Sunday 23 June 2013

            सूझ -बुझ                                                                                                                                                     महेश का बार - बार रीमा को केबिन मे बुलाना ऑफिस के सारे  स्टाफ मे चर्चा का विषय बन गया | लगता था जैसे वो कुछ काम नहीं करते सिर्फ कलम चलती हुई दिखाई देती है उनके चेहरे की मुस्कराहट तो कुछ और ही बताती थी |            
                                   पैतीस लोगो का स्टाफ था,जैसे ही रीमा महेश के केबिन से बाहर आती उनमे बात -चित और हँसना चालू हो जाता रीमा ये सब जानती पर नजर अंदाज कर देती और फिर अगले दिन वापस वो ही चालू | पर कोई भी बात कितने दिन तक छुप सकती है,महेश की पत्नी,सुधा को ये सब पता चला तो सब से पहले उसे अपनी बेटी कृष्णा का ख्याल आया कि अगर उसे पता चला कि उसके पापा पैंतालिस साल की उम्र मे सताईस साल की लड़की के साथ इश्क फरमा रहे है | तो उस को कितना बुरा लगेगा,उसकी नजरो मे पापा की क्या इज्ज़त रह जाएगी | उसी ऑफिस मे काम करने वाली लता को सुधा नेअपने घर बुलवाया और और कहा कि वो रीमा को कैसे ही कर के ग्रैंड होटल मे ले कर आये | आखिर तीन बाद लता रीमा को ग्रैंड  होटल लाने मे कामयाब हुई सुधा वहां पहले से ही मौजूद थी | रीमा का सुधा से परिचय करा कर लता चली गयी | रीमा सुधा से मिलकर डर गयी, पर सुधा ने जब रीमा को देखा तो उसे बहुत दुख हुआ वो बहुत छोटी थी,  वो उसे अपनी बेटी कृष्णा जैसी दिखी |
                                          सुधा को महेश पर बहुत गुस्सा आया, मन ही मन खीज उठी | कैसा इंसान है पुत्री समान लड़की पर बुरी नजर रखता है| सोचना बंद कर के रीमा से कहा''ऐसी क्या मज़बूरी है तुम्हारी जो तुम्हे अपने से बड़ी उम्र के आदमी के साथ ये प्यार का नाटक करना पड़ा ?,
                                              रीमा ने कहा ''मैडम,मेरे पापा का अचानक दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गयी,मेरे दो छोटे भाई को पढ़ाना और घर चलाना पड़ता है | साब मुझे अपने करीब बैठे रहने के पैसे दे देते है और मै उनके साथ बैठ कर थोडा हंस -बोल लेती हूँ,आप मुझे माफ़ कर देना अब ऐसा नहीं करुँगी |
                                              ये सब सुन कर सुधा को दुःख हुआ कि कैसे महेश किसी की मज़बूरी का फ़ायदा उठा रहा है | जैसे इतनी उम्र के आदमी मे इंसानियत नाम की कोई चीज़ ही नहीं है | उसने रीमा के सर पर हाथ रखा और कहा कि डरो  मत अब मै तुम्हारे साथ हूँ| सुधा का अपनत्व भरा हाथ अपने सर पर पाकर रीमा रोने लगी वो खुद भी इन सब से निकलना चाहती थी पर मज़बूरी क्या नहीं करवाती है इंसान से |
                                               सुधा ने कहा ''रीमा तुम ये नौकरी छोड़ दो मै तुम्हे अपने भाई की ऑफिस मे कल ही नौकरी दिला देती हूँ,और उपर की कमाई के पैसे मै तुम्हे दूंगी तुम मेरी बेटी को इंग्लिश पढ़ा देना सुधा ने कहे मुताबिक रीमा को भाई के ऑफिस मे नौकरी दिला दी | अगले ही दिन उसने वो नौकरी छोड़ दी | महेश ने बहुत कोशिश की कि रीमा नौकरी न छोड़े | रात को महेश आया तो सुधा से कहा ''मेरे ऑफिस की एक बहुत मेहनती लड़की काम छोड़ कर चली गयी |
                                   सुधा ने कहा ''वो गयी नहीं मैंने ही उसे जाने को कहा | महेश एकदम चुप हो गया | उसे लगा कि सुधा ने उसकी चोरी पकड ली है पर सुधा ने अपनी सूझ -बुझ से एक मजबूर लड़की को सहारा देकर उसकी जिन्दगी बर्बाद होने से बचायी ,अपना घर बचाया और साथ ही बेटी की नजरो मे पिता की इज्ज़त को भी बरकरार रहने दिया अब सब ठीक है सुधा ने लता का धन्यवाद किया उसने साथ नहीं होता तो ये सब कैसे हो सकता था |
                             शांति पुरोहित 

