुझ बिन माँ की बेटी को अपना प्यार और आशीर्वाद देने की जैसे होड़ मच गयी है |
                         आखिर प्रिया की विदाई का टाइम भी आ गया|सब ने प्रिया की विदाई को जैसे विदाई महोत्सव बना दिया | एक -एक कर सब गले मिल रहे थे | अंत मे प्रिया की दादी ने उसकी सास को कहा कि 'ये बिन माँ की बच्ची है इसे आप बहुत प्यार से रखना |, दुल्हे राजा और उनके परिवार के लोग प्रिया को डोली मे बिठाकर अपने घर ले गये | पापा और दादी को अकेला छोड़ कर आज प्रिया अपने ससुराल चली गयी सब की आँखे नम है |

Wednesday 20 November 2013

ख्वाहिश दिल की

फैशन डिज़ायनर रूपा का अपने बुटिक मे आते ही काम मे व्यस्त हो जाना, अपने स्टाफ को काम समझाना,ये उनका डेली का रूटीन था |फैशन डिजा
 '' मिस डिसूजा , मिस रूबी का आर्डर रेडी हुआ की नहीं ? डिसूजा कुछ जवाब देती, उससे पहले ही रमेंद्र से पूछ बैठी '' आस्था मेंम ,की ड्रेस के लिए कल जो डिजायन आपको दिया था ,वो ड्रेस रेडी हुई की नहीं ?
    अरे ! जल्दी -जल्दी सबके आर्डर तैयार करो ! दीपावली का त्यौहार है सबको समय पर अपना आर्डर चाहिए होता है |पर आज रूपा का मन कहीं और है वो ऑफिस मे आराम कुर्सी मे बैठ गयी | त्योहारी सीजन के चलते सास लेने भर की भी फुर्सत नहीं है | थकान सी हो रही थी | उठकर ऑफिस की खिड़की खोली तो हल्की सुनहरी धुप  ऑफिस मे प्रवेश कर गयी | दिसंबर माह मे धुप सुहानी लगती है | धुप मे बैठना रूपा को बचपन से ही अच्छा लगता था |
            रूपा धुप का आनंद लेने लगी | दिमाग को एकांत मिलते ही मन गुजरे वक्त की खटी -मीठी यादो मे गोते लगाने लगा | 'इकलौती संतान थी ,पापा मुझे डॉ. बनाना चाहते थे वो खुद भी डॉ. थे | वो अपना क्लिनिक मुझे सौप कर खुद लोगो की फ्री सेवा करना चाहते थे | मेरी रूचि फैशन डिजायनर बनने मे थी | अपना खुदका बुटिक खोलना चाहती थी | मम्मी हमेशा मेरा ही साथ देती थी | पापा को समझाती 'आप क्यों अपनी मर्जी बच्ची पर थोप रहे हो ,उसे जो करना है करने दो ? पापा को मम्मी की बातो से कोई फर्क नहीं पड़ता था वो अपनी जिद पर अड़े थे और मै अपनी ....
            आखिर मेरा सीनियर का रिजल्ट आने के बाद मम्मी ने पापा को समझा-बुझा कर मेरा एडमिशन फैशन डिजाइनर के कोर्स के लिए करवा दिया था | मै बहुत खुश थी | अभी मेरा डिप्लोमा पूरा हुए एक माह ही बीता था कि पापा -मुम्मी ने मेरा रिश्ता एक इंजिनियर लड़के निलेश से पक्का कर दिया था | बहुत कोशिश की ,अभी शादी ना हो ,मै पहले अपना बुटिक खोलना चाहती थी | पापा ने मेरी एक न सुनी और कुछ समय बाद शादी हो गयी | मेरी इच्छा मेरे मन के किसी कोने मे दब कर रह गयी |
           ससुराल मे पति निलेश के पापा- मम्मी एक बहन और दादी थे | नई बहु से सबको बहुत सी अपेक्षाए होती है यहाँ भी थी |सब की इच्छा पूरा करने मे अपना सपना याद ही नई रहा | निलेश की जॉब अभी लगी ही थी तो वो मुझे बहुत कम समय दे पाते थे |अक्सर टूर पर जाना होता था | समय अपनी गति से चलता रहा | एक साल बीत गया | आखिर आज निलेश के जन्मदिन के अवसर पर अपनी बात कहने का मौका मिला '' मुझे बुटिक खोलना है प्लीज मेरी मदद कीजिये न आप , मैंने बहुत ही प्यार से कहा |
          अरे ! इसमें प्लीज बोलने की क्या जरुरत है ?
