Saturday 1 June 2013


           कहानी किस्मत की                                                                                   दुबई के रहने वाले रहमान मियां का अपना बहुत बड़ा तैयार वस्त्रो का कारोबार था लाखो का सालाना मुनाफा कमाते थे परिवार के नाम पर पत्नी और एक बेटा दो ही थे दुबई मे रहमान मियाँ का नाम इज्ज़त के साथ लिया जाता था साजिदरहमान मियाँ का बेटा दुबई मे शानदार स्कूल मे पढता था |सब कुछ ठीक चल रहा था पर कहते है ना समय बदलते कितना वक्त लगता है एक दिन रहमान मियाँ को दिल का दौरा पड़ा और वो इस दुनिया से कूच कर गये |उस वक्त साजिद, सात साल का बच्चा था तो जाहिर सी बात थी, कि इतना बड़ा काम तो वो सम्भाल नहीं सकता था |
तो साजिद की अम्मी उलफत बेगम ने पति के काम को संभाला अब ये तो होता ही है कि औरत काम करेगी तो घर और बच्चे को तो अपनी क़ुरबानी देनी ही पड़ेगी उलफत साजिद को बिलकुल भी वक्त नहीं दे पा रही थी साजिद को बड़ा नागवार लगता था, कि उसकी अम्मी उसको काम के चलते संभाल नहीं पाती थी |पुरे दिन उलफत को बाहर रहना पड़ता था ऐसे मे  साजिद को नौकर के भरोसे ही रहना पड़ता था |साजिद अपनी अम्मी के लिए बहुत रोता था, ये तो प्रक्रति प्रदत नियम है कि जब बच्चा छोटा होता है तो उसे माँ का प्यार चाहिये माँ ही उसके लिए सब कुछ होती है और अगर किसी कारण वश बच्चे को बचपन मे माँ का साथ नहीं मिलता है तो बच्चा कुंठा के साथ बड़ा होता है और वो ही कुंठा उसके आगे के जीवन मे साफ देखी जा सकती है साजिद अपने अबुजान -अम्मी दोनों को ही मिस किया करता था अबू साजिद को एक बहुत बड़ा आदमी बनाना चाहते थे| पर इंसान का सोचा कहाँ होता है|उपर वाले ने तो साजिद के लिए जैसे कुछ और ही सोच कर रखा था| जो भविष्य के गर्भ मे छुपा था | धीरे –धीरे साजिद ने ये मान लिया कि उसकी अम्मी को काम के लिए जाना ही होगा,और उसे ऐसे ही नौकरों के सहारे रहना पड़ेगा | उसके बाल मन मे अब ये बात घर कर गयी की वो जब बड़ा होकर शादी करेगा तो अपनी बीवी को कमाने नहीं जाने देगा,और अपने बच्चो को माँ से दूर नहीं रहने देगा |
इन सब परिस्थितियों ने साजिद के दिल पर बुरा प्रभाव डाला परिणाम स्वरूप पन्द्रह साल के साजिद, ने एक दिन कह दिया कि हमे दुबई नहीं अब भारत रहना है साजिद की अम्मी ने पहले तो इसे बेटे का बाल सुलभ हठ, ही माना सोचा कुछ दिनो मे सब भूल जायेगा,पर ऐसा नहीं हुआ अम्मी के समझाइश का भी असर नहीं हुआ उलफत ने कहा ‘’साजिद यहाँ तेरे अबुजान का इतना बड़ा कारोबार है,जो बड़े होने पर तम्हे बहुत काम आयेगा,बहुत आराम से जीवन जी सकोगे वहां भारत मे तो अपना काम जमेगा या नहीं ये भी पता नहीं है पर,साजिद जो जैसे जिद पर अटका हुआ था बस यहाँ से जाना है, तो उलफत   बेगम को बेटे की जिद के आगे हार मान भारत आना पड़ा बहुत कोशिश करने पर भी साजिद ना तो यहाँ आकर आगे पढ सका और ना ही कारोबार की इतनी समझ नहीं होने से उसमे भी नाकामी मिली अब तो साजिद, को बड़ी समस्या हुई पर करे क्या कुछ समझ नहीं आ रहा था |