Saturday 22 June 2013

      फिर नई सुबह हुई                                                                                                                                                                                ''घर का सारा सामान इधर-उधर बिखरा हुआ,पलंग पर गीला तौलिया,कंघा,स्लीपर,उतारे हुए कपडे ,जुराब सब बेतरतीब है | जब बच्चे तैयार हो कर स्कूल जाते है,तो पद्मा का घर,घर नहीं कबाड़ी खाना बन जाता है | ये रोज का ही काम है | नितिन को तो 'बस , तक छोड़ने भी जाना पड़ता है | कुछ दिन पहले तक तो बाबूजी ही छोड़ने जाया करते थे | पर जब से उनको पैर मे चोट लगी है,वो आराम करते है |डर से गये है,कि ज्यादा कुछ तकलीफ हुई तो बुढापे मे चलने -फिरने लायक भी नहीं रह पाउँगा | पद्मा एक कप कॉफ़ी पीकर घर मे बिखरी चीजो को समेटने लगती है |
                         चार बेटे,बेटी एक भी नहीं है | होती तो कुछ तो पद्मा को काम मे सहारा मिलता ,बेटे तो कुछ काम नहीं करते | सबसे बड़ा बेटा,राकेश अभी पंद्रह साल का है | दिनेश,राजेश और नितिन बहुत छोटे है | पद्मा को सबका बराबर ध्यान रखना पड़ता है |
                        विमल सरकारी नौकरी मे है| उनको ऑफिस का बहुत काम रहता है,वो तो घर मे भी काम लाते है | पद्मा को विमल कुछ भी मदद नहीं कर सकता है | विमल-अपने माता-पिता की एक ही संतान है | उनके माता-पिता इनके  साथ ही रहते है | विमल के पापा,भारतीय-सेना मे कार्यरत थे | कुछ साल ही हुए है, रिटायर हुए है | मम्मी भी रिटायर्ड टीचर है | अब वो, घर मे ही बच्चो को टयुसन पढ़ाती है | घर चलाने मे बहुत मदद हो जाती है | पद्मा पढ़ी- लिखी है, पर बाहर जाकर काम नहीं कर सकती,घर की सारी जिम्मेदारी उसे ही उठानी जो पड़ती है |
                       इतने लोगो का काम पद्मा अकेले करती है | सुबह उठने के साथ काम मे लगना,आधी-रात तक खपना | पद्मा अकेली ये सब करके अब थक गयी थी | कहीं से भी कोई सहारा नहीं मिलने वाला था | औरत को तो ये सब करना ही पड़ता है,उसके पास कोई विकल्प भी नहीं रहता है | घर के सारे सदस्यो की देख-भाल करते- करते पद्मा की तो कमर टूट जाती है |
                       ''पद्मा मेरी चाय आने मे और कितनी देर है |'पापा ने कहा| सुबह छ बजे ही पापा को चाय देनी होती है |' 'मम्मी तो चाय के साथ नाश्ता, भी लेती है,बाद मे पढने वाले बच्चे आ जाते है ,तो उनको फिर टाइम नहीं रहता है | 'विमल को भी दस बजे ऑफिस निकलना होता है | उनको लंच बॉक्स देकर ,फिर कुछ देर आराम करके सब का खाना बनाना,खिलाना और फिर रात के खाने की चिंता | यही रूटीन बरसो से चला आ रहा था | इन सब मे विमल के लिए तो वक़्त ही नहीं निकाल पाती पद्मा | कई बार विमल नाराज भी हुआ पर वो क्या करे |
                          ''एक बार तो विमल, ने जिद ही पकड ली कि मेरे साथ मेरे दोस्त के घर, उनकी शादी की सालगिरह की पार्टी मे तुम्हे चलना ही है | ''मेरा दिल जानता है, कैसे उनको मनाया कि मै ,
इतना काम छोड़ करके उनके साथ नहीं चल सकती |
                            समय भागता रहा, अब बच्चे बड़े हो गये | राकेश,इंजिनियर बन गया | दिनेश बैंक मे नौकरी लग गया | दोनों छोटे बेटे बी.एससी. कर रहे थे | ''आप राकेश  और दिनेश के रिश्ते के लिए कहीं बात कीजिये ना |' पद्मा ने विमल से कहा | विमल ने सोचा ठीक ही कह रही है | बहु के आने से पद्मा को काफी मदद मिलेगी |
                रिश्ते देखने का काम चालू हुआ | कभी विमल और पद्मा लड़की देखने जाते,कभी लड़की वाले इनके घर आते | आखिरकार दोनों का रिश्ता तय हुआ | दो महीने बाद शादी हो गयी | दो-दो बहुओ के आने से घर मे बहुत रौनक आ गयी | पद्मा का दोनों बहुओ ने खूब ख्याल रखा | अब पद्मा को काम से छुटी मिली,विमल के साथ बिताने के लिए टाइम मिला |
                        दिन,महीने, साल बीतते रहे | पद्मा और विमल दो प्यारे -प्यारे बच्चो के दादा-दादी बन गये | विमल भी रिटायर हो गये | अब पद्मा सुख-चैन से अपने परिवार के साथ जिन्दगी बसर कर रही थी | ''एक काम और करना है | अब राजेश और नितिन का भी रिश्ता करना है |'पद्मा ने चाय का कप हाथ मे लेते हुए विमल से कहा | ''तुम्हारी इस इच्छा का मुझे पहले से ही आभास हो गया था | मैंने मिस्टर शर्मा की दोनों लडकियों के लिए शर्मा से बात भी कर ली है ,वे अगले सप्ताह ही रिश्ता पक्का करने आ रहे है |' विमल ने चुटकी लेते हुए कहा |
                       सब कुछ ठीक से हो गया | राजेश और नितिन की शादी मे पद्मा और विमल खूब नाचे | खूब खुशियाँ मनायी | घर मे नई बहुओ के आ जाने से और भी चहल-पहल हो गयी | कुछ समय बाद ही सबसे छोटी बहु नीरू ने घर मे सबसे बात- बात मे झगड़ना शुरू कर दिया | सबसे छोटी होने के कारण पहले तो किसी ने उसकी बातो की तरफ ध्यान ही नहीं दिया | पर वो तो इसे अपनी जीत, और घर वालो को डरा हुआ समजने लगी |पूरा माहौल घर का बिगाड़ कर रख दिया उसने |
                        अब तो घर के लोगो का जीना दुश्वार होने लगा | ये सब देख कर पद्मा और विमल ने कुछ तय किया | सबको अलग रहने को बोल दिया और नितिन और नीरू को अपने पास ही रहने दिया | सब अपने परिवार को लेकर चले गये | अब तो नीरू को समस्या हुई कि अब किसके साथ झगड़ा करे | सास ससुर के साथ तो कर नहीं सकती | समय भागने लगा | एक साल मे ही नीरू को सब की कमी खलने लगी | सास-ससुर भी सब के बिना उदास रहते थे | नितिन भाई को बहुत याद करता था ,और नीरू को उनके जाने का कारण समझता था | बहुत बार इस बात के लिए पत्नी से उसने शिकायत की |
                          आखिरकार नीरू ने पद्मा से कहा ''मम्मी जी सबको वापस बुलालो अब मै उन सब के बिना आपको,पापा को और नितिन को उदास रहते हुए नहीं देख सकती |' नीरू ने सास से माफ़ी मांगते हुए कहा | पद्मा ने कहा ''तुम फिर से सबके साथ ...... ?' ''नहीं, मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है |' पद्मा और विमल ने नीरू से कहा '' अभी एक फोन करते ही सब आ जायेंगे | हमने तुम्हे सबक सिखाने के लिए ही तुम्हे उन सबसे अलग रखा | तुम्हे परिवार के साथ रहने की समझ आ सके इसीलिए हम सबने मिलकर ये प्लान बनाया और देखो,तुमे समझ में भी आ गया | अब पद्मा के घर फिर पहले जैसी खुशियां अठखेलिया करने लगी थी | ''सब साथ मिलकर रहने मे जो खुशियां मिलती है,वो अकेले रहकर नहीं मेहसूस की जा सकती है |' पद्मा ने सबके आ जाने पर ये कहा | तो सबके साथ नीरू की आँखे भी गीली थी | पद्मा ने अपने सब बच्चो को गले से लगा लिया | एक नई सुबह के इंतजार मे सब रात भर खुशियां मनाते रहे |
शांति पुरोहित
                       
