Saturday 1 June 2013

     वो फ़रिश्ता                                                                                                                                                              रमा के चार बहने और थी ;पिता की कम आमदनी के कारण एक भी पढ़ नहीं पाई थी | रमा नहीं चाहती थी, की उसकी बेटी पैसो के अभाव मे पढने से वंचित ना रह जाये,अपने वश मे जो कुछ होता वो करती जैसे-टीचर से विनती करना, कि वो दिव्या को अपनी बेटी समझ कर बिना पैसो के कोचिंग क्लास मे पढने दे ,समय-समय पर टीचर से मिलकर बेटी की पढाई के बारे मे पूछते रहना ;बस खुद, पढ़ नहीं सकी जिसका उसे बेहद अफसोस है | आज रमा कितनी परेशान है | उसके दुःख का का कोई पारावार नहीं है |  उसकी बेटी के कालेज की फीस भरने के लिए सिर्फ पंद्रह हजार रुपयों की और जरुरत थी| बाकी के रुपयों का इंतजाम रमा  ने इधर-उधर से लेकर कर लिया;कुछ रूपया ब्याज पर लिया,कुछ दोस्तों से उधार लिया,किसी ने तो रूपया देते वक्त लिखवा भी लिया था कि जैसे ही बेटी कमाने लगे पहले हमे वापस देना | कभी तो समाज के लोगो के आगे भी हाथ फैलाया ;क्या-क्या सहना पड़ा, ये उसका ही दिल जानता है |तब बेटी की पढाई बरोबर चलती रही |
                                         रमा के पति किराने की दुकान पर खाता-बही का काम करते थे | बहुत ज्यादा पैसा तो उनको नहीं मिलता था |पर उनकी बेटी दिव्या पढने मे बहुत तेज थी | दिव्या ने जब से पढ़ना शुरू किया हर क्लास मे अव्वल रही | उसकी लगन देख कर माँ ने बेटी के उज्जवल भविष्य का सपना देखना शुरू कर दिया |क्या गरीब लेकिन प्रतिभासंपन बेटी की माँ को बेटी आगे बढे, ये सपना देखना मना है क्या ? अपनी बेटी के भविष्य के बारे मे सोचना क्या गलत बात है ?
                                           बी.ए.तक तो रमा  और मनोहर भाई, दिव्या के पापा, ने अपनी बेटी को जैसे-तैसे कर के पढ़ा दिया | पर अब दिव्या एम.बी.ए.करना चाहती है | दिव्या ने इसके लिए प्रवेश परीक्षा उतीर्ण करली और ''बिरला उच्च शिक्षण संस्थान'' मे उसका चयन भी हो गया ; पर अब फीस की इतनी बड़ी रकम का इंतजाम कैसे किया जाये, ये बड़ी  चिंता रमा को थी | कुल खर्चा ढाई लाख रुपया था,सब भर दिया बस आखिरी साल का पंद्रह हजार रुपया बाकी था | किसे कहे ! क्या करे ? कुछ समझ नहीं आ रहा था | रमा को लगा अब कुछ नहीं हो सकता |
                                       अब तो कोई भी रिश्तेदार, या जान-पहचान वाला नहीं बचा था जिससे मदद ली जा सकती है | फीस भरने के अब सिर्फ पांच ही दिन बचे है | रमा क्या करे, उसके तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा है | उसकी हालत बिना पानी की मछली की तरह हो गयी थी | रमा आज हिम्मत करके अपनी स्कूल की एक सहेली मोना को फोन किया | पर पंद्रह हजार कोई छोटी रकम तो नहीं थी | मोना की भी आर्थिक स्थति ज्यादा अच्छी नहीं थी वो भी मदद नहीं कर सकी |
                                         रमा की चिंता बढती जा रही थी, दिन भी एक ही बचा था | रमा बैठ गयी और पुरानी बातो को याद करने लगी, कि पढने मे कितनी तेज थी दिव्या ,उसकी लगन को देख कर कालेज प्रशाशन ने दिव्या  की बी,ए. की तीनो साल की फीस भी माफ़ कर दी थी | इस बार भी कालेज प्रसाशन ने कोशिश की पर अब उच्च   शिक्षा थी, तो फीस माफ़ करवाना बहुत मुश्किल था | फीस के कारण बेटी आगे पढ़ नहीं पायेगी ,ये सोच कर रमा अब रोने लगी थी |