उस वक्त सरकस का बहुत चलन था सिनेमा से ज्यादा लोग सरकस पसंद करते थे साजिद बचपन से ही निडर था जैसे डर कर जीना तो उसने सीखा ही नहीं था साजिद के एक दोस्त ने साजिद को सरकस मे काम दिलवा दिया |अम्मी ने अपना माथा ठोक लिया कि राजा की तरह पला हुआ रहमान मिया का बेटा पैसा कमाने के लिए तमाशबीन का काम करेगा |अम्मी ने साजिद से कहा ‘’चलो वापस दुबई चलते है, तेरे अब्बू, का बहुत नाम है अभी भी वहां कोई काम मिल ही जायेगा पर साजिद ने ना बोला | रस्सी पर चलने का काम साजिद करता था धिरे -धीरे साजिद काम मे पारंगत हो गया और खूब पैसा कमाने लगा एक दिन उलफत की एक सहेली रेहाना घर आई और अपनी बेटी की साजिद से शादी के लिए कहा उल्फत को तो अब साजिद के लिए बहु लानी थी और कुछ दिनों बाद रेशमा की साजिद के साथ शादी हो गयी| रेशमा बहुत ही नेक लड़की थी पर उसे साजिद का ये काम पसंद नहीं था| उसे डर लगा रहता था कि उसका वैवाहिक जीवन शुरू होने के साथ ही ख़त्म ना हो जाये | रेशमा ने बहुत समझाया साजिद ,को पर साजिद तो जैसे ये काम नहीं नहीं छोड़ने का ठान ही चूका था | साजिद की अम्मी, ने भी ने भी रेशमा की बात को सही कहा | साजिद की अम्मी तो कुछ साल बाद अपने बेटे की सलामती की बात अपने मन मे लेकर इस दुनिया से चली गयी| अब रेशमा अकेली ही साजिद की फ़िक्र करने वाली रह गयी पर साजिद ने तो डरना जैसे सीखा ही नहीं था | जैसे उस पर जूनून सवार था कि काम तो यही करना है और कुछ भी काम नहीं करना है | रेशमा ने भी अपनी किस्मत मान कर चुपी साध ली | और अपनी ग्रहस्थी सँभालने लगी | एक –एक करके साजिद के तीन बेटिया आई | पर साजिद एक बेटा भी चाहता था | जो बड़ा होकर उसके काम मे उसका साथ दे सके | और उसके ना रहने पर बेटा कमा कर ला सके, पर रेशमा बेटा नहीं चाहती थी | वो नहीं चाहती कि बहु भी उसकी तरह शौहर की फिक्र मे रोज एक मौत मरे| और आखिर मे अलाह ने रेशमा की सुनली बेटा हुआ ही नहीं |
समय की रफ़्तार को कौन रोक पाया है अब साजिद तीन बेटियों का बाप और एक खुबसूरत पत्नी का का पति था साजिद अपने परिवार की हर जरुरत को पूरा करने की भरसक कोशिश करता था रोज के सौ रुपया कमाता था साजिद को देख कर सब को यही लगता कि हमे भी साजिद की तरह ही काम करके पैसा कमाना चाहिये |पर साजिद को तो कमाना ही था और कौन कमाता,चार जन की जिम्मेदारी उस पर थी |उपर से घर की औरत का बाहर जाकर कमाना उसे शुरू से ही पसंद नहीं था | उस वक्त सौ रुपया कमाना अपने आप मे बड़ी बात हुआ करती थी साजिद को तो कमाना ही था क्योंकि वो अपने धर्म के उसूलो का पक्का था उसने ये तय कर लिया था कि जब तक वो जियेगा उसकी बेगम और बेटिया कहीं भी और कुछ भी काम करने नहीं जाएगी |
एक दिन रेशमा ने कहा ''मै इतनी पढ़ी -लिखी हूँ, मुझे भी कुछ काम करने दोघर मे ज्यादा पैसा आएगा,| ''अगर इतना पैसा कम पड़ता है,तो कह दो मैऔर मेहनत कर लूँगासाजिदका इतना पक्का इरादा देख कर रेशमा को चुप होना पड़ा पर कैसे कहे साजिदसे कि पैसा तो कम पड़ेगा ही,तीन बच्चे है,| बड़ी बेटी अठारह साल की,छोटी पंद्रह और तेरह साल की है तीनो की पढाई का खर्चा कम नहीं है बड़ी बेटी का कालेज मे पहला साल भी शुरू हो गया है बहुत पैसा चाहिये घर चलाने के लिए पर साजिद को तो जैसे रोज का सौ रुपया बहुत ज्यादा लगता है रेशमा के कुछ समझ नहीं आ रहा था |वो साजिद को इस बारे मे, ज्यादा कुछ नहीं कह सकती,क्योंकि साजिदका काम ही ऐसा था,वो रस्सी पर चलने का काम करता था