                             
           पश्चाताप                 सुश्री शांति पुरोहित की कहानी                  
                                                                                                                                                             'सुंदर, थी वो,फूल सी कोमल थी | सुन्दरता के साथ-साथ सरलता भी उतनी ही थी | वाणी इतनी मधुर,बोलती तो  ऐसा लगता,जैसे शीतल जल का झरना बह रहा हो | यहाँ मै अपनी कहानी की नायिका रुनझुन के बारे मे बात कर रही हूँ |
                         गाँव की वो छोरी, रुनझुन,ने सब गाँव वालो के दिल मे अपने लिए जगह बनाली थी | बहुत सुंदर गाँव था 'रामपुर ' अनुपम प्राक्रतिक सौन्दर्य से भरपूर गाँव था | सुबह बहुत ही ठंडी बयार चलती है | खेतो मे सरसों के पीले फूल बड़े ही मन- लुभावन लगते है | मिटटी की सौधी खुशबु का तो कहना ही क्या है | ऐसे मे औरते अपना काम बड़े ही  खुश-मिजाज से करती है,और आदमी गाँव की चौपाल पर आकर बैठ जाते है |
                         फिर होती है,पुरे गाँव वालो के बारे पंचायत शुरू | आज भी लोग आकर बैठ गये और इधर-उधर की बाते शुरू हुई | किसकी बेटी की शादी कहाँ हुई है | कौन क्या कर रहा है आदि | ' जैसे ही बेटियों की शादी की बात चली,तो सूरज ठाकुर की बेटी रुनझुन की बात चली,जो शादी के दो साल बाद ही विधवा हो गयी थी |
                         रुनझुन,सूरज ठाकुर की बेटी,नहीं वो तो सब गाँव वालो की बेटी थी | बचपन के खेल-खेलते -खेलते वो कब बड़ी हो गयी,माँ- बाबा को पता ही नहीं चला | वे तो अब भी उसे अपनी शरारती रुनझुन ही मानते थे | आम के वृक्षों पर चढ़ कर सब दोस्तों को आम तोड़ कर खिलाने मे उसके जैसा कोई फुर्तीला नहीं था | सब के खेतो से वो आम,जामुन और बेर तोड़ लेती थी | कभी पकड़ी जाती तो सामने वाले को अपनी बातो मे उलझा कर नो- दो ग्यारह हो जाती | स्कूल मे सब टीचर से दोस्ती कर ली, जब चाहा वहां से निकल लेती थी | पर फिर भी पढने मे सबसे तेज थी | सब टीचर की चहेती छात्रा थी रुनझुन |
                       ' हायर सेकंडरी' तक ही स्कूल था गाँव मे | रुनझुन ने स्कूल की पढ़ाई, अभी ख़त्म की ही थी,कि घर मे उसके लिए रिश्ते की बात होने लगी थी | बेटी के किशोरावस्था मे प्रवेश करते ही घर वालो को उसको शादी के बंधन, मे बाँधने की जल्दी लग जाती है | सदियों से यही सोच रही है| बेटी पराया धन होती है | उसे उसके ठिकाने पहुंचा दिया जाये,तो ही घर वाले चैन की सांस लेते है | कई बार जल्द बाजी मे किये गये फैसले बेटी के लिए घातक भी हो जाते है खैर छोड़ो |
                      'रुनझुन के लिए एक रिश्ता पास ही के गाँव से आया | रिश्ता लेकर आने वाले बिचोलिये ने,लड़के और उसके खानदान की वो प्रसंशा की,सूरज ठाकुर उसी वक्त  पुरे मन से तैयार हो गये | घर वालो ने बहुत समझाया कि ''सूरज पहले लड़के के बारे मे कुछ जान तो ले, फिर हां करते है |' जब कुछ बुरा होना होता है तो इंसान सिर्फ अपने मन के अतिरिक्त किसी की नहीं सुनता है | खैर छोड़ो
                       ''अगले महीने ही रुनझुन की शादी ठाकुर बलवंत सिंह के साथ हो गयी | ससुराल मे उसका गजब का स्वागत हुआ | सास मान कौर तो ऐसे प्यार करने लगी उसे,जैसे घर मे बहु नहीं बेटी आयी है| रुनझुन को तो वो पलंग से पैर नीचे ही नहीं रखने देती थी | बस बहु और बेटा अपने कमरे मे बैठे बाते करते रहे,उन्हें एक साथ ज्यादा से ज्यादा वक़्त बिताना चाहिए | सास का इतना अपनापन देख कर,रुनझुन मन-ही-मन अपने भाग्य की सराहना खुद करती थी | कुछ समय बाद रुनझुन ने देखा,बलवंत कोई दवा खा रहा है | पास जाकर उसने कहा ''क्या हुआ है आपको,ये दवाई क्यों खा रहे हो ? बलवंत उसे ठीक से जवाब नहीं दे सका | ''बस ऐसे ही थोडा ठीक नहीं लग रहा है |
