Monday 31 December 2012

ख़ुशी के पल




 "ये तुम्हारी मम्मी को क्या होगया है ,आजकल रोज ही बाल्कनी मे खड़ी होकर किससे फोन पर बतियाती रहती है | कंही किसी के साथ इश्क का कोई चक्कर तो नहीं है |पता करो"…… सिमी को अपनी फ्रेंड के मुंह से ये सब सुन के बहुत बुरा लगा ,क्योकि अपनी मम्मी  को वो बहूत प्यार करती थी | माँ बेटी दो जनों का ही परिवार था ,तो जाहिर था उसके लिये माँ ही सब कुछ थी | उसने इस बात के लिए रीना से झगडा भी किया रीना गुस्सा होकर अपने घर चली गई , पर जाते जाते सिमी के दिमाग में शक नाम का कीड़ा भी डाल गई | 
         अब जाहिर है की पुरे दिन उसका ध्यान अपनी मम्मी  पर ही लगा रहा पर मालती अपने फोन को एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ ती थी| सिमी मौका देखने लगी की केसे उसे मम्मी का फोन मिले और वो उस व्यक्ति का पता लगाये , जिससे वो बाते करती है | सिमी का शक भी यकीन मे बदलने लगा था | एक दिन वो कॉलेज से जल्दी घर आगयी , उसने देखा की मालती किसी के साथ फोन पे हंस हंस के बाते करने मे मशगुल है | मम्मी को उसके आजाने का जरा भी भान नै हुआ ,ये देख के तो और भी दुखी हुई |कुछ जान सके, इसलिए वो वहा खड़ी होगयी जंहासे मम्मी की बाते सुन सके,और वो मम्मी को दिखे भी नहीं | तभी उसके कानो में आवाज आई ”नहीं राजीव अब ये सब करने की उम्र नहीं रही ,अब तो उम्र के उस पड़ाव पर हू जहाँ ये सोचना शोभा नहीं देता | में तो इस बात से ज्यादा दुखी हु की कही मेरी बेटी को भी किसी से प्यार न हो जाये , में कहा कर पाउगी दोबारा ये सब ” ये कहकर वो जोर से हस पड़ी |सिम्मी के कानो में जेसे किसीने उबलता हुआ गरम तेल डाल दिया हो ,वो गुस्से से तम तमाती हुई अपने कमरे में चली गई ,इधर मालती बात ख़तम करके आई तो पता चला की बेटी कालेज से  गई हैतो वो सीधे उसके कमरे में गई और बोली ”तुम कब आई सिम्मी ” ये सुन गुस्से से जोर से बोली ”जब आप अपने दोस्त के साथ फोन पर बाते कर रहीथी ,और मुंह फेर के सो गई | मालती को एहसास हो गया था की सिम्मी को उसका राजीव के साथ बात करना बरदास्त नहीं हुआ | उसी वक्त राजीव को फोन किया और कहा ”आज के बाद मुझे फोन मत कर ना ”उधर राजीव पूछता रहगया की क्या हुआ ….तब तक उसने फोन कट कर दिया |उस दिन के बाद माँ -बेटी में कोई संवाद नहीं हुआ ,जेसे अजनबी हो , 
                तभी सिम्मी अपने साथ एक इसाई लड़के  को लाई और मालती से कहती है की ”मम्मी में जॉन से प्यार करती हु और शादी कर ना चाहती हु ”मालती सुन कर हतप्रभ हो गई ,जेसे उसे सांप सूंघगया हो | कुछ पल के बाद अपने आप को सहज कर के बेटी को समझा ने के लिए जेसे ही मुह खोला की सिम्मी बीच में ही बोल पड़ी उस लड़के के सामने ही अपनी माँ को कहा” आप शादी का सोचो उससे पहले में शादी कर लू ”,और वो जॉन के साथ दुसरे कमरे में चली गई |
