Thursday 7 February 2013

प्रत्येक व्यक्ति के जीवन मे चार माताएँ होती है -१ जन्म दात्री जननी २ गो माता ३ भूमाता और ४ है जगन्माता परमेश्वरी | यहाँ हम गो माता कि महिमा पर विचार करेंगे | पूज्या गो माता कोई साधारण पशु नहीं है गो माता हमारी पूज्या और प्रातस्मरणीया है | श्री कृष्ण परब्रह्म भी पूज्या गो माता की अपनी पूज्या माता मानकर अपने हाथो से उनकी सेवा करते है,अपने प्राणों से भी प्यारी मानते है | गो रक्षण करने के लिये ही निराकार परब्रह्म श्री कृष्ण के रूप मे प्रकट होते है |गो माता साक्षात नारायण है इनमे और श्री नारायण मे कोई अंतर नहीं है |वही साक्षात पूज्या गो माता जो आज इस        मुनियों के देश ,धर्म प्राण भारत मे नित्य प्रति हजारो लाखो की संख्या मे गो माताएँ धडा धड काटी जा रही है। ये एक प्रकार से बड़ा भारी पाप किया जा रहा है गो हत्या से बड़ा कोई पाप नहीं है । हमारे पूज्य वेद भगवान ने पूज्या गो माता की बड़ी भारी स्तुति की है ।श्री वेद भगवान जिसकी स्तुति करते है वह पूज्या गाय क्या कोई साधारण पशु है। गो के शारीर मे समस्त देव गण निवास करते है और गो के पैरो मे समस्त तीर्थ निवास करते है गो माता की इतनी महिमा है कि यदि कोई गो के पैरो मे लगी हुई मिटटी का तिलक जो मनुष्य अपने मस्तक पर लगाता है वह उसी वक़्त तीर्थ जल मे स्नान करने का फल पाता है। शास्त्रों मे यहाँ तक वर्णित है कि जहाँ पर गोए रहती है वो भूमि तीर्थ भूमि कहलाती है गो शाला मे जो व्यक्ति भगवान की भक्ति करता है उसे दस गुना ज्यादा फल मिलता है ।यहाँ तक कहा गया है कि गोए और ब्राह्मण दोनों एक ही कुल के प्राणी है दोनों मे विशुद सत विधमान रहता है ।लेकिन जब से गोवध होने लगा है विश्व की प्रजा दुखी रहने लगी है क्योंकि गो माता दुखी होगी तो और सब को तो दुखी होना ही है ।भारत और अन्य देशो मे अब गोवध बहुतायत मे होने लगा है ।कलियुग मे गोवध को रोकने के लिये रामावतार मे अयोध्या वासियों को स्वयं भगवान राम ने गो सेवा की शिक्षा दी है और वो कहते है कि 'मे इस रामावतार मे 'गो सेवा 'नहीं कर सका ।उस वक़्त लोगो ने मुझे महाराज दसरथ जी का पुत्र समझ कर ये पुनीत कम नहीं करने दिया,इसलिए अब मे इसके लिये ही अगला कृष्ण अवतार धारण करूँगा और गो सेवा करूँगा और ये तो सर्व विदित है की भगवान कृष्ण ने अपने बचपन काल से ही गो सेवा करनी चालू करदी थी।गो पाप करने का कितना बड़ा फल मिलता है कि एक बार महाराज जनक का विमान यमराज की संयमनी पूरी के निकट से हो कर जा रहा था ।विमान अभी आगे बढ़ने को ही था कि नरक कि यंत्रनाओ को भोगते हजारो नारकियों के करुण स्वर जनक को सुनाई दिये -'राजन!,आप यहाँ से जाये ,आपके शरीर को स्पर्श कर आने वाली वायु से हमें शांति मिल रही है ।'इस करुण पुकार को सुन कर महाराज जनक ने अपने जीवन भर के पुण्य प्रदान कर समस्त नारकीय जीवो को मुक्त किया|अन्त.मे जब जनक ने धर्मराज से पूछा -'मैंने कौन -स ऐसा पाप किया था जो मुझे नरक द्वार तक लाया गया ?'तब यमराज ने कहा -राजन !तुम्हारा तो समस्त जीवन पुण्यो से भरा पड़ा है ,परन्तु -'एक बार तुमने चरती हुई गाय के कार्य मे विघ्न डाला था ,उसी पाप के कारण तुम्हे नरक का द्वार देखना| पड़ा इस प्रसंग से ये पता चलता है कि गो की सेवा ना करने वालों का इहलोक ही नहीं परलोक भी बिगड़ जाता है कितनी बड़ी महिमा है गो सेवा की | प्राचीन भारत गो संस्कृति पर आधारित था |गाय का दूध ,गाय का दही ,गाय का माखन लम्बी आयु और स्वस्थ जीवन के लिए अमृत है iइस प्रसंग को उठाने के पीछे मेरा मकसद यही है कि हम सब भारत के वासी अपनी परम पूज्या गो माता कि रक्षा करे गोसेवा जितनी भी हो सकती है हमेशा करे |और हमारी सरकार ऐसे कारगर और सख्त  उठाये जिस से गोवध कम हो सके | जय हो गो माता कि |