                         रुनझुन ने कई बार चुपके-चुपके दवाई खाते देखा तो उसे शक हुआ | सास को ये पता चला कि रुनझुन को शक हो गया है| और अब तो बलवंत, को चेक-अप के लिए अस्पताल भी ले कर जाना होगा तो उसने एक दिन रुनझुन से कहा ''तुम कुछ दिनों के लिए अपने माँ-बाबा के घर घूम आओ,बहुत दिनों से गयी नहीं हो |'' अचानक सास से मायके जाने की बात सुन कर तो उसका शक यकीन मे बदलने लगा | वो अपने माँ-बाबा के घर आ गयी | रुनझुन को अचानक आया देख कर माँ-बाबा बहुत खुश हुए | उसका उतरा हुआ चेहरा देख कर चिंतित भी हुए | पूछने पर रुनझुन ने कहा ''कोई चिंता की बात नहीं है | पर मेरे यहाँ आने के बाद  उनकी तबियत बिगड़ गयी है मुझे आज ही वापस जाना होगा |''
                          जब रुनझुन घर पहुंची तो घर मे सास-ससुर और पति कोई नहीं था | नौकर से पूछा ''सब कहाँ गये |' नौकर चुप कुछ नहीं बोला | रुनझुन के बार-बार पूछने पर उसने कहा ''छोटे ठाकुर को लेकर अस्पताल गये है |' सुनकर वो घबराई पर अपने को सम्भाल कर कहा '' क्या हुआ छोटे ठाकुर को,मुझे कुछ बताओगे ?' नौकर घबराया पर बोलना पड़ा '' छोटे ठाकुर की किडनी खराब है | डॉ . ने कहा कभी भी कुछ भी हो सकता है |'' सुनकर रुनझुन धम्म से सोफे पर बैठ गयी | उसको अपने चारो और अँधेरा दिखाई देने लगा |
                        उसी वक्त उसी नौकर के साथ रुनझुन अस्पताल पहुँच गयी | उसे मायके से इतनी जल्दी वापस आया देख कर वो तीनो सकते मे आ गये | रुनझुन तो पति से लिपट कर रोने लगी | सास-ससुर उसे सँभालने मे लग गये | उसने सास को कुछ नहीं कहा रुनझुन गुस्से मे वापस अकेली ही घर चली गयी | अपने आप को कमरे बंद कर लिया और रोने लगी | रुनझुन के सास -ससुर उसके पीछे- पीछे घर आये,देखा रुनझुन अपने कमरे मे बंद है | उन दोनों ने कमरे का दरवाजा खुलवाने की बहुत कोशिश की,पर उसने नहीं खोला | अंत मे सास- ससुर उससे माफ़ी मांगने लगे की हम है, तुम्हारे दुःख का कारण ,पर उसने फिर भी कुछ नहीं कहा | तभी रुनझुन कमरे से बाहर आयी, उसकी आँखे सूजी हुई थी |उसने कहा ''आप माफ़ी मत मांगो मेरी किस्मत मे जो लिखा वो हुआ, आप चिंता मत करो अब उनके साथ हम सब मिलकर ख़ुशीयो के साथ जियेंगे | उनको आभास नहीं होने देना है कि हम दुखी है | सास ने बहु को प्यार से गले से लगाया,दोनों रोने लगी |कुछ  दिनों बाद अस्पताल से छुटी मिली | रुनझुन अब अपने पति की सेवा मे तन-मन से लग गयी | समय भागने लगा | शादी के दो साल बाद ही बलवंत किडनी फ़ैल हो जाने के कारण इस दुनिया से विदा हो गया | रुनझुन ने अपने भाग्य के अतिरिक्त किसी को भी दोषी नहीं ठहराया | सास-ससुर ने बहु रुनझुन को बेटी से भी बढ़ कर प्यार दिया | दिन,महिना,साल बिता सास ने रुनझुन को दूसरी शादी के लिए बहुत मुश्किल से तैयार किया | एक बहुत ही अच्छे घर मे उसकी शादी करवाई | लड़का सरकारी महकमे मे उच्च पोस्ट पर कार्य करता है | मान कौर के दिल से अब बहुत बड़ा भार हल्का हुआ है | सही मायनों मे उसने अपना पश्चाताप पूरा किया है |
            शांति पुरोहित    http://woman-man2.blogspot.com/2013/06/b