          अब मालती की जान उसकी बेटी में अटकी पड़ी थी की उस की बेटी के साथ कुछ एसा वेसा न हो जाये ,मालती को राजीव पर गुस्सा आरहा था की उसने क्यों राजीव के साथ बातो का सिलसिला शुरु की या,रात को वो सिम्मी के कमरे में गई ,सिम्मी सो रही थी ,जेसे ही उसने अपना हाथ प्यार से उसके सर पर रखा सिम्मी ने उसका हाथ झटक कर दूर कर दिया और बोली ”मुझ से दूर रहो आप और मेरी शादी की तैयारी करो ” मालती रो पड़ी | 
             दुसरे दिन रोज की तरह नास्ता नहीं बना ,तो सिम्मी चिल्लाने लगी अब नास्ता भी नहीं मिलेगा क्या ,गुस्से से वो मालती के कमरे में गई लेकिन वहा का दृश्या देख कर आवक रह गई और भाग कर माँ के पास चली गई | मम्मी ने नींद की गोलिया खाली थी | अब उसे समझ नही  आ रहा था की वो क्या करे ,कुछ सोच कर उसने मम्मी का फोन उठाया और राजीव को फोन किया और कहा की ” मम्मी ने नींद की गोलिया खाली है कुछ कीजिये जल्दी से प्लीज ”कुछ देर बाद राजीव एम्बुलेंस को साथ ले कर आया , और मालती को अस्पताल पहुँचाया | 
          डॉ. ने सात घंटे के बाद आकर बोला की अब वो खतरे से बाहर है |सिमी और राजीव ने राहत की साँस ली , रीना ने ओपचारिकता के नाते राजीव का धन्यवाद किया,और वो मम्मी के पास चली गई और झगड़ा करने लगी की ”आपको अगर कुछ हो जाता तो मेरा क्या होता ” माँ बेटी एक दुसरे के गले लग कर रोयी तबी डॉ. आया बोला की ”इनको अभी आराम करने दो ”और मालती सो गई |
       अब सिमी ने राजीवे से कहा की ”अंकल बुरा मत मानना पर मेरे पापा की जगह कोई नहीं ले सकता ” तब राजीव बोला ”तुमे पता है की तुम्हारे पापा कोन है| सिमी बोली नहीं मम्मी को इस बात से तकलीफ होती थी ,इस लिए कभी पूछा नहीं ,राजीव बोला ”सच बात तो ये है की तुम्हारे पापा कोई है ही नहीं ,तुम्हारी मम्मी का बलात्कार हुआ था और तुम्हारा जन्म हुआ | घर के लोगो ने मम्मी से तुमे कोख में मारने के लिए बोला पर उसने कहा इसमें इस बच्चे का क्या कसूर है में इसे नहीं मार सकती ,और तुम्हारी मम्मी ने सबके विरोध के बावजूद तुम्हे जन्म दिया ,इतना बड़ा किया और एक बेहतर जीवन दिया ,और जब मैंने उसे थोडा सहारा देना चाहा तो तुम उसे गलत समझ ने लगी | अपनी माँ को समझो तुम्हारे प्रति उसकी वात्सल्यता की भावना समझो |
        कुछ देर चुप रहने के बाद सिमी राजीव से बोली ”आप मेरे पापा बनोगे राजीव की आँखों मै ये सुन के आंसू आ गये | सुबह जब मालती की आँख खुली तो उसने राजीव और सिमी को एकसाथ अपने पास बेठे देखा और गुस्से से बोली राजीव तुम यहाँ क्यों आये हो तुरंत चले जावो तभी सिमी ने माँ को चुप रहने का इशारा किया और बोली ”मम्मी मुझे मेरे  पापा मिल गये  और वो राजीव है मालती ने सिमी को गले  से लगा लिया अब मालती राजीव और सिमी खुश थे|