          तुममें योग्यता है ,काम करना चाहती हो मै कल ही लोकेशन देख कर बताता हूँ |
तम्हारा साथ देना मेरा फर्ज है ,मै आज बहुत खुश थी | पर जैसे ही सासु माँ को पता चला उन्होंने तुरंत आदेश दे दिया '' पहले हम घर मे अपने पोते -पोती को देखना चाहते है बुटिक बाद मे खोलना |, माजी का आदेश था तो निलेश भी चुप रह गया | मै एक बार फिर मन मसोस के रह गयी |
            दिन ,महीने ,साल निकलते रहे ,इसी दौरान मै एक बेटी और एक बेटे की माँ बन गयी थी | अब तो मेरा एक ही काम रह गया था बच्चो ,निलेश और ससुराल वालो की सेवा करना | इन सब के बीच मेरी कला अपना दम तोड़ रही थी | कभी नहीं सोचा था कि मेरी पढाई और मेरे हुनर का ये हाल होगा | निराशा मेरे अन्दर घर कर  गयी |
             समय बीतता रहा अब मेरी बेटी नीता कॉलेज जाने लगी और बेटा निर्भय भी अगले साल कॉलेज  जाने लगेगा | अगले सप्ताह नीता के कॉलेज मे वार्षिक उत्सव होने वाला था नीता ने फैन्सी ड्रेस प्रतियोगिता मे भाग लिया था| उसने टेलर से जो ड्रेस बनवाई वो उसे बिलकुल भी पसंद नहीं आयी | नीता उदास हो गयी | आज फिर किसी अन्य टेलर के पास गयी | बेटी की उदासी मुझसे देखी नहीं गयी | तभी मुझे अपनी कला का ख्याल आया मैंने आज अपनी कला का उपयोग करके बड़े ही मनोयोग से बेटी के लिए ड्रेस तैयार करली |
             शाम को जब नीता उदास चेहरा लेकर घर वापस आयी | ''कुछ काम नहीं बना क्या ? मैंने पूछा | नहीं माँ , तभी उसके हाथ मे वो ड्रेस रखी मैंने | नीता ख़ुशी से उछल पड़ी ''वाह माँ , आपने कहाँ से बनवाई ड्रेस ?,
            बहुत अच्छी है मुझे एसी ही ड्रेस चाहिए थी |, तभी मेरी सासु माँ ने उसे कहा 'तेरी माँ रूपा ने ही बनाई है | आज हमे अपनी गलती का एह्सास हो रहा है | ' किस गलती का दादी , नीता ने कहा | रूपा बह इतनी टेलेंटेड है पर हमने इसे घर के कामो मे लगा कर रखा,  इसकी कला का कभी सम्मान नहीं किया |, सासु माँ ने कहा |
              तो नीता बोली '' अब भी मम्मी अपना बुटिक खोल सकती है, अब तो हम भी अपना काम खुद कर सकते  है | शाम को निलेश आया सासु माँ और नीता ने उन्हें सब बताया | नीता ने पापा से कहा ,मम्मी इतनी योग्य थी ,अपना बुटिक खोलना चाहती थी ,तो आपने मम्मी को सपोर्ट क्यों नहीं किया ?,एक पति को तो अपनी पत्नी की योग्यता की कद्र करनी चाहिए थी | निलेश को सच मे अपनी ग़लती का एहसास हुआ और  निलेश ने अगले ही दिन अति व्यस्त बाजार मे एक दुकान देखली और जोरो से तैयारिया चलने लगी | प्रतियोगिता मे नीता का पहला स्थान आया | नीता भी मेरी मदद करने मे लग गयी |
   आखिर पांच माह के बाद आज मेरे बुटिक का उद्घाटन था | जो मैंने अपनी सासु माँ और ससुरजी के हाथो कराया | बहुत सारे कपड़े लोगो ने खरीदे साथ ही इतने आर्डर आये मे एक साल तक के लिए एक साथ व्यस्त हो गयी | आज तो मेरे बनाये कपड़े देश के अन्य भागो मे भी जाने लगे है | ये सब मेरी बेटी और सासु माँ के कारण ही हुआ है | मेम चाय , मिस डिसूजा की आवाज से मेरा चिंतन ख़त्म हुआ | जब जागो तभी सवेरा वाली बात मुझ पर फिट बैठी है | आज मेरा वर्षो पहले देखा सपना या यू सोच लीजिये कि मेरे जीने का मकसद अब मुझे मिला है |
 
शांति पुरोहित



माँ के लिए.........