फिर नई सुबह हुई ......

               फिर नई सुबह हुई.....                                                                                                                                                               'आज घर मे दिन भर खाली बैठे- बैठे बोरियत मेहसूस होने लगी| तो सोचा सब्जी मण्डी जाकर सब्जी ले आऊ| तैयार होकर बाहर आयी| आज गर्मी ज्यादा थी, तो मैंने कॉटन की प्रिंटेड हल्की साड़ी पहनी| गैरेज मे से गाड़ी निकाली और चल दी|
                    सब्जी मंडी घर से थोड़ी दूर थी| मौसम बरसात का था, मैंने ऍफ़. म, चालू किया, एन्जॉय करते हुए मे वहाँ पहुंची| पार्किंग मे गाड़ी पार्क की, और पहुँच गयी सब्जी वाले के पास| 'भैया, सब तरह की सब्जी एक- एक किलो कर दो, और हां, ताजा होनी चाहिए|' अचानक मेरी नजर एक जोड़ी आँखों से टकराई,जो मुझे बड़ी शिद्दत से घूर रही थी| मैंने वहां से अपना ध्यान हटाकर सब्जी वाले को कहा 'सब सब्जिया अच्छे से पैक कर दी ना तुमने|' उसने बैग देते हुए कहा ' हां मैडम सब कर दी ये लो बिल|' मैंने उसे पैसे दिए,और गाड़ी की तरफ चल दी| गाड़ी मे बैग रखकर मै,उस औरत के पास गयी, जो मुझे कब से घूर रही थी|
                    'मैंने देखा,दुबला क्लान्त शरीर था उसका, उदास और धँसी हई आँखे,तन पर मैले-कुचेले वस्त्र थे| ऐसे लग रहा था, तेज हवा चले तो ये घिर जाएगी| ''क्या आप मुझे जानती है ?' मैंने उसको पूछा| उसने मरियल सी थकी आवाज मे कहा 'मै तो आपको देखते ही पहचान गयी,मैडम ,पर लगता है आप ने नहीं पहचाना|' 'मैंने अपने दिमाग पर जोर दिया, तभी उसने कहा '' मै किरण हूँ, 'आँगनबाड़ी' मे काम करती थी| मेरा सेंटर आपके एरिया मे ही मे था| 'ओह,हां, याद आया, किरण शर्मा, 'पर तुम्हारी ये दशा कैसे हुई|' मैंने कहा|' 'बहुत लम्बी कहानी है| फिर किसी दिन, अभी आप लेट हो जाओगी|' हां तुम सही कह रही हो, ये लो मेरा पता कल दोपहर मे मेरे घर आना फिर इत्मिनान से बात करते है|' मैंने उसे अपना विजिटिंग कार्ड दिया और गाड़ी स्टार्ट की|
                    घर आकर बहु को एक कप चाय लाने को कहा, और मै पलंग पर मसनद के सहारे लेट गयी| पता नहीं चला कब आँख लग गयी| बहु ने उठाया नहीं| रात को दस बजे बेटा मुझे उठाने आया| हम सबने खाना खाया| सबने पूछा आज आप इतना चुप- चुप क्यों हो?' कुछ नहीं थकान है,ये कह कर मै अपने कमरे मे चली आयी|
                          'यादो की कडिया जुड़ने लगी| मै ''महिला बाल विकास'' के पद पर कार्यरत थी| उस वक्त मेरा तबादला मेरे गृह नगर झालावाड से बांसवाडा हो गया था| मेरे पति रमाकान्त, बैक मे सहायक मैनेजर थे| मेरा एक बेटा जो मुंबई मे रह कर पढ़ रहा था| घर मे सास-ससुर और पति का साथ था, बांसवाडा ज्वाइन करती हूँ तो अकेले रहना पड़ेगा,ये सोच कर मन घबरा रहा था| ससुर जी मेरी मनस्थती को जान गये, कहा ' बहु फ़िक्र ना करो,मै चलूँगा तुम्हारे साथ, पर अचानक उनके घुटनों मे दर्द ज्यादा होने से वो नहीं चल सके, मुझे अकेले ही निकलना पड़ा|
                  'बांसवाडा मे ज्वाइन किये एक माह हो रहा था| आज 'आँगनबाड़ी कार्यकर्ता' की मीटिंग मे जाना था| दोपहर को मीटिंग थी| करीब एक बजे एक आँगनबाड़ी कार्यकर्ता किरण मेरे ऑफिस आयी| थोड़ी ही देर मे उसके साथ बाते करके मुझे अच्छा लगा| मैंने उसे फिर आने का कहा,और हम दोनों मीटिंग के लिए निकल गयी| जब किसी के साथ आत्मीयता होती है तो मन उस आत्मीय को अपने आस-पास ही देखना चाहता है| किरण भी मेरे दिल की बात जान गयी| वो अक्सर मेरे पास आती रहती थी, शाम का खाना तो लगभग वो ही बनाती थी| किरण की निकटता के कारण मुझे अब अकेलापन नहीं लगता था|ये सब सोचते कब कब आँख लगी,पता ही नहीं चला| सुबह बहु की आवाज से आँख खुली|
                       'डोर बेल बजी,दरवाजा खोला तो सामने किरण अपने उसी रूप मे मेरे सामने थी| ''आओ किरण, हम बैठक कक्ष मे बैठ गये| बहु जल-पान रख कर चली गयी| मैंने चुपी तोड़ते हुए कहा ''किरण कहो क्या हुआ तुम्हारे साथ, मुझे याद है, एक बेटा था तुम्हारे फिर भी तुम्हे ये काम करने की क्यों जरूरत पड़ी?' किरण ने कहा ''हां था,मेरा बेटा विमल, पर किस्मत के आगे मै हार गयी मैडम, मेरे बेटे की शादी के तीन साल बाद ही,एक दुर्घटना मे मेरा बेटा और पति दोनों मुझे रोता-बिलखता हुए छोड़ कर चले गये| बहु थोड़े समय तक तो मेरे साथ रही, फिर एक बार मायके गयी तो वापस वो नहीं, एक चिठ्ठी आयी कि 'माँ अब मेरे आपके पास रहने की वजह तो नहीं रही तो मै अब से अपने मायके मे ही रहूंगी| बहु के ना आने से घर मुझे काटने लगा| नौकरी भी छोड़ चूकी थी| बहु का सहारा था वो भी नहीं रहा| मै हताश-निराश, मैंने अपने भाई के घर जाने का सोचा और एक दिन भाई के घर चली गयी| रात दिन मेरी फिक्र करने वाला भाई ने पूछा ''कैसे आना हुआ सब ठीक तो है ना?' भाभी कमरे मे से आयी,थोडा सा हंसने का नाटक किया और चाय बनाने रसोई मे चली गयी|
                       अभी एक सप्ताह ही बीता कि एक दिन मेरे कानो ने सुना '' अब क्या आपकी बहन हमेशा के लिए रहने आई है, क्या ?' उसे कल ही जाने को बोल दो,' मुझे डर है कि इस करमजली के आने से हमारी हंसती-खेलती गृहस्थी तबाह ना हो जाये|' भाभी के मुह से निकले शब्द मेरे कानो मे पिघलते सीसे के समान थे| वो 'कल जाने का कहते मै उससे पहले ही अपने घर चली आयी| इतना कह कर किरण रोने लगी, थोडा पानी पीने के बाद कहा जब कोई मेरा अपना ना रहा तो पेट पालने के लिए मैंने ये काम किया है|' किरण की बाते सुनकर मेरी आँखे बहने लगी| मैंने उसको कहा 'आज से तुम अकेली नहीं,मै तेरे साथ हूँ| तुम मेरे घर मेरे पास रहोगी|, मैंने उसे अपने कपड़े दिए और उसे नहाने के लिए कहा| किरण कपड़े बदल कर आयी और मेरे पैरो मे गिर कर कहने लगी '' आज भी इस दुनिया मे आप जैसे देवता लोग रहते है,जो अपने ऊपर किये गये थोड़े से अहसान का बदला इतने बड़े रूप मे चुकाता है| आज मेरे जीवन की फिर एक नई सुबह हुई है| आपको कोटि प्रणाम| दोनों गले मिलकर भाव विहल हो गयी|
      शांति पुरोहित
                      

