Sunday 19 May 2013

               धरोहर एक गुरु की          सूश्री शांति पुरोहित की कहानी    (  धरोहर एक गुरु की  )




                                                                                                                                                              सदर बाजार मे पीपल के पेड़ के गटे पर टाट-पट्टी बिछा कर बैठता है पन्ना लाल ! उसके दाई और एक लकड़ी कि पेटी रखी रहती है,जिसमे उस्तरा,कैंची मशीन और कंघा रहता है | पास मे ही पानी कि बाल्टी रखी है,वो  बाल काटते वक्त पानी उसी मे से लेता है |
                                          उन दिनों आज की तरह ''ब्यूटीपार्लर'' का चलन नहीं हुआ करता था |लोग-बाग़ यहाँ नाई के पास आकर बाल कटवा लिया करते, हजामत भी करवा लेते थे | पुरे दिन खटने के बाद भी पन्ना की कमाई दो-तीन रुपया ही होती थी | शहर से दूर कच्ची बस्ती मे कच्चे मकान बस्ती वाले लोगो के बने है,वही  पर पन्नालाल का भी घर है | घर की दीवारे गारे-गोबर की,और छत खपरेल की बनी थी | घर की औरते फर्श को गारे से लीप लेती थी |
                                पन्ना ने सोचा ''खाली बैठने से तो बैगार ही भली'' ये लोग जहाँ ज्यादा घर होते है,वही किसी गली के मोड़ पर या किसी दरख्त के नीचे बने गटे को अपना ठिकाना बना लेते है | आस- पास के घरो के लोग इनके पास आते रहते है जिनसे इनकी रोजी-रोटी चलती रहती है,और लोगो को अपने इस काम के लिए ज्यादा दूर भी नहीं जाना पड़ता है |
                                गाँव मे कोई मरता है, तो ये वहां जाना पहले पसंद करते है,क्योंकि वहां एक ही दिन मे अच्छी कमाई हो जाती है | बाप का जो काम,वही पन्ना का काम, और अब अपने बेटे को भी पन्ना इसी काम मे लगाना चाहता था | कई बार अपने बेटे सोहन को दूकान पर बैठा कर पन्ना घरो मे लोगो के कटिंग करने जाता था | सोहन ने काम तो अभी तक कुछ भी नहीं सीखा था |
                                जहाँ पन्ना बैठा करता था,वहा सामने बने आलिशान घर मे सीनियर सेकंड्री स्कूल के प्रिंसिपल साहब अपने परिवार सहित रहते थे | तेज गर्मी,सर्दी और बरसात मे पन्ना उन्ही के घर के आगे बने बरामदे मे बैठ जाया करता था |
                                  पन्ना की इतनी आमदनी नहीं थी कि वो सोहन की पढाई चलने दे;पांचवी पास करते ही सोहन का स्कूल से नाम कटवा लिया और धंधे पर लगा लिया | पर एक बार सोहन स्कूल क्या गया उसका मन अब पढने के सिवा किसी और काम मे नहीं लगता | अक्सर सोहन पिंसिपल जी के घर से पढने के लिए कोई किताब मांग कर ले आता और दुकान पर पढता रहता | पिंसिपल जी की नजर से ये छुप नहीं सका कि सोहन को पढने का मौका मिले, तो ये पढ़-लिख कर बहुत बड़ा आदमी बन सकता है |
                                   सोहन की पढने की लगन देख कर प्रिंसिपल साहब ने एक दिन पन्ना से पूछा ''तुमने सोहन को पढने से क्यों रोका वो बहुत होशियार है, पढने मे उसकी बहुत रूचि है,मै चाहता हूँ तुम उसे पढाने के बारे मे एक बार फिर से सोचो ?'' मै मदद करने को तैयार हूँ, तुम ठीक समझो तो जरुर बताना, मै तुम्हारे जवाब की प्रतीक्षा करूँगा |