                                                                                                                                                                                               
Cover Photo                                                                                                                                                                                                                                       शोर्य को स्कूल और पति संजय के ऑफिस जाने के बाद संगीता, लोन मे बैठ कर चाय के साथ अख़बार पढ़ती थी,ये उसकी रोज की आदत थी | अन्दर का पेज जैसे ही खोला एक समाचार पर नजर पड़ी ,पूरी खबर पढने लगी जो इस प्रकार थी| सेठ दीनानाथ की दूकान का वफादार मुनीम, बीस हजार रुपया ले कर फरार हो गया |
            ये कैसे हो सकता है?, इतना ईमानदार था ,मुनीम रामसिंह ,फिर उसने ऐसा क्यों किया ?, संगीता हैरान रह गयी ये खबर पढकर ! दीनानाथ जी संगीता के पडौसी होने के नाते उनका एक दुसरे के घर आना -जाना होता रहता था | फिर उनकी पत्नी संगीता की सहेली भी थी |
            उस दिन दीनानाथ जी के घर उनके पौत्र चिन्मय की जन्म दिन की पार्टी का अवसर था | रिश्तेदारों के आलावा, शहर की जानी -मानी हस्तिया पार्टी मे शिरकत करने वाली थी | सेठ दिनानाथ जी शहर के रसूखदर आदमी थे | उनका तैयार वस्त्रो का बहुत बड़ा शो रूम था | परिवार मे दो बेटे और एक प्यारी सी बेटी दिव्या थी |
                  बेटी ने M.B.B.S.किया और अपने साथ ही पढने वाले डॉ. विक्रम से उसकी शादी कर दी | और वो अपने ससुराल चली गयी | छोटा बेटा कमलेश पढने के लिए विदेश गया, वहीं पर काम करने लगा, वहीँ की गौरी लड़की के साथ ब्याह कर लिया | दीनानाथ जी और उनकी पत्नी ने बेटे की जिद के आगे समझोता कर लिया | बड़ा बेटा विमलेश, ही परिवार सहित इनके पास रहता था | यहाँ का सारा काम -धंधा ,ये दोनों बाप -बेटे मिलकर सम्भालते थे |
               आज तो सुबह से ही हवेली के सभी नौकर हवेली को सजाने मे लगे हुए थे | दीनानाथ जी के पर -दादा के ज़माने की बहुत बड़ी हवेली थी | रख -रखाव के लिए नौकरों की फौज लगी रहती है |
                    शाम के सुहाने वक्त मे पार्टी शुरू हो चुकीं है | दीनानाथ जी आगन्तुको के स्वागत के लिए दरवाजे पर खड़े,उनका अभिवादन स्वीकार कर रहे है | पास ही खड़े उनके बेटे विमलेश की गोद मे चिन्मय को तोहफा भी दे रहे थे | पार्टी मे खाने -पीने के साथ नाच -गाने का भी प्रोग्रेम था| पार्टी अरेंज करने मे पैसा पानी की तरह लगाया था | सभी लोग पार्टी का आनंद ले रहे थे, वहीँ सेठ का एक नौकर रामसिंह, ये सब देख कर दुखी हो रहा था | उसका सोचना था कि,दिखावे के लिए ये बड़े लोग इतना पैसा खर्च कर सकते है,और एक जरूरत मंद इंसान को पैसा उधार भी नहीं दे सकते है?,
               पिछले दस दिनों से रामसिंह सेठ से अपनी माँ के इलाज़ के लिए बीस हजार रुपया उधार मांग रहा था ,पर सेठ के कान मे जैसे ये बात गयी ही नहीं हो | पैसा पास मे नहीं है, तो क्या माँ को बिना इलाज मर जाने तो नहीं दे सकता ? एक के बाद एक विचार रामसिंह के दिमाग मे आ- जा रहे है | आखिर उसने मन ही मन कुछ निश्चय किया ,और मौका पाकर सेठ की दुकान की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए | दुकान के गल्ले मे से रुपया निकाला और घर चला गया |