Tuesday 11 June 2013

                                                             
                                                  कृष्ण


                                                                  कृष्ण तुम कारे हो तो क्या ?
                                                                         यशोदा के राज दुलारे हो 
                                                                    नन्द को सबसे प्यारे हो 
                                                                           राधा के प्राण प्यारे हो 
                                                                   गोपियों की आँखों के तारे हो 
                                                                           भक्तो के पालन हांरे हो 
                                                                     स्रष्टि को सेवन हांरे हो 
                                                                                  सुदामा के मित्र प्यारे हो  
                                                                         अर्जुन के सखा न्यारे हो 
                                                                                       मीरा को तारन हांरे हो 
                                                                             देवकी के पुत्र प्यारे हो 
                                                                       कृष्ण तुम कारे हो तो क्या ?



Sunday 9 June 2013

विवार, 31 मार्च 2013


खुशी


‘सूरज,की पहली किरण जैसे ही धरती पर अपनी लालिमा बिछाती है...नीरू रोज सुबह सूरज के निकलने कि पहले ही उठ जाती थी...और सूरज का स्वागत करती थी | ये ही वो वक़्त था जिसे वो अपने लिये जीती थी |जैसे ही सूरज की किरण धरती पर आती है ,वो उन्हें अपनी बांहों में समेट लेती और दस मिनिट तक तक आँखे बंद करके खुद मे खो जाती है |उसी वक़्त घर मे से आवाजे आनी शुरू  हो जाती है | ‘मम्मी जल्दी क्यों नहीं उठाया,मुझे आज जल्दी कालेज जाना था , नीरू के बेटे जीत  आवाज आई अभी वो इसका कुछ जवाब दे,तभी नीरू की तेरह की साल की बेटी पिंकी कहती है,;मम्मी आज मेरे टिफिन मे सेंडविच बना कि डालना मेरे फ्रेंड्स को बहुत पसंद है |
                       जैसे ही ये दोनों काम नीरू ख़तम करती है,तभी ससुर जी की आवाज आती है की’नीरू चाय मुझे बाहर आँगन मे ही दे जाना आज यही परर बैठ कर चाय पिने का मन कर रहा है |’ तभी सासुजी कि आवाज नीरू के कानो मे आती है ,;नीरू बेटा मुझे चाय कमरे मे ही दे जाना बाहर थोड़ी ठण्ड है |एक को इधर एक को उधर,तभी उसे याद आया की आज ‘ नीरव , की शर्ट भी इस्त्री करनी है,नहीं तो सुबह –सुबह डांट खानी पड़ जाएगी | वो दौड़ कर इस्त्री करने चली गयी |
                       फिर उसने नीरव को उठाया......नीरव चाय पीता है तब रोज दस मिनिट उनके पास बैठना पड़ता है | ये दस मिनिट वो नीरव के लिये मुश्किल से निकालती ,अपने आप से ही सवाल करती है कि वो इतने से वक़्त मे क्या काम लेगी | नीरव उसे कितना प्यार करता है पर वो दस मिनिट भी नहीं निकाल पाती | नीरव को नीरू का दस मिनिट उसके पास बैठना समझ ही नहीं आता,क्योंकि उस वक़्त नीरू का ध्यान उसका टिफिन बनाने मे लगा रहता था |
                     सबके चले जाने के बाद वो खुद की चाय ले कर बैठी ही थी की ससुर जी की आवाज आई ‘नीरू मेरा तौलिया कहाँ है ,वो चाय रख कर तौलिया देने गयी वापस आई तब तक चाय ठंडी हो गयी |वैसी ही चाय को पीकर वो चल दी वापस बाकि के काम निपटाने | शाम कब हो जाती थी उसे पता नहीं चलता था |अब वापस वो ही शाम का खाना बानाना वो ही शिकायते,ये क्यों बनाया ,ये क्यों नहीं बनाया ,क्या करती हो सारा दिन |रोज रोज ये ही सब सुन कर अब नीरू तंग आगयी थी |
            आज उसकी शादी की शालगिरह है,पर घर मे किसी को भी याद नहीं,सब अपने अपने काम मे जुटे थे,और अपनी अपनी जरुरत की चीज मांगने मे लगे थे |यहाँ तक कि खुद नीरव को भी अपने शादी की शालगिरह याद नहीं थी | सब चले गये तो नीरू की आँखों मे आंसू आगये | अपनी सासुजी के पास बैठ कर रोई और उन्हें कहा कि शायद माँ अपने बेटे की शादी इसलिए करती है कि उसे आगे जाकर कोई काम न करना पड़े ,राधा देवी उसकी सासुजी सुनकर कुछ नहीं बोली ,बस उठ कर अपने कमरे मे चली गयी |
रात को’ नीरव, आया बच्चे आये | वो रात का खाना बनाने मे जुट गयी पर अन्दर ही अन्दर जल रही थी | कि किसी को कुछ याद नहीं,लगता है ,मै इस घर कि कामवाली बाई हूँ,जो दिन भर इनको सभालने मे लगी रहती है | तभी घर कि बेल बजी और एक आदमी हाथ मे केक लिये खड़ा है जिस पर लिखा हैniru from sasu maa सब देखते रह गये,नीरू ने सासुजी के पैर पकड़ कर माफ़ी मांगी वो दिन मे उनको सुना कर आई थी इसलिए,तभी सास राधा देवी ने उसे दो टिकिट दिए और कहा कि जाओ घूम कर आओ दार्जिलिंग तुम और नीरव |
राधा देवी ने नीरू से कहा ‘’मे जानती हूँ तुम हम सब को सँभालने मे कितनी परेशां होती हो,पर नीरू ये घर इसलिए ही टिका है कि तुम अच्छे से संभालती हो ,तुम इस घर की काम वाली बाई नहीं ,घर की मालकिन हो | बड़े नसीब वाले है हम ,हमें तुम जैसी बहु मिली ,जो गृह लक्ष्मी बन कर इस घर मे आई है |
अब राधा देवी ने नीरू से कहना शुरू किया ‘’जब मै इस घर मे बहु बन कर आई ,मेरी सासुजी का सवभाव बहुत तेज था ,बात बात मे उनका टोकना रोज का काम था | मै उनसे बहुत डरती थी ,बाद मे मैंने सोचा ऐसे कसे चलेगा |धिरे धिरे मैंने उनके दिल मै अपने लिये जगह बनानी शुरु की ,और कुछ ही सालो मे उनकी और मेरी पक्की दोस्ती हो गयी | अब हम दोनों के बिच मे माँ बेटी का रिश्ता कायम हो चूका था | अब घर मे सब खुश थे | तुम्हारे ससुर जी बहुत खुश हुए मेरे इस काम से ‘’तुमने कसे इतनी जल्दी मेरी माँ का मन जीत लिया ,सच मे तुम ने इस घर को नरक होने से बचालिया मे  बहुत खुश हूँ |