                                 '' कैसे हां भरू साहब...अपनी लाचारी व्यक्त करते हुए पन्ना बोला, सुबह से शाम तक खटता हूँ तो भी बच्चो के पेट पालने तक की कमाई नहीं होती है......तो इसकी फीस,किताबे,कापियों का खर्चा कहाँ से निकालूगा |'' ये तो प्रिंसिपल साहब जानते ही थे कि पन्ना की मुख्य समस्या यही रही होगी |प्रिंसिपल साहब ने कहा ''देखो बच्चे को पढ़ते हुए तो तुम भी देखना चाहते होगे,तो ये खर्च की चिंता तुम मुझ पर छोड़ दो ,ये सब मै देख लूँगा....अगर सोहन का मन पढने मे वापस लगता है तो इसके पढने का खर्च मै करूँगा |
                                  पन्ना लाल बहुत खुश हुआ और कहा ''आप मेरे बच्चे के लिए इतना सब करने के लिए तैयार है,तो ये बहुत बड़ी मदद होगी सोहन के भविष्य के लिए,मेरे सारे परिवार के लिए बहुत बड़ी बात है | आप बड़े दयालु हो...आपके दिल मे हम जैसो के लिए इतनी दयालुता देख कर मै आपमें भगवान के दर्शन कर रहा हूँ |आपको भगवान खूब बरकत दे |
                                   सोहन ने उसी दिन प्रिंसिपल साहब को अपना गुरु माना;उनके निर्देशन मे उसने दसवी क्लास मे दूसरी पोजीशन लाकर साबित कर दिया कि प्रिंसिपल साहब ने उस पर विश्वास करके कोई गलती नहीं की है उसने उनकी उम्मीद पर खरा उतरना शुरू कर दिया है | गाँव और स्कूल का नाम रौशन किया |पन्ना के कुटुम्ब,परिवार मे यहाँ तक पूरी जात मे सोहन पहला बच्चा है, जिसने दसवी पास की,वो भी पोजीशन के साथ | प्रिंसिपल साहब आज से दस साल पहले कलकता से आये थे,तब से इसी हाई स्कूल के प्रिंसिपल है | गरीब,होनहार, प्रतिभाशाली बच्चो को सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओ से मदद दिला कर उन्हें आगे बढ़ने मे हमेशा मदद की है | अब तक सैकड़ो बच्चो को वो पढने के अवसर उपलब्ध करा चुके है | और एसी प्रतिभाओ को तराशने के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते है |उदारमना, जो है गाँव वाले उनकी बहुत इज्जत करते है |
                                 अपनी मेहनत और लगन से सोहन ने सीनियर भी अच्छे अंक के साथ उतीर्ण कर ली | अब पन्ना उसे अपने पुस्तैनी काम मे लगाना चाहता था | चाहता था कि सोहन काम मे मदद करेगा तो कमाई ज्यादा होगी | पर प्रिंसिपल साहब को ये पता चला तो कहा ''पन्ना पहले तुम सोहन की राय तो जान लो,वो क्या चाहता है| ''सोहन को पूछा तो उसने कहा ''मेरा फर्ज बनता है कि मै पिता की मदद करू, पर अपनी पढाई बंद करके नहीं,मै टयुसन पढ़ा कर पिताजी की मदद  करने के साथ अपनी पढाई जरी रखूँगा |''
                               पढने के साथ सोहन पिताजी की मदद भी करने लगा था | पन्ना खुश था बेटे से मदद पाकर | एक दिन प्रिंसिपल साहब ने सोहन से कहा ''तुम जितना चाहो पढो,कभी इंकार नहीं करूंगा,पर मेरी एक छोटी सी इच्छा है वो तुम्हे पूरी करनी है|''
                                 'जी, कहिये क्या करना है आपके लिए,''इच्छा सिर्फ इतनी सी है कि जब तुम पढ़-लिख कर कुछ बन जाओ तो अपनी जात-बिरादरी,भाई ,बहन और परिवार जन को भूल तो नहीं जाओगे ना| जो गरीब और आर्थिक रूप से पीड़ित हो उनकी मदद जरुर करना ,अपनी पढाई को अपने करियर तक सीमित  मत रखना | सब को तुम्हारी पढाई का फायदा मिलना चाहिये |''