              दुसरे ही दिन अपनी माँ को इलाज के लिए शहर ले गया | डॉक्टर के प्रयास और रामसिंह की सेवा से माँ जल्दी ही अच्छी होने लगी | एक दिन माँ ने पूछा 'मेरे इलाज के लिए इतने पैसे कहाँ से लाया बेटा ?' माँ सेठ से पेशगी लाया हूँ | पर सच्चाई तो कुछ और ही थी , जिसे सिर्फ वो ही जानता था |
              दुसरे दिन सेठ ने दूकान के गल्ले मे देखा तो पैसे कम मिले |,और आज रामसिंह भी अभी तक नहीं आया | सेठ को समझते देर नहीं लगी कि रामसिंह ही रुपया लेकर फरार हुआ है | सेठ ने पुलिस थाने मे रिपोर्ट लिखवानी चाही पर सेठानी ने रामसिंह की माली -हालत और परेशानी का सोच कर पुलिस थाने मे रिपोर्ट लिखवाने से मना किया |  सेठ ने इस घटना को फिलहाल भूल जाने मे ही अपना भला समझा | कहीं ना कहीं सेठ अपने को ही इस घटना का जिम्मेदार समझ रहा था | काश ! मुझे  रामसिंह की मदद कर देनी चाहिए थी |
              रामसिंह की मेहनत रंग लाई, माँ अब ठीक हो गयी तो रामसिंह अपने खेत को ओने -पोंने भाव मे बेच कर , बीस हजार रुपयों के साथ सेठ के सामने हाजिर हो गया | विनम्र  भाव से बोला ' मैं गुनाह गार हूँ मैंने आपका विस्वास तोडा है | जो सजा देंगे भुगतने को तैयार हूँ | माँ को बचाने के लिए मुझे ये सब करना पडा | मेरी नौकरी ,मेरी बदनामी से ज्यादा मुझे अपनी माँ की जान ज्यादा प्यारी थी | जिसे बचाने के लिए मुझे ये सब करने पर विवश होना पडा | और सेठ को पैसा लौटा कर माफ़ी मांगने लगा | सेठ को पहले तो गुस्सा आया पर खुद को भी जिम्मेदार मानते हुए आगे से फिर कभी ऐसा मत करना बोलकर उसे माफ़ कर दिया |साथ ही ये भी सन्तोष था कि इतने रुपयों मे से केवल बीस हजार रुपया ही ले कर भागा है | पर रामसिंह ने विश्वास तोडा ये सेठ के लिए सोचने वाली बात थी | और उसकी माँ के प्रति एसी भावना देख कर मन ही मन बहुत खुश हुआ | रामसिंह अपनी माँ के सामने किसी भी चीज को तुच्छ समझता है | तो मालिक के फायदे लिए भी कुछ भी कर सकता है | और उसे वापस काम पर रख लिया |
 शांति पुरोहित 

सरकारी अफसर

 आज ऑफिस की छुट्टी है| सिरिष ड्राइंग रूम मे कपिल के साथ बैठा है | कपिल की नन्ही -नन्ही शरारते देख रहा है | कुछ देर की मस्ती के बाद कपिल थक कर सो जाता है सिरिष उसे उठाकर पलंग पर सुला देता है | खुद भी तकिये का सहारा लेकर लेट जाता है,अपने गत जीवन के चिंतन मे खो जाता है |
                  रीमा पिछले बीस -पच्चीस दिनों से हॉस्पिटल के आई .सी .यू .वार्ड मे बीमारी से लड़ रही थी | उसकी किडनी मे इन्फेक्सन हुआ था | डॉ के अनुसार ठीक होने के बहुत कम चांस है | किडनी फ़ैल भी हो सकती है | सिरिष अपने पांच माह के दूधमुहे बच्चे को लेकर रात -दिन पत्नी की सेवा मे इसी आशा के साथ लगा है कि वो जल्दी ठीक होकर हमारे बच्चे को संभालेगी |
