Saturday 26 October 2013

बाते बाल मन की ..



                      बाते बाल मन  की                                                                                                                                                           सरिता का सब कुछ खत्म हो चूका था,पूरी दुनिया जैसे उसके लिए वीरान  हो गयी थी | अब वो कुछ तय नहीं कर पा रही थी, कि उसका पति राम लाल तीन बच्चो को उसके भरोसे छोड़ कर गया है, वो कैसे उनको संभालेगी | वो पढ़ी -लिखी भी नहीं है | बस सरिता रोज रोती जरुर है |एक महीने पहले उसके पति रामलाल की लंबी बीमारी के बाद मौत हो गयी थी |
                     सरिता के पति, ने जो कुछ कमाया था, उसमे से सरिता जो बचत करके रखती थी,वो सब पति की बीमारी मे खर्च हो गये थे | वैसे भी राम लाल एक प्राइवेट कंपनी मे सहायक कर्मचारी ही था, बहुत कम वेतन मिलता था,इतने कम वेतन मे घर चलाना राम लाल के लिए एक चुनौती से कम नहीं था | पर राम लाल ने इस चुनौती से निपटने के लिये रिश्वत लेने का रास्ता अपना लिया | वो काम के लिए ऑफिस मे                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                             आने वाले हर व्यक्ति से कुछ पैसे लेकर अपने बॉस से मिलवा देता था | ईमानदारी से कब किसका पेट भरा है, मंत्री से संतरी तक सब रिश्वत लेते है | तो वो किसलिए ईमानदारी दिखाए और क्यों दिखाए ?
                       पर सरिता को पति का रिश्वत लेना बिलकुल भी ठीक नहीं लगता था | सरिता अपने पति से रोज ही कहा करती थी, कि ईमानदारी की कमाई इंसान के जीवन मे खुशिया बिखेरती है और बेईमानी से कमाया गया धन इंसान को कभी चैन से जीने नहीं देता है | जिस रास्ते आता है उसी तरह जाने का भी रास्ता निकाल ही लेता है पर सरिता के पति ने सरिता की बात को कभी तव्वजो नहीं दी| पर आखिर वही हुआ रामलाल को कैंसर जैसी जान लेवा बिमारी हुई और उसके इलाज मे कमाया हुआ सारा पैसा खर्च हो गया |
                      सरिता के तीन बच्चे थे बड़ी बेटी,बड़ी क्या सिर्फ दस साल की थी निशा,और उससे छोटे दो भाई थे | जब भी होली आती सरिता के दोनों बेटे मिठाई के लिए रोते पर बेटी कभी नहीं रोती, और दीवाली आती तो नये कपडे और फटाको के लिए रोते | बच्चो को रोते देख सरिता भी रोने लगती,पर रोने से कब किस समस्या का हल हुआ है कुछ करना ही पड़ता है | सरिता ने आस-पास के घरो मे चार घंटे सुबह और चार घंटे शाम को सफाई का काम शुरू किया | गरीब के बच्चो के बचपन कहाँ होता है | जब माता -पिता मजदूरी करने जाते है और उनके बड़े बच्चे घर पर रह कर छोटे बच्चो को सम्भाले है | गरीब, के बच्चे पढना चाहे तो भी धन की कमी उन्हें कहाँ पढने देती है | निशा अपने पडौसियो के बच्चो को स्कूल जाते देखती थी, तो मन करता है वो भी पढने जाये पर कैसे ! दो छोटे भाइयो को कौन संभालेगा | निशा रोज स्कूल के पास जाकर खड़ी हो जाती थी,और ध्यान से बच्चो को पढ़ते हुए देखती थी | एक बार स्कूल के एक अध्यापक ने उसे कहा ''बेटा तुम स्कूल मे आकर पढ़ सकती हो,निशा ने कहा 'नहीं आ सकती  मेरी माँ कमाने जाती है, और मै घर मे रह कर भाई को संभालती हूँ | बच्ची की बाते सुन कर उन्होंने कुछ तय किया और दुसरे दिन जब निशा स्कूल के बाहर आयी तो उस अध्यापक ने उसे किताबे,कापी और पेन्सिल दी और कहा कि अब जाओ घर पर इनसे पढना,और कुछ समझ ना आये तो मुझसे पूछना | निशा बहुत खुश हुई थी |
