Saturday 26 October 2013

ये कैसी श्रद्धा

               ये कैसी श्रद्धा                                                                                                                                                                       प्रकाश के पिताजी ने अपने जीवन मे ये प्रत्यक्ष अनुभव किया है, कि जब हम पशु-पक्षी को रोज दाना डालते है ,रोटी खिलाते है तो ; वे रोज हमारा उस वक्त इंतजार करते है | गाय की पीठ पर रोज दस मिनिट हाथ फिराने से मनुष्य के शरीर मे रक्त संचार कम- ज्यादा नहीं रहता है | गाय को रोज नियमित समय पर रोटी खिलाने से अकाल मौत टल जाती है |
                     प्रकाश के पिता इस काम को नियमित रूप से करते, चाहे कितना ही जरुरी काम क्यों ना हो | यही संस्कार उन्होंने अपने बेटे प्रकाश को दिए | जब प्रकाश पांच साल का तब से पिता जी के साथ पशु-पक्षियों को दाना डालने,उनको रोटी खिलाने जाने लगा था |
                     प्रकाश के पिताजी का मानना था कि इनकी सेवा के साथ-साथ अपने आस-पास कोई दुखी है, तो उनकी सेवा करना इंसान का प्रथम कर्तव्य होना चाहिये |
                     प्रकाश अपने पिता के दिए इन्ही संस्कारो के साथ बड़ा हुआ है | प्रकाश बैंक मे प्रबंधक के पद पर काम करता है ;पर उसने गाय,कुत्ते ,बिल्ली और पक्षियों की सेवा करना नहीं छोड़ा है|
                      प्रकाश की पत्नी स्कूल मे टीचर है ;पर अपने पति के इस नेक काम मे वो भी साथ देती है | पर उसके मन मे हमेशा एक सवाल आता है, कि इंसान को पशु पक्षियों की सेवा से ज्यादा गरीब और लाचार इंसानों की सेवा करनी चाहिए  पर प्रकाश का कहना है ''भगवान ने इंसान को हाथ-पैर दिए है वो कमा कर खा सकता है \| प्रकाश ने इस काम के लिए एक काम वाली बाई  रखी है जो सुबह-शाम रोटियाँ बनाती है | सौ रोटी सुबह और उतनी ही शाम को चाहिए थी | प्रकाश और शीला दोनों शाम को ये सारी रोटिय अपने हाथो से जानवरों को खिला कर आते है |      
                                                                                        ये उनका का रोज का काम था| वैसे तो प्रकाश खुद आर्थिक रूप से सक्षम था| पैसे की उसके पास मे कोई कमी नहीं, पर कोई अपनी इच्छा से सेवा के लिए कुछ
देना चाहता तो ;वो मना नहीं करता था |
                       
                   आज बारिश बहुत तेज हो रही थी ;ऐसा लग रहा है जैसे सारा शहर पानी मे डूबा हुआ है | प्रकाश की पत्नी शीला सोच रही है कि आज काम वाली बाई आएगी कि नहीं | और आएगी भी तो कैसे ! बारिश तो थमने का नाम ही नहीं ले रही थी | सब अपने घरो मे बैठे बारिश के थमने का इंतजार कर रहे थे |
                    प्रकाश और शीला भी बारिश के थमने का इंतजार कर रहे है | प्रकश का मन आज दुखी हो रहा है क्योंकि आज गाय,कुत्ते बिल्ली और सारे पक्षी भूखे बैठे उसका इंतजार कर रहे होंगे | कभी ऐसा नहीं हुआ  पर प्रक्रति के आगे आज वो मजबूर है |
                             शीला ने देखा कि इतनी बारिश मे कामवाली बाई आई है | पर प्रकाश ने आज रोटी बनवाने से इंकार कर दिया, कहा की ''आज रहने दो  मत बनाना बारिश मे कैसे जा सकूंगा |''
                             शीला ने देखा कामवाली बाई कुछ परेशान लग रही है | आज तो रोटी बनाने के काम से आजादी मिली है, फिर भी दुखी क्यों है? ''क्यों क्या हुआ ? पूछा शीला ने | तब कामवाली बाई ने कहा ''साब ने तो रोटी बनाने को मना कर दिया तो मुझे लगता है की आज मेरे बच्चे क्या खायेंगे शायद भूखा ही सोना पड़ेगा? '' शीला ने कामवाली बाई को कहा हुआ था की तुम अपने बच्चो के लिए भी रोटी बना कर ले जाया करो |प्रकाश को शीला ने इस बारे मे बताया नहीं था |
                                   कामवाली बाई, का पति बीमारी से जुज रहा था | और ये घरो मे काम कर के थोडा बहुत कमा लेती है तो शीला ने सोचा रोटी यहाँ से ले जायेगी तो इसको काफी मदद होगी | शीला ने कामवाली बाई को पचास रूपया दिया और कहा ''अपने बच्चो के लिए कुछ ले जाना | कामवाली बाई ने शीला को ढेरों आशीष दिया |और कहा कि आपके कारण मेरे बच्चे आज भी खाना खाकर सोयेगे | आपके दिल मे हम गरीबो के लिए कितनी दया है आपको ऊपर वाला खुश रखे और वो अपने घर चली गयी |  
शांति पुरोहित     

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