                                              रमा के बहुत से रिश्तेदार ऐसे थे जिनके पास बहुत पैसा था, वे बहुत कंजूस प्रवति के लोग थे ;वो कहते है कि पैसा नहीं है तो पढने की क्या जरुरत है | | पर रमा उनको मदद के लिए कभी नहीं कहती | वो लोग मंदिरों मे अपने नाम की तख्ती लगाने के लिए,पाठ-पूजा और हवन के लिए और बाकी जगहों पर पैसा दान-पुण्य के काम मे लगाना ज्यादा पसंद करते थे, क्योंकि वहां नाम होता है | पर परिवार की एक प्रतिभाशाली लड़की को पढने मे उसकी कोई मदद नहीं कर सकते थे |  दिव्या का फोन आया 'माँ फीस का इंतजाम हुआ क्या ? क्या कहती रमा बेटी को कि 'नहीं हुआ आज तुम्हारा कॉलेज मे आखिरी दिन है| फिर भी रमा ने कहा 'तुम फिक्र न करो कुछ न कुछ इंतजाम हो जायेगा |
                                              मानसिक थकान थी,आँखे रो-रोकर सूज गयी, रमा सर पकड कर बैठ गयी,तभी डोर-बेल बजी,अब इस वक्त कौन हो सकता है ! दरवाजा खोला तो सामने एक व्यक्ति खड़ा मुस्करा रहा था | रमा ने उसे पहचाना नहीं प्रश्नभरी नजरो से देखने लगी | 'अंदर आने का नहीं कहोगी क्या रमा ? रमा को आश्चर्य हो रहा था कि जिसे मै जानती तक नहीं वो मेरा नाम भी जानता है | रमा ने उन्हें अंदर आने को कहा और दरवाजा खुला ही छोड़ा;ये देख कर वो व्यक्ति मुस्कुराया ; उसके मुस्कुराने का मतलब रमा नहीं समझी | पानी पिलाने के बाद रमा ने कहा 'अब बताइए कौन है आप ! मुझे कैसे जानते है ? जवाब मे उसने एक कवर दिया 'कहा इसमें पंद्रह हजार रूपया है बेटी की फीस भर देना |,रमा को समझ नहीं आ रहा कि ये कौन इंसान है जो इस वक्त भगवान बन कर आया है | 'पहले अपनी पहचान बताइए , मेरी मदद क्यों करना चाहते है ?
                           'शायद तम्हे याद नहीं,हम मिडिल तक साथ पढ़े है ;उस वक्त मेरी माँ मुझे पैसा नहीं देती थी  तुम्हे याद नहीं !सब बच्चे कैंटीन मे खाते,और मै पैसो की वजह से नहीं खाता ,मुझे बहुत बुरा लगता और मै रो पड़ता था |दोस्त चिड़ाते क्या ! खाने के पैसे भी नहीं है ?| तुमने स्कूल की कैंटीन वाले चाचा से मुझे मिलवाकर कहा था कि ये जो भी खाना चाहे दे देना पैसा मे दे दूंगी | ज्यादा अच्छी बात तो ये रही कि तुमने मेरे दोस्तों को या और किसी को कभी ये बात नहीं नहीं बताई जिसके कारण मुझे कभी शर्मिंदा नहीं होना पड़ा | तुम भूल गयी मै अक्सर अपने बच्चो, को ये बात बताता हूँ | कल मोना मिली उसने तुम्हारी बेटी की फीस भरने की परेशानी की बात बताई |मोना, मै और तुम तीनो साथ पढ़े है |  ये मत समझना की मै उस बचपन मे की गयी मदद का बदला चुकाने आया हूँ ; उसका मोल तो मै अपना सब कुछ देकर भी चूका ही नहीं सकता | आगे भी एसी कोई परेशानी हो तो मुझे याद करना,ख़ुशी होगी कि मैंने तुम्हारे लिए कुछ किया | रमा कुछ बोलती उससे पहले वो कवर को टेबल पर रख कर चला गया |
                         रमा की आँखों से आंसू बहने लगे | उसे याद ही नहीं कि उसने स्कूल मे कभी इनकी मदद की थी | जो पौधा उसने अपने बचपन मे लगाया था आज वो पेड़ बन कर फल दे गया है | अब रमा ने बेटी को सूचना की कि 'तुम कल से कॉलेज जा सकोगी | कोई फरिश्ता आया और मेरी मदद कर गया है | रमा ने बेटी को बताया कि इस तरह से लोगो कि मदद करनी चाहिए कि करो और भूल जाओ | रमा ना तो उसे बैठने को कह सकी ना चाय,कॉफ़ी के लिए पूछा ,बस वो तो हैरान थी कि बचपन मे कि गयी किसी कि मदद मेरी बेटी के कितनी काम आई  है |
शांति पुरोहित


                                                                                                                                                                                                                                     

No comments:

Post a Comment