                                 सोहन ने कभी नहीं सोचा कि प्रिंसिपल एसी कोई इच्छा उसके सामने रखेंगे | इसमें उनका तो कोई निजी फायदा भी नहीं था | अगर मै हां बोलू ,तो उनको आत्मसंतुस्टी होगी,और यही वो शायद मुझसे चाहते है | बहुत मायना रखती थी उनकी ये इच्छा सोहन के लिए| थोड़ी देर सोचने के बाद बोला ''सर पूरी कोशिश करूँगा आपकी इच्छा पूरी करने की |'' प्रिंसिपल साहब आश्वासन पाकर खुश हो गये |ढेरो आशीर्वाद दिया | तुम्हारी शिक्षा का लाभ सब को मिले नहीं तो सब बेकार हो जायेगा | कोशिश यही करना प्रतिभा संपन्न बच्चो की हर तरह से मदद करना | मैंने देखा है कि तुम्हारी जाती-बिरादरी के लड़के-लडकिया बहुत पिछड़े हुए है | सोहन ने हां कहा |
                               अगले तीन सालो मे ग्रेजुएसन हो गयी | ऍम.बी.ए. के लिए सोहन ने आई.आई.ऍम बंगलौर मे फॉर्म भरा हुआ था, चयन तो होना ही था,पढने मे तेज जो था | सोहन ने बैगलोर जाकर वहां की युनिवर्सिटी के बारे मे अपने सर,प्रिंसिपल साहब को सब बताया और उनका आशीर्वाद ले कर अपनी पढाई मे व्यस्त हो गया |दिन,महीने, साल बीतते गये;अब प्रिंसिपल साहब को बुढ़ापा-जनित रोगों ने घेर लिया था वो रिटायर हो कर अपने गाँव चले गये थे | उनका बेटा प्रशांत उनकी अच्छी तरह से सेवा-चाकरी कर रहा था | पर थोडा ठीक होते ही वो समाज-सेवा को निकल जाते थे |
                                   कुछ ही समय बाद सोहन सबका चहेता बन गया क्योंकि हर सेमेस्टर मे अव्वल आता था | यूनिवर्सिटी मे ही पढ़ाने का ऑफर मिला सोहन को और उसी वक्त फोरेंन की टॉप कंपनी से ऑफ़र आया | सोहन अच्छा पैकेज और विदेश मे रहने के लालच के लिए उस कंपनी का ऑफ़र स्वीकार कर लिया,और प्रिंसिपल साहब को पत्र द्वारा सूचना भेज दी | पत्र पाकर खुश हुए प्रिंसिपल साहब की ख़ुशी पत्र मे लिखा ये पढ़ कर गायब हो गयी कि ''सर मै विदेश जॉब के लिए जा रहा हूँ | ''ओह नो '' इतना बड़ा धोखा मेरे साथ किया सोहन ने,कोई बात नहीं ! पर मैंने तुमसे ये तो नहीं चाहा था | अब आगे कुछ नहीं कहूँगा और वो उदास हो गये थे |
                                उन्होंने सोहन को एक पत्र लिखा ''तुम मुझे धोखा कैसे दे सकते हो ? तुमने मुझसे मेरी इच्छा पूरी करने का वादा किया था | पर कोई बात नहीं अब से तुम् अपने फैसले खुद ले सकते हो | मै अब कुछ नहीं कहूँगा |'' पत्र पढ़ कर सोहन को जैसे एक झटका सा लगा,प्रिंसिपल का चेहरा आँखों के सामने घुमने लगा | और वो सब याद आया जो उसे सर ने कहा था | मन ही मन मे कुछ तय करते हुए सब से पहले उस विदेशी कंपनी को अपने नहीं आने की सूचना भेजी और प्रिंसिपल साहब को लिखा ''सर मुझे माफ़ करना मै लुभावने पेकेज के लालच मे आ गया था | अब अपने घर आ रहा हूँ, अपने पिताजी की और आपकी इच्छा जो पूरी करनी है | जैसे  ही सोहन का पत्र प्रिंसिपल साहब के घर पहुंचा उनके बेटे ने उनको पढ़ कर सुनाया | उन्होंने पत्र को अपने हाथ मे लिया और काँपते हाथो से उस पर लिखा ''शाबाश बेटे मुझे तुमसे यही तो आशा थी |'' और ढेरो आशीर्वाद दिया |
                         अंत मे प्रिसिपल साहब ने सोहन के आ जाने के बाद उसे बहुत कुछ समझा कर , उससे जी भर कर बाते कर लेने के बाद अंतिम साँस ली | सोहन रो पडा | सामाजिक सरोकार के कारण सोहन दस दिन तक प्रिंसिपल साहब के बेटे के साथ रहा और फिर अपने घर अपने गुरु प्रिंसिपल साहब से किये गये वादे को  पूरा करने आ गया था | साथ मे उनका लिखा वो पत्र भी ले कर आया जो सोहन के लिए प्रिंसिपल साहब की धरोहर के रुप मे था और हमेशा उसके पास रहेगा | उनकी धरोहर को संभालना अब सोहन के लिए उसके जीने का उद्देश्य बन गया था |
