Saturday 26 October 2013

पछतावा

पछतावा
पति कि असामयिक मौत के बाद देवयानी के जीने का एक मात्र सहारा उसकी बेटी ही थी;जो अभी एक साल की थी | अपने ही पति कि मौत का इल्जाम देवयानी के सर पर लगा कर सास -ससुर ने तो उससे रिश्ता ही तोड़ लिया | उसे ''भाग्यहीन, कह कर घर से निकल जाने को कह दिया |
                               देवयानी के सामने अपनी नन्ही बेटी नीलू के भरण पोषण का सवाल खड़ा था | मेहनत मजदूरी करने के आलावा देवयानी के सामने और कोई रास्ता ही नहीं बचा था | पढ़ी-लिखी जो नहीं थी | माँ-बेटी दोनों एक दूसरे का सहारा थी | नीलू पढ़ -लिख कर कुछ बन जाये,देवयानी ने इसे अपने जीने का उद्देश्य बना लिया | भविष्य में कुछ भी अनचाहा घट जाये तो उससे निपटने के लिए खुद को सक्षम होना ही चाहिये |
                              दिन,महीने, साल बीतते गये,नीलू ने सीनियर दूसरी पोजीशन के साथ उतीर्ण करी | नीलू ''इंटरनेशनल लॉ '' करना चाहती थी;इसके लिए नीलू ने ''प्रवेश परीक्षा'' भी उतीर्ण कर ली थी | ''पुणे इंटरनेशनल लॉ '' कॉलेज मे उसका चयन हो गया | माँ-बेटी दोनों खुश थी | नीलू कॉलेज जाने के लिए सुबह सात बजे निकलती और घर पहुंचते-पहुँचते उसे रात हो जाती |
                                देवयानी रोज गुस्सा करती,''सुबह सात बजे से रात की आठ बजे तक कौनसा कॉलेज खुला रहता है?,आधुनिक विचारो वाली बेटी, माँ को ये कह कर, चुप करा देती की माँ ,'तुम तो मुंबई आकर भी देहाती ही रही;कुछ भी तो नहीं बदली|,आहत हुई देवयानी सिर्फ इतना ही कहती ''मैंने तुमसे ज्यादा दुनिया देखी है |'
                                'माँ गाँव मे दस साल रहना, और मुंबई मे एक साल तक रहना बरोबर है |,कहा नीलू ने | 'तुम तो यहाँ भी वो ही तेहती कपडे पहनती हो;वो ही देहाती बोली बोलती हो| सच कहूँ ,तो मुझे मेरे दोस्तों को घर लाने मे शर्म आती है | ये सब सुन कर देवयानी को दुःख होता;पर क्या करे ! बेटी कुछ ज्यादा ही समझदार हो गयी,मुंबई मे जो पढने लगी है | मुंबई कि हवा ने नीलू को पूरा ही बदल दिया था |
                                 अब नीलू कि पढाई का आखिरी साल बचा था | रिश्ते भी आने शुरू हो गये थे ;पर नीलू इंकार कर दिया | देवयानी ने सोचा अगला साल पढने का आखिरी साल है तब हां बोल देगी | समय बीतता रहा |एक दिन नीलू जल्दी घर आगयी,चेहरा सूजा हुआ,आँखे रोई हुई थी | ''क्या हुआ बेटा कुछ हुआ क्या कॉलेज ,नहीं कुछ नहीं हुआ |,नीलू अपने कमरे मे और देवयानी अपने कमरे मे चली गयी |पर देवयानी का पूरा ध्यान बेटी पर लगा रहा |
                              नीलू को सुबह उठने के साथ वोमेटिग हुई | फिर फ्रेश हो कर माँ के साथ चाय पीने बैठी | देवयानी ने कहा ''यहाँ मुंबई शहर मे हर किसी से गलती हो जाती है तुमसे भी हुई है कल मेरे साथ अस्पताल चलना ,तुम्हे छुटकारा मिल जायेगा और देरी हो गयी तो जन्म दे देना | मै हर पल तुम्हारे साथ हूँ | जो हुआ उसको ले कर घबराना नहीं,मै अपना बच्चा,यानि तुम्हे नहीं खोना चाहती हूँ |
                                नीलू ने कहा ''माँ देहाती तुम नहीं मै हूँ | तुम तो कितनी समझदार हो ! नीलू माँ के गले लग कर बहुत देर तक रोई | अब तक जो कुछ माँ को कहा नीलू को पछतावा होने लगा | मै ,न तो देहाती हूँ ;ना समझदार हूँ ;मै तो बस एक माँ हूँ जोअपने बच्चे के चलने मात्र से जान जाती है की उसे क्या परेशानी है | नीलू माँ से लिपट कर रोने लगी थी |

                           


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