                  सिरिष का परिवार अमेरिका मे रहता है,सिरिष को अपने देश भारत मे रहना अच्छा  लगता था ,वो अपनी पढाई ख़त्म होते ही भारत आ गया यहाँ आकर रीमा से शादी कर ली | उस दिन सिरिष आई .सी .यु .के बाहर बैठा था होस्पिटल मे शांत वातावरण था सिरिष विचार मग्न| भविष्य मे आने वाली समस्याओ के बारे मे सोच कर परेशान हो रहा है कि कब ठीक होकर रीमा बच्चे को फिर से सम्भालेगी ? ओर  कुछ सोचता, उससे पहले आई.सी.यु.से नर्स दौडती हुई बाहर आई ,डॉ सात नंबर पेशेंट की तबियत बिगड़ गयी,उसे सास लेने मे तखलीफ़ हो रही है |, सिरिष किसी अनिष्ट की आशंका से घबरा गया उसे तो पता ही था सात नंबर पेशेंट रीमा ही है | डॉ ने भाग कर रीमा को चेक किया ,उसकी सास उखड़ रही थी | रीमा के शरीर के सभी पार्ट्स ने लगभग काम करना बंद कर दिया | डॉ के अथक प्रयास के बाद भी रीमा बच नहीं सकी उसके जीवन की डोर टूट गयी |
                    सॉरी सर ,रीमा इज नो मोर , डॉ ने कहा | सिरिष की आँखों मे आंसू आ गये ,कपिल को भी जैसे आभास हो गया उसकी माँ उसे अकेला छोड़ गयी ,वो भी पापा के साथ जोर -जोर से रोने लगा था | कपिल के रोने से सिरिष चुप हुआ | डॉ. ने कहा 'होस्पिटल की ओपचारिकता पूरी करके आप घर जा सकते हो | कुछ भी सोचने -समझने की ताकत नहीं बची थी | अपनी ओर अपने नन्हे बच्चे के जीवन मे आने वाली तमाम परेशानियों को भुला कर,सिरिष रीमा की डेड बॉडी को घर ले जाने के लिए होस्पिटल की ओपचारिकता पूरी करने लगा | रीमा को अंतिम विदाई देने के लिए परिवार आ चुका था |
                   रीमा को अंतिम विदाई देने के बाद सिरिष इतने लोगो के बीच भी खुद को अकेला महसूस कर रहा था | रीमा के जाने के तीसरे ही दिन सिरिश मुन्सिपलटी बोर्ड के ऑफिस मे रीमा का  मृत्यु  -प्रमाण पत्र लेने पहुँच गया | गोद मे कपिल को लिए वो सम्बन्धित अफसर से बोला 'सर मेरी पत्नी का मृत्यु -प्रमाण पत्र बना दीजिये |, पर वो अफसर कुछ नहीं बोला | सिरिष ने कई बार कहा पर वो जान -बूझ कर फ़ाइल् के पन्ने पलटता रहा |कपिल भी रोने लगा तो सिरिश ऑफिस की सीढियों मे बैठ गया | तभी वो अफसर उसके पास गया और बोला प्रमाण पत्र बनवाने के पांच सौ रुपया दे दो, कल आकर मृत्यु प्रमाण -पत्र ले जाना |, सिरिष को बहुत गुस्सा आया मेरी सत्ताईस साल की जवान बीवी मर गयी इसे रुपयों की पड़ी है | अपने गुस्से को काबू करके उसने रुपया दे दिया | उसे समझ आ गया ऑफिस मे सी.सी.टीवी कैमरा लगा था इसलिए वहां पैसा नहीं लिया| रिश्वत लेने के मामले मे सावधान जो है |
                दुसरे दिन सिरिष ऑफिस गया तो सीट पर दूसरा  अफसर  बैठा था | सिरिष ने उनसे मृत्यु -प्रमाण पत्र माँगा, उसने दो मिनिट मे बना कर दे दिया | अरे ! 'ये क्या आपने बिना रिश्वत लिए ही बना दिया ?, सिरिष ने कहा | कल उस अफसर ने पांच सौ रूपया लिया है मुझसे | 'मै कभी किसी से एक पैसा नहीं लेता हूँ | आपका कोई भी काम हो आप आना मै करूँगा आपका काम|, दुसरे अफसर  ने कहा |सिरिष ने उस रिश्वत खोर  अफसर  को सबक सिखाने का मन बना लिया और  उन इमानदार ऑफिसर के साथ मिलकर उस रिश्वत खोर  अफसर को रंगे हाथो पकड़वाया | किसी ने सच ही कहा है कि एक व्यक्ति की गलती के कारण  पूरा विभाग बदनाम हो जाता है
शांति पुरोहित