शांति पुरोहित
shanti.purohit61@gmail.com

15 टिप्पणियाँ:

  1. बहुत बढ़िया कहानी शांति जी ...
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    1. उपासना आपका बहुत शुक्रिया
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    2. उपासना आपका बहुत शुक्रिया
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  2. अच्छी कहानी शांति जी ........बधाई सुन्दर रचना के लिए ......
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    1. अरुणा जी आपका बहुत शुक्रिया जी
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  3. ye hi hai aurt ki jindgi shantiji..par aapne jo sas ki bat kahi usse bahut achcha laga..ki ek aurt agar dusri aurt ka dard samje to jina aasan ho jata hai.. bahut achchi kahani..
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  4. एक नई शुरुआत के लिए नीरू को ढेरों बधाई
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बृहस्पतिवार, 25 अप्रैल 2013


रिश्ता


आज सुबह -सुबह मुकेश भाई की पत्नी कृष्णा ने कहा ''अब तो मेरे बेटे अमित की शादी के लिये कोई रिश्ता देखो,अब तो वो पढ़ -लिख कर आपके काम मे आपको हाथ भी बटाने लगा है |
तभी मुकेश भाई ना कहा'अरे ! हाँ ''मै तो तुम्हे बताना ही भूल गया था कि अमित के लिये एक बहुत ही अच्छे घर से रिश्ता आया है ,|मुकेश भाई ने अपनी पत्नी कृष्णा को जानकारी देने के हिसाब से कहा कि'' कृष्णा मैंने तो ये पक्का कर लिया है कि अमित की शादी इसी घर की लड़की के साथ ही करूँगा |
                                                            मुकेश भाई को लगा कि मोहन भाई की लड़की के साथ अमित का रिश्ता कर देने से उनके घर की जो भी तखलीफ है वो दूर हो जायेगी,घर मे जिस चीज की भी कमी है वो भी दूर हो जाएगी |
                                                            क्योंकि मोहन भाई अपनी बेटी की शादी मे बहुत पैसे खर्च करने वाले है | तो मुकेश भाई ने तो मन -ही -मन मे ये तय कर लिया था कि अपने बेटे अमित की शादी इसी घर मे करेंगे |
                                                              ये सब उन्होंने अपनी पत्नी कृष्णा को नहीं बताया था |
                                                                                                                                             अब इसके लिये मुकेश भाई ने अपने बेटे अमित को भी कह दिया था कि लड़की दिखने मे चाहे कैसी भी हो,तुम्हे हां ही कहना है | अमित ने सोचा की पापा ऐसा क्यों कह रहे है | उसने सुन कर हाँ बोल दिया और पूछा कुछ नहीं | आज वो अपने मम्मी -पापा के साथ मोहन भाई के घर लड़की देखने आये है | एक आलीशान बैठक मे सब बैठ गये और इधर -उधर की बातो से बोल -चाल का का सिलसिला चालू किया लेकिन मुकेश भाई का ध्यान बातो से ज्यादा उनके आलीशान घर को देखने मे ही था | वो उनकी शानो -शौकत देख कर उसी घर मे अमित का रिश्ता करने के अपने इरादे को और भी मजबूत कर चुके थे |
                                                                  इतने मे ही लड़की की माँ किरण देवी अपनी बेटी प्रिया को लेकर बैठक मे आई | सब को नमस्ते बोल कर प्रिया सोफे पर अपनी माँ के पास बैठ गयी | अमित ने देखा की प्रिया सुन्दर,सोम्या तो थी साथ ही रहन -सहन मे पैसो की झलक स्पष्ट दिखाई दे रही थी उसके चेहरे का रौब देखते ही बनता था | अमित को लगा कि जैसे वो अपने आप को उसके सामने छोटा समझने लगा है | वो मन ही मन विचार करने लगा कि कैसे संभाल पायेगा वो प्रिया को जो इतने आराम से रही हुई है अपने घर मे |