                                                                                                   शांति पुरोहित

Wednesday 5 December 2012

माँ ...


आज नवरात्रि की पूजा समाप्त कर रमा कुछ देर माता दुर्गा की तस्वीर के आगे बैठे बैठे सोच रही थी कि इस जहान में माँ की महिमा कितनी बड़ी है ,यह नयी क्या कोई किसी को बताने वाली बात है। तस्वीर में बैठी माँ की पूजा और हाड-मांस की बनी जो पुत्र को नौ महीने पेट में रख कितना कष्ट सहन करती है ,उसका इतना निरादर क्यूँ ? सभी को ज्ञान है तीनो लोकों में माता के सामान कोई गुरु नहीं है।
रमा को सोच कर ही हैरानी हो रही है कि या आज की नई पीढ़ी माँ-बाप को बोझ क्यूँ समझ रही है।और ना ही उचित सम्मान ही करती है । वह एक ठंडी सी साँस लेकर अपने गत के बारे में सोचने लगी ......
रमा के पिता समाज के एक जाने माने और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। उस ज़माने में लड़कियों को पढाने का कोई चलन नहीं था।बस अक्षर ज्ञान बहुत था।घर के काम सीखना ही जरुरी था। उसकी दादी तो इसके घोर विरुद्ध थी।उनके विचार से लड़कियां अगर घर का काम सीखे तो काम आता है यूँ ही कागज़ काले करने का क्या फायदा। पर उसके पिता का मानना था के अगर कोई लड़की पढेगी तो ना केवल उसका जीवन बल्कि वह आने वाली पीढ़ी को भी सुधार सकती है।
लेकिन रमा आठवीं कक्षा तक ही पढ़ पाई।दादी की जिद पर रमा की शादी कर दी गई।रमा ससुराल के माहौल में जल्दी ही रम गयी।ससुराल में रमा को वह सब नहीं मिला जो मायके में उसे मायके में मिला था।ससुराल में खेती का ही काम था । उसके पति एक कम्पनी में काम करते थे।
समय का फेर या रमा की किस्मत कहिये ,पानी -वर्षा के आभाव में खेती का काम भी धीरे-धीरे बंद हो गया।अब वह पति के साथ शहर आ गयी।इस दौरान वह दो बच्चों की माँ बन चुकी थी।पति की तनख्वाह ही थी गुज़ारे को। रमा सोचती के अगर वह भी कुछ पढ़ी होती तो वह भी घर चलाने में अपना योगदान दे सकती थी।वह अपनी जरूरतों को कम करते हुए अपने बच्चों का और घर बहुत अच्छी तरह चला रही थी।उसने अपनी कीमत तो कभी समझी ही नहीं ना ही कभी बच्चों को समझाई।
यह तो होता ही है अगर कोई खुद अपनी कद्र नहीं करता तो कोई और भी उसकी कद्र नहीं करता। हर इन्सान को अपने आप से प्यार तो करना ही चाहिए।
फिर बच्चे बड़े हो गए। उनकी शिक्षा भी पूरी हो गयी।बेटी ससुराल चली गयी। बेटे को अच्छी सरकारी नौकरी मिल गयी।अब रमा कुछ राहत की सांस ले रही थी और खुश भी हो रही थी।सोच रही थी के बहू के आजाने पर वह आराम करेगी और खूब सेवा करवाएगी उससे।लेकिन यह एक टूट जाने वाला सपना ही साबित हुआ।
बहू तो नयी पीढ़ी के कुछ आत्म केन्द्रित लोगों में से एक थी।यानि कि नयी पीढ़ी में भी संस्कार वान होते हैं।पर उसकी बहू कोमल ऐसी नही थी।सास-ससुर के लिए कोई सम्मान नहीं था।
रमा ने सोचा था की बहु को वह बेटी से भी ज्यादा प्यार देगी।पर कोमल को रमा के लिए कोई आदर मान नहीं था। उसे बस अपने पति से ही लगाव था। अब यह तो सोचने वाली बात है पति इतना प्यारा और उसको जन्म देने वाली माँ का ऐसा निरादर ...!
बेटा भी धीरे-धीरे बहू के रंग में ढलता गया।
फिर एक दिन उसके पति भी साथ छोड़ चिर निद्रा में सो गए।अब वह बहुत अकेली पड़ गई। कहाँ तो वह सोच रही थी के एक दिन बेटा तीर्थ यात्रा करवाएगा।कहाँ वह अभी भी इस उम्र में भी रसोई को नहीं छोड़ पा रही अपनी आराम परस्त बहू के आगे। हिन्दू संस्कृति में माँ बनना और उस पर बेटे का जन्म होना बहुत सौभाग्य माना जाता है किसी भी स्त्री के लिए।यही सोच कर वह बहू के तीखे बानों को और बेटे की बेरुखी को सहन करती जाती थी।बेटी कभी मायके आती तो अपनी व्यथा उसे सुना कर अपना मन हल्का कर देती।उसे खाने बनाने और खाने का बहुत शौक था ...बनती तो अब भी थी पर खाने के मामले में बहु के ऊपर निर्भर थी। मन मार रह जाती। बहू की दलील थी के ज्यादा खाएगी तो उस उम्र में हजम भी नहीं होगा और पेट भी खराब होगा।
बेटी जब आती तो कुछ छुपा कर दे जाती तो वह खा पाती।
बाहर जाने का मन भी होता तो उसे इजाजत ही मांगनी पड़ती और वह भी कभी मिलती तो कभी नहीं मिलती।जब नहीं जा पाती तो बेबस सी अपने कमरे में पड़ी रहती और सोचती के कलयुग में ये बच्चे अनजाने में अपराध कर रहे हैं।प्रभु इनको माफ़ करें।
यही एक भारतीय नारी के साथ -साथ एक ममतामयी माँ की निशानी है।जो पुत्र अपनी पैंसठ वर्षीय माँ की परवाह नहीं करता उसकी सलामती और तरक्की के लिए व्रत रख रही है।
सोचते- सोचते रमा के आंसू बह निकले।तभी ख्याल आया बेटा बहु तो बाज़ार गए हैं आते ही खाने को मांगेंगे तो क्या दूंगी। जल्दी से हाथ जोड़ , रसोई की तरफ चल पड़ी।
दुर्गा माँ अब भी मुस्कुरा रही थी आशीर्वचन की मुद्रा में ,पर ये आशीर्वचन किसके किये था पता नहीं .....
शांति पुरोहित ...