जमीन से पंद्रह माले से भी ऊपर रस्सी पर एक छोर से दुसरे छोर तक जाताऔर फिर पैरासूट से वापस नीचे आता था इस काम मे बहुत खतरा रहता है,तो उलफत साजिद को घर की परेशानी कभी बताती ही नहीं थी |साजिद को सभी चिन्ताओ से मुक्त रखना ही जैसे उलफत का परम धर्म था क्योंकि इसके कारण ही उसका सुहाग जिन्दा रह सकता है उसका ये मानना था | साजिद कभी नहीं डरता अपने काम से उसकी शर्ट पर तीन तमगे लग गये थे बहुत सारे इनाम भी जीते है देश -विदेश मे ये करतब दिखाने कंपनी के साथ जाता रहता है साजिद के इस काम से रेशमा की जान हमेशा हलक मे अटकी रहती है जब भी साजिद काम के लिए निकलता है,रेशमा अलाह ताला के सामने नमाज पढने को बैठ जाती है अलाह से अपने शौहर की सलामती के लिए दुआ मांगती है साजिद खुद का विज्ञापन करने के लिए अपनी शर्ट पर अलग -अलग केटेगरी के लेबल लगा कर विज्ञापन करता था ,जैसे वो एक मशीन बन गया हो |पर उसे सुकून था कि उसके घर की औरते बाहर कमाने नहीं जाती है और घर भी अच्छे से चल रहा है |
                                     आज साजिद अपने जीवन का सबसे बड़ा काम करने जा रहा था आज उसे वर्ल्ड रिकार्ड बनाने जाना था अगर ये रिकार्ड साजिद अपने नाम कर लेता है तो उसे दस लाख रुपया मिलने वाले थेऔर इन रुपयों को साजिद अपनी तीनो बेटियों के लिए कमाना चाहता था |बेटियों को अच्छी शिक्षा दिलाना उसका सपना था |और फिर बाप के पास पैसा होगा तो ही उसकी बेटियों को अच्छे घर के लड़के मिलेंगे | बिना पैसो के कौन किसी को पूछता है उसने इसके लिए सालो तैयारी की थी,कि वो ये इनाम की रकम जीत सके ,पर रेशमा की जान हलक मे थी रेशमा ने दो दिन पहले से ही अलाहसे दुआ मंगनी शुरू कर दी थी उसे डर था की साजिद उपर से गिर ना जाये,अगर उसे कुछ होता है तो वो सब साजिद के बिना नहीं रह पायेंगे | तीन जवान बेटियों को लेकर वो अकेली कैसे जी पायेगी| पर साजिद आज बहुत ऊंचाई पर जाकर रिकार्ड बनाना चाहता था |वो साजिद को मना भी करना चाहती थी पर वो कहाँ मानने वाला था|बस सब कुछ अलाह के भरोसे छोड़ दिया सब को साजिदपर भरोसा था और साजिदको खुद पर तीन बड़ी बेटियों की माँ उलफत आज बहुत डरी हुई थी|साजिद निकल गया पर उसने जाने से पहले रेशमा को साथ चलने को कहा पर उसने मना कर दिया रेशमा ये सब कभी भी नहीं देखती थी 
                                 सारा पंडाल खचाखच भरा था आज सरकस के मालिक की सारी टिकटे बिक गयी थी सब साँस रोक कर साजिदका खेल रस्सी पर चलने का देख रहे थेसाजिद चल रहा था रस्सी परलोग प्रार्थना कर रहे थे कि साजिदसफल हो कर लौटे पर अचानक साजिदका पैर उचका और वो ऊंचाई से नीचे गिरा और साजिद मर गया रेशमा को जिस बात का डर था वही हुआ रेशमा और उसकी बेटिया आखिरकर अकेली रह गयी कुछ दिन बाद रेशमा ने बड़ी बेटी से कहा''कल से मै काम ढूंढने जा रही हूँ बेटी ने कहा ''मै भी काम करूंगीरेशमाने कहा लोग क्या कहेंगे तो बेटी ने कहा अम्मीकुछ नहीं कहेंगे लोग अब अबू,नहीं है हमे सँभालने के लिए काम तो हमे ही करना पड़ेगा |रेशमा और तीनो बेटिया रोने लगी थी | आखिरकार साजिद की बीवी को कमाने को बाहर जाना पड़ा |
                            शांति पुरोहित  

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