                                             वैसे अमित भी कम नहीं था,देखने मे स्मार्ट था अच्छी कद -काठी का था,किसी भी लड़की को देखते ही पसंद आ जाये ऐसा वयक्तित्व था उसका और यहाँ भी ऐसा ही हुआ | प्रिया ने उसे पसंद कर लिया और इशारे से अपनी माँ को बता भी दिया फिर वो सब की इजाजत ले कर अपने कमरे मे चली गयी | पर अमित की माँ इस रिश्ते के खिलाफ थी | अमित की माँ कृष्णा ये मानती थी कि लड़की के पापा के पास बहुत पैसा है और वो अपनी बेटी की शादी मे खूब पैसा खर्च करेंगे | उनका छोटा सा घर तो उनके दिए सामान से जैसे भर ही जायेगा  | तब लड़की के पापा बेटी को नया घर लेकर दे देंगे तो मेरा अमित मुझसे दूर चला जायेगा तो वो मन ही मन सोच रही है की ये रिश्ता हो ही ना | पर मुकेश भाई ने भी कृष्णा को कह दिया था की तुम्हे कुछ नहीं कहना है | इधर इन सब बातो से अनजान
 अमित को कुछ भी पता नहीं था |
                                                 तभी मोहन भाई ने कहा ''दोनों बच्चो की कुंडली मिलवा लेते है सब ठीक रहा तो बात पक्की समझो | अब मुकेश भाई को चिंता हुई कि कुंडली नहीं मिली तो?.फिर भी उन्होंने मोहन भाई को कहा ''मै कल पंडित को लेकर आपके घर आता हूँ | और वो लोग मोहन भाई से विदा ले कर अपने घर आ गये |मुकेश भाई ने पंडित को अपने घर बुलाया | मुकेश भाई को जिस बात का डर था वही हुआ पर उन्होंने पंडित को पैसो से खरीद लिया | ये सब मुकेश भाई की पत्नी कृष्णा ने सुन लिया था अब मुकेश भाई पंडित को ले कर मोहन भाई के घर पहुंचे इससे पहले ही कृष्णा ने मोहन भाई को फोन कर दिया कि ''मेरे पति ये रिश्ता पैसो के लिये कर रहे है कुंडली मिली नहीं है |, सामने से मोहन भाई बोले मै बहुत खुश हूँ की लड़के की माँ इतनी ईमानदार और साफ दिल की है, और कहा कि बहन जी अब तो मुझे कुंडली भी नहीं मिलानी है, और अब शादी पक्की ही समझो |, अगर आप जैसी सास मेरी बेटी को मिल जाये तो इससे बढ़ कर और क्या है |खुशिया ही खुशिया भर जाएगी मेरी बेटी प्रिया के जीवन मे | जब बात चल ही  रही थी तो कृष्णा ने अपने मन का डर भी उनके सामने रख दिया | ''आप इतने अमीर हो मेरे बेटे को घर तो खरीद कर नहीं दोगे ना ,, अमित की माँ कृष्णा ने मोहन भाई को कहा | मोहन भाई ने कहा ''बहन जी घर तो आको लेना ही पड़ेगा,आपका घर है भी तो कितना छोटा |,वो बोली इसलिए ही मै अमित की शादी यहाँ करना नहीं चाहती थी |
                                           मोहन भाई हंसने लगे और कहा ''मै आपको इतना बड़ा घर लेकर दूंगा जिसमे आप सब आराम से रह पाओगे | मेरे तो ये एक ही बेटी है तो इसे ना दूँ  तो और किसे दूँ ,और हाँ आप डरिये बिलकुल भी नहीं मैंने अपनी बेटी को केवल पैसो की चका -चौध नहीं दिखाई है उसे अच्छे संस्कार भी दिए है की वो बड़ो का आदर -सम्मान करे |
                                           अब अमित की माँ कृष्णा ने चैन की साँस ली और अमित की शादी धूम -धाम से की | शादी हो जाने के बाद मोहन भाई ने कृष्णा को कहा कि लड़की के लिये पैसा वाला घर ही देखना मेरी नजर मे ठीक नहीं है पैसा ही सब कुछ नहीं होता एक अच्छी सास का होना भी बहुत जरुरी है और अच्छी बहु का होना भी जरुरी है तभी घर -घर बना रहता है मुकेश भाई ने अपनी पत्नी कृष्णा की सुलझी हुई सोच की बहुत तारीफ करी और सब खुश थे |
shanti ji kahani
                   शांति पुरोहित

9 टिप्पणियाँ:

  1. बहुत अच्छी कहानी , आपकी कहानियों के विषय हमेशा अच्छे होते हैं
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  2. बेहद खूबसूरत अहसास से सजी हुई कहानी
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  3. ek sakaratamak soch wali kahani par real life main kaha ho pata hain aisa?
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  4. सुन्दर प्रस्तुति शान्ति जी ..........
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  5. सुन्दर प्रस्तुति शान्ति जी
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  6. awesome jada paisa bhale na ho par insan sachchaa hona chahiye jindagi me sukun hona chahiye
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