Saturday 5 October 2013

                         अन्याय एक लघु कथा                       सुश्री शांति पुरोहित की कहानी                                                                                                                                                ''मम्मी आप क्यों उस आदमी के लिए इतना कठोर व्रत रख रही हो, वो तो कभी आपको भूले से भी याद नहीं करते है| हम दोनों को उनके रहते,लावारिस जीवन जीने को मजबुर होना पड़ा|' रवि ने अपनी माँ शारदा से थोडा झुंझलाहट के साथ कहा| आज आरती ने करवा चौथ का व्रत अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखा है|
                                   शारदा अपने सास-ससुर जी और पति विष्णु के साथ रहती थी| सास- ससुर आरती को बेटी से बढकर प्यार करते थे| सुबह से शाम तक आरती उनका बहुत अच्छे से ख्याल रखती थी| अभी आरती की शादी को कुछ महीने ही हुए थे| एक दिन विष्णु बाहर बगीचे मे टहल रहा था| उसका फ़ोन कमरे मे बज रहा था| शारदा ने फोन उठा लिया| सामने से किसी महिला की आवाज आई '' मेरी आवाज सुनकर उसने फोन कट कर दिया|' शारदा ने इस बात को कभी गभीरता से नहीं लिया|
                         समय बीतता रहा| शादी के एक साल बाद शारदा एक बच्चे की माँ बनी| बहुत खुश थी अपनी दुनिया मे; तभी एक दिन विष्णु के एक फैसले ने उसके हँसते-खेलते जीवन में आग लगा दी| 'शारदा मैंने तुमसे और माँ-पापा से एक बात छुपाई है| मेरी नीलू से एक साल पहले, शादी हो चूकी है| हम दोनों एक दुसरे से प्यार करते थे| वो दुबई मे रहती है| कुछ दिन बाद मे उसके साथ रहने के लिए जा रहा हूँ| तुम अपना फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हो; हमारे बेटे के साथ यहाँ रहकर, मेरे माँ-पापा के साथ रहकर भी अपना जीवन गुजार सकती हो|' विष्णु की एक-एक बात उसे जहर से भी ज्यादा कडवी लग रही थी|
                                शारदा ने रोते हुए कहा '' मेरे साथ ऐसा अन्याय करते हुए एक बार भी आपने नहीं सोचा कि आप मुझे बिना कोई कुसूर के इतनी बड़ी सजा दे रहे हो| पर कोई बात नहीं जब सोच लिया है तो जाओ, मेरे बारे मे तुम क्या सोचोगे,तुम्हे तो अपने जन्म देने वाले माँ-पापा की भी कोई परवाह नहीं है| जब उनको तुम्हारे इस फैसले का पता चलेगा तो वो भी मेरी तरह टूट जायेगे| इसलिए तुम उनको बिना कुछ कहे यहाँ से चले जाओ;उनको मे संभाल लुंगी|' शारदा ने रोना उचित नहीं समझा और फिर वो सास-ससुर को इस बात की भनक भी नहीं पड़ने देना चाहती थी| तब से लेकर आज तक वो सास-ससुरजी का सहारा बनी बैठी है,जो खुद भी एक बेसहारा है| रवि ने छोटी उम्र से ही बड़े की तरह अपनी माँ को संभाला है|
                        शांति पुरोहित 

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