                               अब निशा भाई को सभालने के साथ पढने भी लगी | पर भाइयो को हर होली,दीवाली पर मिठाई के लिए रोते देख कर उसने कुछ तय किया | और एक दिन जब सरिता काम करके घर आई तो देखा निशा घर पर न, तो माँ को फिक्र तो होगी ही ना | निशा एक मिठाई वाले की दुकान पर गयी और कहा ''मुझे कुछ काम दे दो?, मालिक ने कहा ''कितनी छोटी हो ? क्या काम करोगी ? पर उसने कहा 'कोई तो काम होगा जो मै कर सकूं ? मालिक ने कहा तुम्हे काम देकर मुझे जेल नहीं जाना है | बाल मजदूरी कराने वाले को जेल जाना पड़ता है| पर फिर कहा ठीक है, एक काम है तुम डिब्बो मे मिठाई भरने का काम करना लेकिन गोडावन मे बैठ कर के करना है |
                        निशा जब सब तय करके घर गयी तो माँ को अपना इंतजार करते पाया | माँ को बताया की तीस रूपया रोज का मिलेगा,सिर्फ दो घंटे डिब्बो मे मिठाई भरनी है | सुन कर माँ को लगा कि मेरी मासूम निशा जैसे सच मे बड़ी बहन बन गयी है सरिता की आँखों मे आंसू आ गये  थे |
                             साल भर काम किया अब दीवाली नजदीक आ रही थी | निशा का मिठाई भरने का काम बहुत बढ़ गया था | बहुत मन लगा कर काम किया ,और उसने सोचा था कि इस बार दीवाली पर ना भाई रोयेंगे और ना माँ रोयेंगी | मालिक एक डिब्बा मिठाई तो दे ही देगा | पर उस दिन दीवाली को जब निशा को मालिक ने सिर्फ काम करने के पैसे ही दिए मिठाई का एक डिब्बा नहीं दिया | निशा सोच मे पड़ गयी कि क्या करे | आखिर उसने सोचा पापा ने ठीक ही कहा था कि ईमानदारी से पेट नहीं भरता | निशा के बाल मन मे ये बात बचपन से ही उसके पापा ने भर दी थी जो कि गलत थी|और निशा एक मिठाई का डिब्बा मालिक की नजरो से बचा कर अपने घर ले आई थी |
                           सरिता ने पूछा तो कहा ''मालिक ने दिया है | भाई और माँ दोनों खुश थे| निशा यही तो चाहती थी| पर उसको माँ से झूठ बोलने का अफ़सोस भी हो रहा था | एक दिन सरिता बाहर से घर पर आई तो उसे निशा के बोलने की आवाज आ रही थी, पर उसने देखा उसके दोनों बेटे तो बाहर खेल रहे थे | फिर किसके साथ है निशा ? सरिता ने चुपके से घर के अन्दर झाँक कर देखा तो पता चला कि निशा भगवान के आगे हाथ जोड़ कर रो रही है और कह रही है कि ''मुझे माफ़ करना माँ, मैंने आपसे झूठ बोला मालिक ने नहीं दी मै चुरा कर लाई थी, मिठाई | मै, अपने भाइयो को और माँ को दुखी नहीं देख सकती थी | ये सब सुन कर सरिता ने अपनी मासूम बेटी को गले से लगाया और रोने लगी| पर उसे ख़ुशी भी हो रही थी, कि मेरी बेटी अपने पापा पर नहीं गयी है उसने अगर झूठ बोला तो उसका पश्चाताप भी कर रही है|
                                 शांति पुरोहित
                     

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