                                 शांति पुरोहित
  
मेरी कहानी पढना और अपने अनमोल प्रतिभाव देना. ".धरोहर एक गुरु की  "  

Thursday 2 May 2013

दीपक तले अँधेरा













समाज कल्याण विभाग के प्रमुख रमाशंकर अपने माता -पिता की एक मात्र संतान थे | उनके माता -पिता ने उसका विवाह बड़े ही धूम -धाम से पास ही के गाँव के नगर सेठ की बेटी सीता से करा दिया था | रामशंकर के माता -पिता सुन्दर सुशील बहु को पाकर बहुत खुश थे | सीता सुन्दर तो थी ही साथ ही पढ़ी लिखी और समझदार भी थी | रमाशंकर भी इतनी गुणवान पत्नी पाकर बहुत खुश था |
शादी के एक साल बाद घर मे बच्चे की किलकारी गूंजने की खबर से सब खुश थे अपने वंश को आगे बढ़ता जान सब खुश थे पर सीता को उन सब की ये बात पसंद नहीं आई लड़की भी हो सकती है पर कुछ कह नहीं सकी और सीता ने बेटी को जन्म दिया | घर के सारे लोग नाराज हुए पर इसमें उसका क्या दोष था | बातो -बातो मे सीता ने अपने पति को समझाया कि पति -पत्नी मे से किसी एक मे कुछ कमी रहती है तो बेटी होती है वैसे सीता को पता था पर पति को स्पस्ट बता नहीं सकती घुमा फिरा के बताया तो भी रमाशंकर भड़क गये और गुस्से से सीता पर हाथ भी उठाया |
अभी बेटी एक साल की भी नहीं हुई सीता को दुसरे बच्चे के किये मजबूर किया पर दूसरी भी बेटी हुई| सीता पर वापस गुस्सा किया और कहा की तुम हमे बेटा कब पैदा कर के दोगी | जैसे बेटे की चाह ने रामशंकर को अँधा कर दिया था | फिर तीसरे साल मे सीता को बच्चे के लिए मजबूर किया | इस बार रामशंकर को किसी ने लिंग -परिक्षण कराने की सलाह दी जबरदस्ती जाँच कराने सीता को अपनी माँ के साथ भेजा | पता चला सीता के गर्भ मे दो बेटिया पल रही है जैसे ही रमाशंकर की माँ ने बेटे को फोन से जानकारी दी की जुड़वाँ बेटिया आने वाली है उस वक़्त रमाशंकर एक सभा मे भाषण देने गये थे रमाशंकर ने कहा की दोनों बेटियों को निकलवा दो अब और बेटी नहीं चाहिए और वो भाषण देने लगा | जब सीता और उसकी सास डॉ. के पास गर्भ गिराने की बात करने को गयी तो डॉ. ने कल आने को कहा फिर जब दोनों वापस घर के लिए निकली तो सीता ने कुछ बहाना बना कर सास को घर भेजा और खुद सभा स्थल पहुँच गयी और अपने पति के असल विचारो की पोल खोल दी ये सब सीता से जानकर विभाग ने रमाशंकर को उसी वक़्त पद से हटाया और पुरे विभाग वालो ने एक स्वर मे रमाशंकर आलोचना की थी | सीता ने तलाक लेकर अकेले रहने का फैसला किया |
सीता समझदार तो थी ही उसने दोनों बेटियों को जन्म दिया और अस्पताल के डॉ. से लिखवा लिया कि बेटी होने का कारण खुद रमाशंकर था और सब को दिखाया समाज कल्याण विभाग ने सीता की बहादुरी के लिए वो पद दे दिया | सीता की समझदारी से उसकी दोनों बेटिया बच गयी और दोनों डॉ. बन गयी अब सीता अपनी चारो बेटियों के साथ रहती है | रमाशंकर अब अपनी करनी पर पछता रहा है उसकी चारो बेटिया ऊँचे पदों पर काम कर रही है बेटे की चाह ने उसका सब 
कुछ बर्बाद कर दिया था |
ये कहानी भी पढना और प्रतिभाव देना
http://www.saadarblogaste.in/2013/05/blog-post_12.html